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Lok Sabha Elections 2024: नालंदा छोड़कर फूलपुर... UP आए CM नीतीश तो बिहार में खराब न हो जाए JDU का हाल

Nitish Kumar: उत्तर प्रदेश के फूलपुर लोकसभा क्षेत्र से नीतीश कुमार के चुनाव लड़ने की चर्चा अब एक बार फिर हो रही है. वहीं, इस फैसले से बिहार में जेडीयू पर पड़ने वाले प्रभाव को समझिए.

पटना: सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ( Pm Narendra Modi) के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने में लगे हुए हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) में बीजेपी (BJP) को परास्त करने की हर संभव प्रयास में हैं. नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) बीजेपी को बिहार के अलावे उत्तर प्रदेश (UP) में भी टक्कर दे सकती है. अभी यह चर्चा जोरों पर है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. हालांकि नीतीश कुमार की तरफ से कोई घोषणा नहीं की गई है, लेकिन उनके मंत्री और उत्तर प्रदेश के जेडीयू प्रभारी श्रवण कुमार ने यह कहा है कि फूलपुर (Phulpur Lok Sabha Seat) के साथ उत्तर प्रदेश के कई सीटों पर जेडीयू का जनाधार है और वहां के लोगों की मांग है कि नीतीश कुमार उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़े.

अब अगर नालंदा को छोड़कर उत्तर प्रदेश से नीतीश चुनाव लड़ते हैं तो बिहार में उनकी पार्टी का राजनीतिक कैरियर कैसा होगा? यह देखना दिलचस्प होगा. नीतीश कुमार के राजनीतिक कैरियर में कई उतार-चढ़ाव हुए हैं और वे आगे बढ़े भी हैं, साथ में पीछे भी गए हैं. ऐसे में फूलपुर से चुनाव लड़ने का निर्णय कितना सही होगा. इस निर्णय से बिहार में उनका जनाधार बढ़ेगा या घटेगा, यह बड़ा सवाल है.

'बिहार के जीते हुए 16 सीटों को बचाने की बड़ी चुनौती है'

इस पर बिहार के राजनीति विश्लेषक अरुण कुमार पांडे ने कहा कि उत्तर प्रदेश के फूलपुर लोकसभा क्षेत्र से नीतीश कुमार के चुनाव लड़ने की चर्चा पिछले साल भी हुई थी. अब एक साल बाद फिर यह चर्चा उठी है. उन्होंने कहा कि मैं मानता हूं कि यह सिर्फ चर्चा ही रहेगी. नीतीश कुमार ऐसा निर्णय नहीं ले सकते हैं. अभी जो राजनीति हालात है. फूलपुर से चुनाव लड़ने का नीतीश कुमार की रणनीति नहीं है, उनके लिए बिहार के जीते हुए 16 सीटों को बचाने की बड़ी चुनौती है. यह उसी तरह की बात है जिस तरह से नीतीश कुमार कहते हैं कि हमें प्रधानमंत्री बनने का कोई शौक नहीं है हम विपक्ष को एकजुट करना चाहते हैं और जेडीयू की बैठक में नारा लगता है कि देश का प्रधानमंत्री कैसा हो, नीतीश कुमार जैसा हो. उन्होंने कहा कि ऐसा तो हो नहीं सकता है, लेकिन अगर नीतीश कुमार उत्तर प्रदेश की ओर रुख करते हैं और फूलपुर से चुनाव लड़ते हैं तो बिहार में उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है. जनता का जो मूड होता है वह भावुक होता है और नीतीश कुमार यह देख चुके हैं.

नीतीश कुमार के वोट बैंक में काफी गिरावट आया है- अरुण कुमार पांडे 

राजनीति विश्लेषक ने कहा कि नीतीश कुमार बाढ़ लोकसभा से पांच बार चुनाव जीते थे, लेकिन छठी बार 2004 में बाढ़ लोकसभा और नालंदा लोकसभा दोनों जगह से चुनाव लड़े तो बाढ़ लोकसभा की जनता की नाराजगी उन्हें झेलना पड़ा और बाढ़ से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था, जबकि बाढ़ लोकसभा में कई ऐतिहासिक काम उन्होंने किया था. अभी बाढ़ में एनटीपीसी है वह उन्हीं की देन है. हालांकि उस वक्त नालंदा से वह जीत गए थे. निश्चित तौर पर जब कोई नेता का किसी क्षेत्र पर कब्जा होता है और वह नेता दूसरे जगह अपना पांव पसारता है तो वहां की जनता में मायूसी आती है और यही बात नीतीश कुमार के साथ हो सकती है, लेकिन नीतीश कुमार अच्छी तरह से जानते हैं और यह भी वे जान रहे हैं कि पहले वाली स्थिति अभी नहीं है, उनके वोट बैंक में काफी गिरावट आया है. ऐसे में नीतीश कुमार इस तरह का निर्णय कदापि नहीं ले सकते हैं.

