दीपक प्रकाश पर उठ रहे सवाल के बीच उपेंद्र कुशवाहा का बयान- जहर तो मैं पी गया...
Deepak Prakash News: राष्ट्रीय लोक मोर्चा के नेता उपेंद्र कुशवाहा ने दीपक प्रकाश द्वारा बतौर काबीना मंत्री शपथ लिए जाने के फैसले की आलोचना पर प्रतिक्रिया दी है.

राष्ट्रीय लोक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा ने अपने बेटे दीपक प्रकाश को लेकर हो रही आलोचना पर तीखी प्रतिक्रिया दी है. सोशल मीडिया साइट एक्स पर एक बयान में उन्होंने इतिहास से सबक लेने का हवाला देते हुए फैसले का बचाव किया.
बता दें 2025 विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए को प्रचंड बहुमत मिला. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी. राष्ट्रीय लोक मोर्चा भी राजग का घटक दल था. राष्ट्रीय लोक मोर्चा ने 6 सीटों पर चुनाव लड़ा और 4 सीटों पर जीत हासिल की. इन 4 सीटों में से एक इनकी पत्नी की सीट भी थी.
पत्नी भी हैं विधायक
उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी स्नेह लता कुशवाहा ने सासाराम से चुनाव में जीत हासिल की. लोगों को मानना था कि स्नेह लता कुशवाहा मंत्री को रुप में शपथ लेंगी, लेकिन बिहार सरकार मंत्रीमंडल में जब से उनके बेटे को शामिल किया गया, तभी से उपेंद्र कुशवाहा पर परिवारवाद का आरोप लगाया जा रहा था. 20 नवंबर को उपेंद्र कुशवाहा के बेटे दीपक प्रकाश ने न विधायक, न एमएलसी रहते हुए सीधे मंत्री के रुप में शपथ ली थी.
उन्होंने लिखा कि कल से मैं देख रहा हूं, हमारी पार्टी के निर्णय को लेकर पक्ष और विपक्ष में आ रही प्रतिक्रियाएं....उत्साहवर्धक भी, आलोचनात्मक भी..! आलोचनाएं स्वस्थ भी हैं, कुछ दूषित और पूर्वाग्रह से ग्रसित भी. स्वस्थ आलोचनाओं का मैं हृदय से सम्मान करता हूं. ऐसी आलोचनाएं हमें बहुत कुछ सिखाती हैं, संभालती हैं. क्योंकि ऐसे आलोचकों का मकसद पवित्र होता है. दूषित आलोचनाएं सिर्फ आलोचकों की नियत का चित्रण करती हैं. दोनों प्रकार के आलोचकों से कुछ कहना चाहता हूं.
'झोली खाली की खाली रही...'
सांसद ने लिखा कि पहले स्वस्थ आलोचकों से:- आपने मेरे उपर परिवारवाद का आरोप लगाया है. मेरा पक्ष है कि अगर आपने हमारे निर्णय को परिवारवाद की श्रेणी में रखा है, तो जरा समझिए मेरी विवशता को. पार्टी के अस्तित्व व भविष्य को बचाने व बनाए रखने के लिए मेरा यह कदम जरुरी ही नहीं अपरिहार्य था. मैं तमाम कारणों का सार्वजनिक विश्लेषण नहीं कर सकता, लेकिन आप सभी जानते हैं कि पूर्व में पार्टी के विलय जैसा भी अलोकप्रिय और एक तरह से लगभग आत्मघाती निर्णय लेना पड़ा था. जिसकी तीखी आलोचना बिहार भर में हुई. उस वक्त भी बड़े संघर्ष के बाद आप सभी के आशीर्वाद से पार्टी ने सांसद, विधायक सब बनाए. लोग जीते और निकल लिए. झोली खाली की खाली रही. शून्य पर पहूंच गए. पुनः ऐसी स्थिति न आए, सोचना ज़रूरी था.
सांसद ने लिखा कि सवाल उठाइए, लेकिन जानिए. आज के हमारे निर्णय की जितनी आलोचना हो, लेकिन इसके बिना फिलहाल कोई दूसरा विकल्प फिर से शून्य तक पहुंचा सकता था. भविष्य में जनता का आशीर्वाद कितना मिलेगा, मालूम नहीं. परन्तु खुद के स्टेप से शून्य तक पहुंचने का विकल्प खोलना उचित नहीं था. इतिहास की घटनाओं से यही मैंने सबक ली है.
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उन्होंने लिखा कि समुद्र मंथन से अमृत और ज़हर दोनों निकलता है. कुछ लोगों को तो ज़हर पीना ही पड़ता है. वर्तमान के निर्णय से परिवारवाद का आरोप मेरे उपर लगेगा. यह जानते/समझते हुए भी निर्णय लेना पड़ा, जो मेरे लिए ज़हर पीने के बराबर था. फिर भी मैंने ऐसा निर्णय लिया. पार्टी को बनाए/बचाए रखने की जिद्द को मैंने प्राथमिकता दी. अपनी लोकप्रियता को कई बार जोखिम में डाले बिना कड़ा/बड़ा निर्णय लेना संभव नहीं होता. सो मैंने लिया.
'मैं फिर से जी गया...'
आरएलएम अध्यक्ष ने लिखा कि पूर्वाग्रह से ग्रसित आलोचकों के लिए बस इतना ही:- "सवाल ज़हर का नहीं था, वो तो मैं पी गया .तकलीफ़ उन्हें तो बस इस बात से है कि मैं फिर से जी गया .."
उन्होंने लिखा कि अरे भाई, रही बात दीपक प्रकाश की तो जरा समझिए - विद्यालय की कक्षा में फेल विद्यार्थी नहीं है. मेहनत से पढ़ाई करके कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की डिग्री ली है, पूर्वजों से संस्कार पाया है उसने. इंतजार कीजिए, थोड़ा वक्त दीजिए उसे. अपने को साबित करने का. करके दिखाएगा. अवश्य दिखाएगा. आपकी उम्मीदों और भरोसा पर खरा उतरेगा. वैसे भी किसी भी व्यक्ति की पात्रता का मूल्यांकन उसकी जाति या उसके परिवार से नहीं, उसकी काबिलियत और योग्यता से होना चाहिए.
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