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सत्यनारायण की कथा में 300 लोग बनाएंगे 28 क्विंटल आटे की रोटी, 60 गांवों को भेजा गया निमंत्रण

Satyanarayan Katha in Jhalawar: राजस्थान अपने ऐतिहासिक संस्कृति और समृद्ध प्रथाओं के लिए विश्व प्रसिद्ध है. इसी तरह झालावाड़ की सत्यनारायण कथा भी अपने आप में अनूठी है. जिसे सुनने लोग पहुंचते हैं.

Satyanarayan Katha in Jhalawar: राजस्थान अपने ऐतिहासिक संस्कृति और समृद्ध प्रथाओं के लिए विश्व प्रसिद्ध है. इसी तरह झालावाड़ की सत्यनारायण कथा भी अपने आप में अनूठी है. जिसे सुनने लोग पहुंचते हैं.

झालावाड़ मं सत्यनारायण कथा में होता है अनूठा आयोजन

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भारत विविधताओं का देश है. कहा जाता है कि यहां हर 3 कोस पर बोली और भोजन बदल जाता है. राजस्थान भी इससे अछूता नहीं है. राजस्थान के समृद्ध संस्कृति और प्रथाओं को आज यहां के स्थानीय लोगों ने जिंदा रखा है. प्रदेश के हाड़ौती क्षेत्र भी अपनी समृद्ध परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है. हाड़ौती की लोक संस्कृति और प्रथाओं को ग्रामीणों ने आज भी जीवंत रखा है.
भारत विविधताओं का देश है. कहा जाता है कि यहां हर 3 कोस पर बोली और भोजन बदल जाता है. राजस्थान भी इससे अछूता नहीं है. राजस्थान के समृद्ध संस्कृति और प्रथाओं को आज यहां के स्थानीय लोगों ने जिंदा रखा है. प्रदेश के हाड़ौती क्षेत्र भी अपनी समृद्ध परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है. हाड़ौती की लोक संस्कृति और प्रथाओं को ग्रामीणों ने आज भी जीवंत रखा है.
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झालावाड़ जिले के बकानी गांव के कमलपुरा में एक ऐसी प्रथा जीवंत है, जिसे सुन और देखकर विशेष अनुभूति का आभास होता है. यहां एक गांव समरसता का उदाहरण पेश कर रहा है. इस गांव में भगवान सत्यनारायण की कथा साल में एक बार कराई जाती है और उस कथा के दौरान जो आयोजन होते है, वह अपने आप में अनूठा हैं. इस गांव में कथा से पहले भगवान की भजन संध्या होती है. ग्रामीण रातभर भगवान के भजन करते हैं, नाचते गाते हैं और खुशी मनाते हैं.
झालावाड़ जिले के बकानी गांव के कमलपुरा में एक ऐसी प्रथा जीवंत है, जिसे सुन और देखकर विशेष अनुभूति का आभास होता है. यहां एक गांव समरसता का उदाहरण पेश कर रहा है. इस गांव में भगवान सत्यनारायण की कथा साल में एक बार कराई जाती है और उस कथा के दौरान जो आयोजन होते है, वह अपने आप में अनूठा हैं. इस गांव में कथा से पहले भगवान की भजन संध्या होती है. ग्रामीण रातभर भगवान के भजन करते हैं, नाचते गाते हैं और खुशी मनाते हैं.
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गांव के टोडरमल लोधा ने बताया कि करीब 50 साल से भी अधिक समय से यह प्रथा चली आ रही है. उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति स्वयं अपने स्तर पर भगवान सत्यनारायण की कथा नहीं करवा सकता, न ही उसके बाद भोजन और अन्य आयोजन करवा सकता है. ऐसे में गांव के एक-एक घर को शामिल करते हुए इस आयोजन को सामूहिक किया जाता है, जिसमें एक-एक घर की भागीदारी होती है.
गांव के टोडरमल लोधा ने बताया कि करीब 50 साल से भी अधिक समय से यह प्रथा चली आ रही है. उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति स्वयं अपने स्तर पर भगवान सत्यनारायण की कथा नहीं करवा सकता, न ही उसके बाद भोजन और अन्य आयोजन करवा सकता है. ऐसे में गांव के एक-एक घर को शामिल करते हुए इस आयोजन को सामूहिक किया जाता है, जिसमें एक-एक घर की भागीदारी होती है.
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टोडरमल  लोधा ने कहा कि यह आयोजन भले ही लोधा समाज का होता हो, लेकिन इसमें सहयोग पूरा गांव करता है. टोडरमल लोधा ने बताया कि इस आयोजन को करने के लिए प्रत्येक घर पर जाया जाता है. इस मौके पर प्रत्येक व्यक्ति के हिसाब से आटा, दाल, कंडे और पैसे जमा किए जाते हैं. एक घर, एक परिवार से 3 किलो आटा, प्रति व्यक्ति 6 कंडे, प्रति व्यक्ति 50 रुपये और प्रति व्यक्ति 400 ग्राम दाल ली जाती है.
