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कहां से शुरू हुई नहाने की परंपरा? सर्दियों में पानी से डरने वाले जान लें जवाब
History Of Bathing: नहाना हमेशा रोज की आदत ही नहीं थी, बल्कि समय और मौसम की देन रहा है. सर्दियों में हफ्तों न नहाने वाले और पानी से डरने वाले लोगों को इस आर्टिकल को जरूर पढ़ना चाहिए.
रोज नहाना साफ-सफाई और शिष्टाचार का हिस्सा माना जाता है, लेकिन उत्तर भारत में जब कड़ाके की सर्दी पड़ती है और कोहरे से बाहर कुछ दिखाई नहीं देता है, पानी छूने पर ऐसा लगता है कि मानों हाथ जम जाएंगे…ऐसी स्थिति में कुछ लोग रोज नहाने से कतराते हैं. कई बार तो वे नहाने से इस कदर डरते हैं कि हफ्तों बगैर स्नान के रहते हैं. ऐसे में सवाल यह है कि नहाने की परंपरा आखिर शुरू कहां से हुई और कब इसे रोजमर्रा की जरूरत माना जाने लगा.
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नहाने की परंपरा का इतिहास हजारों साल पुराना है. प्राचीन सभ्यताओं में पानी को सिर्फ शरीर साफ करने का साधन नहीं, बल्कि शुद्धिकरण का माध्यम माना जाता था. सिंधु घाटी सभ्यता में बने विशाल स्नानागार इस बात का प्रमाण हैं कि ईसा पूर्व 2500 के आसपास भी सामूहिक स्नान और स्वच्छता को महत्व दिया जाता था.
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मोहनजोदड़ो का ग्रेट बाथ इस परंपरा का सबसे पुराना उदाहरण माना जाता है. भारतीय परंपरा में स्नान को धार्मिक कर्म से जोड़ा गया. गंगा, यमुना और अन्य नदियों में स्नान को पवित्र माना गया. आयुर्वेद में भी स्नान को शरीर, मन और आत्मा के संतुलन के लिए जरूरी बताया गया है.
Published at : 23 Dec 2025 09:56 AM (IST)
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