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Khandwa: सिर्फ 5 रुपये में ठहर सकते हैं करोड़ों की इस धर्मशाला में, आलीशान होटलों जैसी सुविधाएं उपलब्ध

MP News: इस धर्मशाला को मार्च माह से आमजन के लिए शुरू कर दिया गया. अगले वर्ष 2024 में यह धर्मशाला सौ बरस की हो जाएगी. इस धर्मशाला में 72 कमरे और 5 बड़े हॉल हैं, जिसकी सुविधा देखकर हैरान हो जाएंगे.

MP News: इस धर्मशाला को मार्च माह से आमजन के लिए शुरू कर दिया गया. अगले वर्ष 2024 में यह धर्मशाला सौ बरस की हो जाएगी. इस धर्मशाला में 72 कमरे और 5 बड़े हॉल हैं, जिसकी सुविधा देखकर हैरान हो जाएंगे.

(खांडवा स्थित पार्वतीबाई धर्मशाला, फोटो क्रेडिट- शेख शकील)

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देशभर में जहां 5 रुपये में एक कप चाय नहीं मिलती, वहीं हिस्टोरिकल प्लेस में आपको 5 रुपये में रुकने का मौका मिल सकता है. मध्य प्रदेश के खंडवा में ऐतिहासिक इस प्लेस में रुकने के लिए सिर्फ 5 रुपये देने होंगे. शाही ठाट-बाट और उम्दा व्यवस्था के बीच रहना आखिर किसे पसंद नहीं है, इसके लिए शौकीन लोग हजारों रुपये तक खर्च करते हैं. शाही सुविधाओं से लैस सराय गरीबों की पहुंच में कहा होती है, लेकिन मध्य प्रदेश के खंडवा में एक ऐसी शाही सराय है, जहां अमीर-गरीब सब एक ही माने जाते हैं. एक ही काउंटर पर उन्हें कतार में लगना होता है और बुकिंग करवाना होती है.
देशभर में जहां 5 रुपये में एक कप चाय नहीं मिलती, वहीं हिस्टोरिकल प्लेस में आपको 5 रुपये में रुकने का मौका मिल सकता है. मध्य प्रदेश के खंडवा में ऐतिहासिक इस प्लेस में रुकने के लिए सिर्फ 5 रुपये देने होंगे. शाही ठाट-बाट और उम्दा व्यवस्था के बीच रहना आखिर किसे पसंद नहीं है, इसके लिए शौकीन लोग हजारों रुपये तक खर्च करते हैं. शाही सुविधाओं से लैस सराय गरीबों की पहुंच में कहा होती है, लेकिन मध्य प्रदेश के खंडवा में एक ऐसी शाही सराय है, जहां अमीर-गरीब सब एक ही माने जाते हैं. एक ही काउंटर पर उन्हें कतार में लगना होता है और बुकिंग करवाना होती है.
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दरअसल हम बात कर रहे है, खंडवा में स्थित सेठानी पार्वतीबाई धर्मशाला की, जिसका संचालन ट्रस्ट और सरकार मिलकर करते हैं. इस धर्मशाला का इतिहास आजादी से भी पुराना है. इसके निर्माण के पीछे की कहानी भी बड़ी रोचक है. दरअसल पार्वतीबाई खंडवा के धनाड्य सेठ रघुनाथदास की बेटी थी. जबलपुर के सेठ गोकुलदास के पुत्र जीवनदास से उनका विवाह हुआ था. इस दौरान कन्यादान में उन्हें 2 लाख रुपये के चांदी के सिक्के मिले थे. सेवाभावी और मानवीय मूल्यों पर जीवन जीने वाली पार्वतीबाई ने इसी रकम से एक ऐसी धर्मशाला का निर्माण करवाने की ठानी, जिसमें अमीर-गरीब और हर धर्म-जाति का व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के रुक सके, वो भी नाम मात्र के शुल्क पर.
दरअसल हम बात कर रहे है, खंडवा में स्थित सेठानी पार्वतीबाई धर्मशाला की, जिसका संचालन ट्रस्ट और सरकार मिलकर करते हैं. इस धर्मशाला का इतिहास आजादी से भी पुराना है. इसके निर्माण के पीछे की कहानी भी बड़ी रोचक है. दरअसल पार्वतीबाई खंडवा के धनाड्य सेठ रघुनाथदास की बेटी थी. जबलपुर के सेठ गोकुलदास के पुत्र जीवनदास से उनका विवाह हुआ था. इस दौरान कन्यादान में उन्हें 2 लाख रुपये के चांदी के सिक्के मिले थे. सेवाभावी और मानवीय मूल्यों पर जीवन जीने वाली पार्वतीबाई ने इसी रकम से एक ऐसी धर्मशाला का निर्माण करवाने की ठानी, जिसमें अमीर-गरीब और हर धर्म-जाति का व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के रुक सके, वो भी नाम मात्र के शुल्क पर.
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सन 1917 में इस धर्मशाला का निर्माण कार्य शुरू हुआ और सन 1924 में बनकर तैयार हो गया. इस धर्मशाला को मार्च माह से आमजन के लिए शुरू कर दिया गया. अगले वर्ष 2024 में यह धर्मशाला सौ बरस की हो जाएगी. इंडो-इंग्लिश वास्तुकला पर बनी यह धर्मशाला बेहद खूबसूरत महल की तरह दिखाई देती है. यहां रुकने वाले यात्री भी धर्मशाला की व्यवस्थाओं से खुश रहते हैं. इस धर्मशाला में महज 5 रुपये प्रतिदिन देकर कोई भी व्यक्ति अपने सामान सहित यहां रुक सकता है. धर्मशाला के प्रबंधक बीएस मालवीया बताते हैं कि सेठानी पार्वतीबाई का परिवार बहुत ही सेवाभावी था.
