ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखिका कृष्णा सोबती का 93 साल की उम्र में निधन
कृष्णा सोबती को उनके उपन्यास ‘जिंदगीनामा’ के लिए साल 1980 का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था. उन्हें 1996 में अकादमी के उच्चतम सम्मान ‘साहित्य अकादमी फैलोशिप’ से नवाजा गया था.

नई दिल्लीः मशहूर लेखिका कृष्णा सोबती का 94 साल की उम्र में निधन हो गया है. ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कृष्णा सोबती महिलाओं के मुद्दों पर जमकर कलम चला चुकी हैं. साल 1966 में प्रकाशित 'मित्रो मरजानी' उनका सबसे मशहूर उपन्यास है. इस उपन्यास के जरिए उन्होंने महिलाओं की आजादी के सवाल को समाज के बीच काफी मुखरता से उठाया था. इसके अलावा 'डार से बिछड़ी', 'दिलो-दानिश', 'ऐ लड़की' और 'समय सरगम' जैसे कई उपन्यास लिखे.
कृष्णा सोबति पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रही थीं और एक हफ्ते से अस्पताल में भर्ती थीं. आज सुबह करीब 8:30 बजे दिल्ली के एक अस्पताल में उनका निधन हुआ. घर में भाई और भतीजा है. उनका पार्थिव शरीर उनके मयूर विहार स्थित घर पर लाया गया है.
कृष्णा सोबती को उनके उपन्यास ‘जिंदगीनामा’ के लिए साल 1980 का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था. उन्हें 1996 में अकादमी के उच्चतम सम्मान ‘साहित्य अकादमी फैलोशिप’ से नवाजा गया था. इसके अलावा कृष्णा सोबती को पद्मभूषण, व्यास सम्मान, शलाका सम्मान से भी नवाजा जा चुका है.
कृष्णा सोबती के कालजयी उपन्यासों ‘सूरजमुखी अँधेरे के’, ‘दिलोदानिश’, ‘ज़िन्दगीनामा’, ‘ऐ लड़की’, ‘समय सरगम’, ‘मित्रो मरजानी’, ‘जैनी मेहरबान सिंह’, ‘हम हशमत’, ‘बादलों के घेरे’ ने कथा साहित्य को ताजगी दी.
उपन्यास ‘बुद्ध का कमंडल लद्दाख’ और ‘गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिन्दुस्तान’ भी उनके लेखन के उत्कृष्ट उदाहरण हैं. 18 फरवरी 1924 को गुजरात (वर्तमान पाकिस्तान) में जन्मी सोबती साहसपूर्ण रचनात्मक अभिव्यक्ति के लिए जानी जाती हैं.
उनके रचनाकर्म में निर्भिकता, खुलापन और भाषागत प्रयोगशीलता स्पष्ट परिलक्षित होती है. 1950 में कहानी ‘लामा’ से साहित्यिक सफर शुरू करने वाली सोबती स्त्री की आजादी और न्याय की पक्षधर है. उन्होंने समय और समाज को केंद्र में रखकर अपनी रचनाओं में एक युग को जिया है.
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