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In Pics: इतिहास में दर्ज है मुगल कालीन समय में बनी ये कोस मीनार, देखें तस्वीरें

Kos Minar News: मुगल कालीन युग में लोग सफर के दौरान दूरी तय करने के लिए और दूरा का पता लगाने के लिए कोस मीनारों का सहारा लिया करते थे. ये कोस मीनारें आज भी मौजूद हैं. आइए जानते हैं इसके बारे में.

Kos Minar News: मुगल कालीन युग में लोग सफर के दौरान दूरी तय करने के लिए और दूरा का पता लगाने के लिए कोस मीनारों का सहारा लिया करते थे. ये कोस मीनारें आज भी मौजूद हैं. आइए जानते हैं इसके बारे में.

कोस मीनार

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Kos Minar History: सफर दौरान आप अब आधुनिक युग में किलोमीटर के पत्थर तो हाईवे और सड़कों पर देखते जरूर होंगे और उन्ही के सहारे अपनी दूरी को तय करते भी है, लेकिन सड़कों पर किलोमीटर का ये पत्थर कभी कभी अपनी नजरों में भी नही आता होगा. क्योंकि इनका आकार अपनी नजरों के हिसाब से बहुत छोटा होता है, लेकिन मुगल कालीन सामा से दूरी तय करने के लिए और दूरी का पता लगाने के लिए पहले कोस मीनारों के सहारे लोग अपने सफर की दूरी तय किया करते थे.
Kos Minar History: सफर दौरान आप अब आधुनिक युग में किलोमीटर के पत्थर तो हाईवे और सड़कों पर देखते जरूर होंगे और उन्ही के सहारे अपनी दूरी को तय करते भी है, लेकिन सड़कों पर किलोमीटर का ये पत्थर कभी कभी अपनी नजरों में भी नही आता होगा. क्योंकि इनका आकार अपनी नजरों के हिसाब से बहुत छोटा होता है, लेकिन मुगल कालीन सामा से दूरी तय करने के लिए और दूरी का पता लगाने के लिए पहले कोस मीनारों के सहारे लोग अपने सफर की दूरी तय किया करते थे.
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जो दूर से ही नजर आया करती थी. आप और हम में से बहुत से लोग इस शब्द से अनजान होंगे और शायद बहुत से लोगों को कोस मीनार के बारे में जानते भी नहीं होंगे, लेकिन लगभग 30 फिट की ऊंचाई से बनी पार्कों ए मीनार कई किलोमीटर दूर से ही दिखाई देती थी.
जो दूर से ही नजर आया करती थी. आप और हम में से बहुत से लोग इस शब्द से अनजान होंगे और शायद बहुत से लोगों को कोस मीनार के बारे में जानते भी नहीं होंगे, लेकिन लगभग 30 फिट की ऊंचाई से बनी पार्कों ए मीनार कई किलोमीटर दूर से ही दिखाई देती थी.
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सन 1545  के लगभग इन मीनारों को इजात किया गया था. पहले लोग जब सफर पर निकलते थे तो उन्हें दूरी का अंदाजा नहीं होता था और ये भी नही पता चलता था की वो कितनी दूरी तय कर चुके हैं और उन्हें कितनी दूरी तय करनी है, जिसको लेकर सड़कों के किनारे प्रति कोस पर ये मीनार बनाई जाती थी और उनकी ऊंचाई लगभग 30 फिट हुआ करती थी. जो राहगीरों को दूर से दिख जाया करती थी. कहा जाता है कि शेरशाह सूरी ने इसे अपने समय में बनवाना शुरू किया था.
सन 1545  के लगभग इन मीनारों को इजात किया गया था. पहले लोग जब सफर पर निकलते थे तो उन्हें दूरी का अंदाजा नहीं होता था और ये भी नही पता चलता था की वो कितनी दूरी तय कर चुके हैं और उन्हें कितनी दूरी तय करनी है, जिसको लेकर सड़कों के किनारे प्रति कोस पर ये मीनार बनाई जाती थी और उनकी ऊंचाई लगभग 30 फिट हुआ करती थी. जो राहगीरों को दूर से दिख जाया करती थी. कहा जाता है कि शेरशाह सूरी ने इसे अपने समय में बनवाना शुरू किया था.