टोडरमल लोधा ने कहा कि यह आयोजन भले ही लोधा समाज का होता हो, लेकिन इसमें सहयोग पूरा गांव करता है. टोडरमल लोधा ने बताया कि इस आयोजन को करने के लिए प्रत्येक घर पर जाया जाता है. इस मौके पर प्रत्येक व्यक्ति के हिसाब से आटा, दाल, कंडे और पैसे जमा किए जाते हैं. एक घर, एक परिवार से 3 किलो आटा, प्रति व्यक्ति 6 कंडे, प्रति व्यक्ति 50 रुपये और प्रति व्यक्ति 400 ग्राम दाल ली जाती है.
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इस बार 707 व्यक्तियों ने यह सामग्री दी है. इसके अनुसार, करीब 28 क्विंटल आटा, 300 किलो दाल, 4 हजार से अधिक कंडे इसमें इस्तेमाल किया जाना है. टोडरमल ने बताया कि बाटियां बनाने के लिए 12 खाट, निवार की खाट (पलंग) का उपयोग किया जाता है. घर-घर में जहां भी खाट होती है, वहां से मंगा ली जाती है. कम पडने पर निवार की खाट का उपयोग किया जाता है. इसके बाद जब बाटियों को सेंका जाता है, तो तीन गांव के लोग बाटियों को सेंकने आते हैं. करीब 300 से 400 व्यक्ति इन बाटियों को सेंकते हैं.
इस बार 707 व्यक्तियों ने यह सामग्री दी है. इसके अनुसार, करीब 28 क्विंटल आटा, 300 किलो दाल, 4 हजार से अधिक कंडे इसमें इस्तेमाल किया जाना है. टोडरमल ने बताया कि बाटियां बनाने के लिए 12 खाट, निवार की खाट (पलंग) का उपयोग किया जाता है. घर-घर में जहां भी खाट होती है, वहां से मंगा ली जाती है. कम पडने पर निवार की खाट का उपयोग किया जाता है. इसके बाद जब बाटियों को सेंका जाता है, तो तीन गांव के लोग बाटियों को सेंकने आते हैं. करीब 300 से 400 व्यक्ति इन बाटियों को सेंकते हैं.
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यही नहीं इसमें करीब 4242 कंडे का उपयोग किया जाता है. उसके बाद बाटियों को कंडे की राख में गाड़ दिया जाता है और ऊपर से काली मिट्टी से इस तरह दबा दिया जाता है, जिससे हवा अंदर न जाए. अंदर हवा जाने से बाटियां खराब हो जाती हैं. ग्राम वासियों ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि इस दिन हम गांव के सभी मंदिरों के ध्वज बदल देते हैं, साथ ही भगवान के कपड़ों को बदलते हैं और श्रृंगार करते हैं. जहां मंदिरों की सफाई और रंग रोगन होता है.
यही नहीं इसमें करीब 4242 कंडे का उपयोग किया जाता है. उसके बाद बाटियों को कंडे की राख में गाड़ दिया जाता है और ऊपर से काली मिट्टी से इस तरह दबा दिया जाता है, जिससे हवा अंदर न जाए. अंदर हवा जाने से बाटियां खराब हो जाती हैं. ग्राम वासियों ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि इस दिन हम गांव के सभी मंदिरों के ध्वज बदल देते हैं, साथ ही भगवान के कपड़ों को बदलते हैं और श्रृंगार करते हैं. जहां मंदिरों की सफाई और रंग रोगन होता है.
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ग्रामीणों के मुताबिक, रविवार की सुबह सत्यनारायण भगवान की कथा होगी. इसके बाद प्रसाद वितरण होगा और दोपहर बाद से भंडारे का आयोजन किया जाएगा. जिसमें 60 गांव के व्यक्ति आएंगे और प्रसादी ग्रहण करेंगे. इसके अलावा गांव की जिन बहन बेटियों की दूसरे गांव में शादी हुई है, उन्हें भी निमंत्रण भेजा जाता है और फोन से सूचना दी जाती है.
ग्रामीणों के मुताबिक, रविवार की सुबह सत्यनारायण भगवान की कथा होगी. इसके बाद प्रसाद वितरण होगा और दोपहर बाद से भंडारे का आयोजन किया जाएगा. जिसमें 60 गांव के व्यक्ति आएंगे और प्रसादी ग्रहण करेंगे. इसके अलावा गांव की जिन बहन बेटियों की दूसरे गांव में शादी हुई है, उन्हें भी निमंत्रण भेजा जाता है और फोन से सूचना दी जाती है.

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