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यूपी चुनाव: बदहाली के बीच पिंडरा में एक और हार-जीत का फैसला करने को तैयार मतदाता

वाराणसी: वाराणसी जिले की पिंडरा विधानसभा सीट का अपना इतिहास रहा है. ग्रामीण इलाके की इस सीट के मतदाताओं ने जिसे अपनाया, सिर पे बिठा लिया, जिसे ठुकराया वह फिर खड़ा नहीं हो पाया. लेकिन स्थानीय लोगों की जुबानी और क्षेत्र की कहानी यही कहती है कि हर किसी ने इस क्षेत्र के साथ छल ही किया.

कम्युनिस्ट का गढ़ हुआ करता था यह इलाका

किसी समय यह इलाका कम्युनिस्ट का गढ़ हुआ करता था. क्षेत्र का नाम कोलसला था और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उदल यहां के विधायक हुआ करते थे. साल 1957 में उनकी जीत का सिलसिला शुरू हुआ तो अनवरत जारी रहा. लेकिन 1985 में कांग्रेस ने दांव खेला और उदल की ही विरादरी के रामकरण पटेल को टिकट दे दिया, उदल चुनाव हार गए. लेकिन अगले ही चुनाव में उदल ने पटेल से हार का हिसाब पूरा कर लिया और उदल की जीत का निर्बाध सिलसिला फिर शुरू हो गया. उन्होंने यहां से नौ बार जीत हासिल कर इतिहास रचा.

6 जीत के बाद सातवीं बार मैदान में हैं अजय राय

आज कांग्रेस के अजय राय इस सीट से जीत का इतिहास रचने की कोशिश में हैं. वह छह बार लगातार यहां से जीत चुके हैं और सातवीं बार मैदान में हैं. भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार 1996 में अजय को चुनाव मैदान में उतारा था, और बुजुर्ग हो चुके उदल को उन्होंने मात्र 484 वोट से पराजित कर दिया था. फिर क्या अजय इस क्षेत्र के लिए अजेय हो गए. वह पार्टियां और झंडे बदलते रहे, लेकिन जीत उनके पीछे-पीछे चलती रही. यहां तक कि बिना दल के भी उनका दबदबा कायम रहा और उन्होंने उपचुनाव में निर्दलीय के रूप में भी जीत दर्ज की. लेकिन खस्ताहाल सड़कें और शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण इस बार वह इलाके के लोगों का भरोसा हारते हुए दिख रहे हैं.

परसरा गांव के पूर्व प्रधान राम आसरे मिश्र कहते हैं, "मौजूदा विधायक अजय राय व्यवहार कुशल व्यक्ति हैं, लोगों के सुख-दुख में हाजिर रहते हैं, लेकिन क्षेत्र के विकास के लिए वह कुछ नहीं कर पाए हैं. क्षेत्र की जनता विकास भी चाहती है और इस बार बदलाव के मूड में है."

क्या अजय ने क्षेत्र के विकास के लिए कुछ किया ही नहीं?

तो क्या अजय ने क्षेत्र के विकास के लिए कुछ किया ही नहीं? इस प्रश्न का जवाब फूलपुर बाजार में चाय की दुकान पर चल रही चर्चा से मिलती है. एक अधेड़ व्यक्ति ने बेलाग अपनी बात रखी, "अजय राय ने क्षेत्र का विकास तो नहीं किया, अलबत्ता यहां अपराध बढ़ गया. क्षेत्र के युवाओं को रोजगार के बदले अपराध में मौके मिले." वह व्यक्ति अजय से इतना भयभीत था कि उसने नाम जाहिर न करने का अनुरोध किया. उक्त व्यक्ति ने कहा, "इस बार पिंडरा में बदलाव की लहर है, लेकिन जो बदलाव होगा, उसकी भी कोई गारंटी नहीं कि काम का हो. पिंडरा की नियति में ही यही है."

कठिराव गांव के पूर्व प्रधान अरुण कुमार बरनवाल कहते हैं, "उदल बुरे आदमी नहीं थे. सहज थे. हर किसी के लिए उपलब्ध रहते थे. लेकिन क्षेत्र के लिए उन्होंने कुछ नहीं किया, जिसके कारण ही लोगों ने अजय राय को अपना विधायक चुना था."

जीत के प्रति आश्वस्त हैं अजय राय

अजय इस बार भी अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हैं. वह कहते हैं, "मैं क्षेत्र की जनता के साथ हमेशा सुख-दुख में भागीदार रहा हूं. क्षेत्र के विकास में, लोगों की भलाई में कोई कसर नहीं छोड़ी है. जनता ने भी बराबर प्यार दिया है और इस बार भी मुझे जनता का पूरा प्यार मिल रहा है."

लेकिन बीजेपी उम्मीदवार अवधेश सिंह अजय की बातों से इत्तेफाक नहीं रखते. अवधेश कहते हैं, "पिछले 25 सालों में क्षेत्र बिल्कुल पिछड़ गया है. मौजूदा विधायक ने कुछ नहीं किया. वह कहते हैं कि जनता के साथ जन्म से लेकर श्मशान तक रहते हैं. शर्म आनी चाहिए उन्हें क्षेत्र की दशा देखकर. हमारे पास क्षेत्र को लेकर योजनाएं हैं, मैंने लोगों को बताया भी है. जीतने के बाद उसे जमीन पर उतारूंगा. अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नक्शे कदम पर पिंडरा का विकास होगा."

'' PM मोदी की किस्मत से किनारे लग जाएगी उनकी नैया''

काशी विद्यापीठ में प्राध्यापक डॉ. अवधेश सिंह इसके पहले कांग्रेस, एसपी और बीएसपी के टिकट पर इस सीट से चुनाव लड़ चुके हैं और उन्हें हर बार हार का सामना करना पड़ा है. लेकिन इस बार उन्हें भरोसा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की किस्मत से उनकी नैया किनारे लग जाएगी. लेकिन जीत और क्षेत्र के विकास के उनके दावे यहां राजनीति की बिसात पर बिछी जातीय मोहरों से तय होंगे, जहां बहुजन समाज पार्टी ने बाबू लाल पटेल को टिकट देकर दोनों उम्मीदवारों के सामने कड़ी चुनौती पेश कर दी है.

पिंडरा विधानसभा क्षेत्र में कुल 330,279 मतदाता हैं, जिसमें पुरुषों की संख्या 181,806 और महिला मतदाताओं की संख्या 148,465 है. इसमें पटेल समुदाय तथा दलित समुदाय के मत मिलकर किसी भी उम्मीदवार की जीत-हार का समीरकरण बदल सकते हैं.

गठबंधन और समीकरण कितने कारगर ?

हालांकि बीजेपी ने भी इस बार जातीय समीकरण साधने की कोशिश में पिछड़ी और अन्य पिछड़ी जातियों के वोट हासिल करने हेतु अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी जैसे क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन कर रखा है. कांग्रेस का भी सत्ताधारी समाजवादी पार्टी से गठबंधन है. लेकिन ये गठबंधन और समीकरण कितने कारगर है, यह अभी देखने वाली बात है. मतदान आठ मार्च को होना है और मतगणना 11 मार्च को. तब तक इंतजार करना ही बेहतर है.

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