नीतीश कुमार छह बार लोकसभा सदस्य हुए

नीतीश कुमार देश की राजनीति में अपनी पहचान बना रहे हैं, लेकिन बिहार की राजनीति में उन्हें कई ऐसे मोड़ मिले हैं जो कि वह आगे भी बढ़े हैं तो अब लगातार उनका जनाधार गिरता जा रहा है. हम आंकड़े की बात करते हैं तो नीतीश कुमार छह बार लोकसभा सदस्य हुए. पहली बार 1989 में बाढ़ लोकसभा से चुनाव लड़े और 78343 मतों से जीत हासिल की थी. दूसरी बार 1991 में वे बाढ़ लोकसभा की जनता का दिल जीत लिए थे और वे भारी मत 174539 मतों से जीत हासिल की थी, लेकिन तीसरी बार 1996 में उनका जनाधार में कमी आई और अपने प्रतिद्वंदी जनता दल प्रत्याशी विजय कृष्ण से 64854 वोटों से जीते. चौथी बार उसी क्षेत्र में उन्हें और ज्यादा गिरावट मिली और 15190 वोटों से ही वे जीत पाए थे.

नालंदा से नीतीश कुमार एक ही बार चुनाव लड़े हैं

पांचवी बार विजय कृष्ण ने नीतीश कुमार को कड़ी टक्कर दी और मात्र 1335 वोटों से वो चुनाव जीत पाए थे. छठी बार उन्हें बाढ़ लोकसभा की जनता से विश्वास खत्म हो गया था और वे बाढ़ लोकसभा के साथ-साथ नालंदा से भी चुनाव लड़े, लेकिन बाढ़ की जनता इस बार और ज्यादा नाराज हो गई थी और उन्हें 37688 मतों से चुनाव हारना पड़ा था. हालांकि वे नालंदा लोकसभा से 102396 मतों से चुनाव जीत गए थे, लेकिन वे नालंदा से एक ही बार चुनाव लड़े और 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बने.

 2010 में जनता ने नीतीश की पार्टी को भारी मतों से जिताया था

नीतीश कुमार बिहार में 18 साल से मुख्यमंत्री बने हुए हैं, लेकिन इसमें भी उन्हें काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. शुरू के दौर में वे एक अच्छे मुख्यमंत्री के रूप में उभर कर आए और जनता ने उन पर बहुत ज्यादा विश्वास किया. 2005 में पहली बार उनकी पार्टी जेडीयू को 88 सीट और बीजेपी को 55 सीटें मिली थी और बहुमत का आंकड़ा पार करते हुए नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने थे, उस दौरान बिहार की जनता को लालू राज्य से मुक्ति मिली थी और बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में कानून व्यवस्था स्थापित की गई थी. जनता काफी खुश थी. इसके फलस्वरूप 2010 में जनता ने उन्हें भारी मतों से जिताया था. 2010 में जेडीयू 141 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और 115 सीट पर जीत हासिल की थी और बीजेपी 102 सीट पर चुनाव लड़ी थी और 91 सीट जीत कर लाई थी, लेकिन 2015 से उनके जनाधार में गिरावट देखने को मिलता रहा.

2015 में जेडीयू को 71 सीटें मिली थीं

2013 में नीतीश कुमार बीजेपी का साथ छोड़ दिए थे और आरजेडी के साथ गठबंधन करके 2015 में चुनाव लड़े लेकिन आरजेडी और जेडीयू 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ी, जिसमें जेडीयू को 71 सीटें मिली थी और आरजेडी को 80 सीटें मिली थी. नीतीश कुमार को वोट प्रतिशत में भी काफी गिरावट आई थी. 2010 में उन्हें 22.6 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि 2015 में उन्हें 17.3% वोट शेयर मिले थे. 2020 में उन्हें सबसे ज्यादा जनाधार में गिरावट आई. 2020 में जेडीयू को मात्र 43 सीटें आई और 15.42% वोट प्राप्त हुए थे. इस आंकड़ों से यह तो साफ है कि बिहार में अभी के समय में अकेले नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड का जनाधार में गिरावट आई है. ऐसे में उत्तर प्रदेश की ओर नीतीश कुमार का रुख उन्हें मजबूती प्रदान करेगा या उनके वोट बैंक में और ज्यादा गिरावट देखने को मिलेगा, यह चुनाव बाद ही पता चल पाएगा.

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