सन 1917 में इस धर्मशाला का निर्माण कार्य शुरू हुआ और सन 1924 में बनकर तैयार हो गया. इस धर्मशाला को मार्च माह से आमजन के लिए शुरू कर दिया गया. अगले वर्ष 2024 में यह धर्मशाला सौ बरस की हो जाएगी. इंडो-इंग्लिश वास्तुकला पर बनी यह धर्मशाला बेहद खूबसूरत महल की तरह दिखाई देती है. यहां रुकने वाले यात्री भी धर्मशाला की व्यवस्थाओं से खुश रहते हैं. इस धर्मशाला में महज 5 रुपये प्रतिदिन देकर कोई भी व्यक्ति अपने सामान सहित यहां रुक सकता है. धर्मशाला के प्रबंधक बीएस मालवीया बताते हैं कि सेठानी पार्वतीबाई का परिवार बहुत ही सेवाभावी था.
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उन्होंने कन्यादान में मिले दो लाख रुपयों के सिक्कों से इस धर्मशाला का निर्माण कार्य करवाया और इसे सभी तरह के लोगों के रुकने के लिए समर्पित किया. समाजसेवी सुनील जैन ने बताया कि धर्मशाला समिति में जिला प्रशासन की ओर से एसडीएम नामित होते हैं, जो इसका प्रशासनिक कार्य देखते हैं और निर्णय लेते हैं. उस जमाने में आज की तरह हर व्यक्ति के पास घड़ी नहीं होती थी, इसलिए समय बताने के लिए यहां घंटा लगाया गया था. इस घंटे से आज भी समय बताया जाता है.
उन्होंने कन्यादान में मिले दो लाख रुपयों के सिक्कों से इस धर्मशाला का निर्माण कार्य करवाया और इसे सभी तरह के लोगों के रुकने के लिए समर्पित किया. समाजसेवी सुनील जैन ने बताया कि धर्मशाला समिति में जिला प्रशासन की ओर से एसडीएम नामित होते हैं, जो इसका प्रशासनिक कार्य देखते हैं और निर्णय लेते हैं. उस जमाने में आज की तरह हर व्यक्ति के पास घड़ी नहीं होती थी, इसलिए समय बताने के लिए यहां घंटा लगाया गया था. इस घंटे से आज भी समय बताया जाता है.
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धर्मशाला के ट्रस्टी विजय राठी ने बताया कि खंडवा की यह धर्मशाला शहर का गौरव है, यहां बेहद कम रुपयों में गरीब से गरीब व्यक्ति आश्रय पा सकता है. आज यह प्रॉपर्टी अरबों रुपयों की है, यही सामने खंडवा का रेलवे जंक्शन है, जहां से यात्री यहां आकर रुकते हैं. धर्मशाला में रुके ओम्कारेश्वर के पंडित सुधांशु शर्मा ने बताया कि जब उन्हें किसी धार्मिक अनुष्ठान के लिए खंडवा आना होता है, तो वे यहीं आकर रुकते हैं. धर्मशाला की व्यवस्थाएं बहुत अच्छी है और यहां का प्रबंधन भी सहयोगी है.
धर्मशाला के ट्रस्टी विजय राठी ने बताया कि खंडवा की यह धर्मशाला शहर का गौरव है, यहां बेहद कम रुपयों में गरीब से गरीब व्यक्ति आश्रय पा सकता है. आज यह प्रॉपर्टी अरबों रुपयों की है, यही सामने खंडवा का रेलवे जंक्शन है, जहां से यात्री यहां आकर रुकते हैं. धर्मशाला में रुके ओम्कारेश्वर के पंडित सुधांशु शर्मा ने बताया कि जब उन्हें किसी धार्मिक अनुष्ठान के लिए खंडवा आना होता है, तो वे यहीं आकर रुकते हैं. धर्मशाला की व्यवस्थाएं बहुत अच्छी है और यहां का प्रबंधन भी सहयोगी है.
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करीब एक सदी से यहां साधु-संत, अमीर-गरीब, मजदूर, नौकरीपेशा, व्यापारी, खिलाड़ी, संस्कृति कर्मी हर वर्ग के लोग यहां आकर रुकते हैं. ये जगह लड़कियों और महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा सुरक्षित है. यहां हरे भरे बाग हैं, साथ ही हरियाली के बीच यहां ठहरना आपको सुकून पहुंचाएगा. खास बात ये है कि अगर यहां रुकने आए लोगों के पास अगर खाना बनाने का सामान है, तो वह यहां पर खाना भी बना सकते हैं. 72 कमरे और 5 बड़े हॉल वाले इस पैलेस में निम्न, मध्यम, उच्च आय वर्ग के लिए अलग-अलग बजट के कमरे भी हैं.
करीब एक सदी से यहां साधु-संत, अमीर-गरीब, मजदूर, नौकरीपेशा, व्यापारी, खिलाड़ी, संस्कृति कर्मी हर वर्ग के लोग यहां आकर रुकते हैं. ये जगह लड़कियों और महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा सुरक्षित है. यहां हरे भरे बाग हैं, साथ ही हरियाली के बीच यहां ठहरना आपको सुकून पहुंचाएगा. खास बात ये है कि अगर यहां रुकने आए लोगों के पास अगर खाना बनाने का सामान है, तो वह यहां पर खाना भी बना सकते हैं. 72 कमरे और 5 बड़े हॉल वाले इस पैलेस में निम्न, मध्यम, उच्च आय वर्ग के लिए अलग-अलग बजट के कमरे भी हैं.

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