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ये कोस मीनार दूरी तय करने के दृष्टिकोण से बनाई गई थी. पहले सफर पर नाइक लोगों के लिए दूरी तय करना मुश्किल हुआ करता था. जिसको ध्यान में रख कर इस मीनार को बनाया गया था. कहा जाता है कि जब गाय आवाज देती है या रंभाती है, तो उसकी आवाज लगभग दो किलोमीटर तक जाती थी. जिसे क्रॉस भी कहा जाता था. गाय की आवाज के नाम को बदलकर इसे दूरी से जोड़ दिया गया और समय के साथ इसे कोस का नाम दिया गया.
ये कोस मीनार दूरी तय करने के दृष्टिकोण से बनाई गई थी. पहले सफर पर नाइक लोगों के लिए दूरी तय करना मुश्किल हुआ करता था. जिसको ध्यान में रख कर इस मीनार को बनाया गया था. कहा जाता है कि जब गाय आवाज देती है या रंभाती है, तो उसकी आवाज लगभग दो किलोमीटर तक जाती थी. जिसे क्रॉस भी कहा जाता था. गाय की आवाज के नाम को बदलकर इसे दूरी से जोड़ दिया गया और समय के साथ इसे कोस का नाम दिया गया.
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क्योंकि 2.3 किलोमीटर की दूरी को एक कोस माना जाता था, जिसके चलते प्रत्येक कोस पर इस मीनार को बनाया जाने लगा ईंट और मिट्टी से बनी किस 30 फीट ऊंची मीनार का नाम तब से कोस मीनार पड़ गया. इसके साथ इसके करीब ही कुएं और पानी की व्यवस्था भी की जाती थी. ताकि राहगीर सफर के दौरान अपनी थकान मिटा सके और पानी भी पी सके.
क्योंकि 2.3 किलोमीटर की दूरी को एक कोस माना जाता था, जिसके चलते प्रत्येक कोस पर इस मीनार को बनाया जाने लगा ईंट और मिट्टी से बनी किस 30 फीट ऊंची मीनार का नाम तब से कोस मीनार पड़ गया. इसके साथ इसके करीब ही कुएं और पानी की व्यवस्था भी की जाती थी. ताकि राहगीर सफर के दौरान अपनी थकान मिटा सके और पानी भी पी सके.
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पुरातत्व विभाग की ओर से कोस मीनारों को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया तथा. उनकी सुरक्षा और रख-रखाव का जिम्मा लिया गया. इसके अंतर्गत इन मीनारों के 200 मीटर के दायरे को भी संरक्षित कर इसके साथ ही नियम 20 ए के तहत उस क्षेत्र के 100 मीटर की परिधि में कोई भी निर्माण कार्य प्रतिबंधित किया गया है.
पुरातत्व विभाग की ओर से कोस मीनारों को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया तथा. उनकी सुरक्षा और रख-रखाव का जिम्मा लिया गया. इसके अंतर्गत इन मीनारों के 200 मीटर के दायरे को भी संरक्षित कर इसके साथ ही नियम 20 ए के तहत उस क्षेत्र के 100 मीटर की परिधि में कोई भी निर्माण कार्य प्रतिबंधित किया गया है.
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वहीं जनपद कानपुर देहात में ऐसी कई कोस मीनार पुरातत्व विभाग की तरफ से संरक्षित है, जो धीमे-धीमे अपने अस्तित्व को खोती जा रहीं थी.  हालाकि अब समय के साथ बदलते विकास ने इनके कद को छोटा कर दिया है.
वहीं जनपद कानपुर देहात में ऐसी कई कोस मीनार पुरातत्व विभाग की तरफ से संरक्षित है, जो धीमे-धीमे अपने अस्तित्व को खोती जा रहीं थी.  हालाकि अब समय के साथ बदलते विकास ने इनके कद को छोटा कर दिया है.

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