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Raaj Ki Baat: जम्मू कश्मीर में परिसीमन का स्वरूप बदलने के बाद क्या बदलेंगे सियासी हालात
जम्मू-कश्मीर में चुनाव से पहले परिसीमन की प्रक्रिया से उठाएंगे परदा, लेकिन पहले मौजूदा माहौल पर नजर फिराना जरूरी है. कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की विश्व पटल पर हाय-तौबा की साजिशों भोथरी हो चुकी है.
![Raaj Ki Baat: जम्मू कश्मीर में परिसीमन का स्वरूप बदलने के बाद क्या बदलेंगे सियासी हालात What will change the political situation after changing the nature of delimitation in Jammu and Kashmir Raaj Ki Baat: जम्मू कश्मीर में परिसीमन का स्वरूप बदलने के बाद क्या बदलेंगे सियासी हालात](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2021/06/24/9bb13d259378e2903a5628153a68729a_original.png?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
राज की बातः दो साल पहले जब गृह मंत्री अमित शाह ने संसद के पटल पर जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 (ए) को हटाने की ऐलान किया था तो करोड़ों भारतवासियों के लिए एक असम्भव सा स्वप्न पूरा होने जैसा था. कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग है, इस राष्ट्रीय संकल्प को ज़मीन पर उठाया गया यह सबसे सशक्त कदम था. मगर पूर्व पीएम और बीजेपी के श्लाका पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी की कवित 'आहुति बाक़ी यज्ञ अधूरा' की तरह मिशन कश्मीर को लेकर कुछ ज़रूरी कदम उठाने बाक़ी थे. तो राज की बात अब इसी कश्मीर यज्ञ की आखिरी आहुति को लेकर, जिसका विधान अब तैयार हो चुका है. जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा को भेजकर जो राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने की पीएम मोदी की कोशिश थी वो अब जमीन पर उतरने लगी है और जम्मू-कश्मीर में सभी दलों से बातचीत के बाद न सिर्फ उस दिशा में सरकार आगे बढ़ चुकी है, बल्कि परिसीमन के नए फार्मूले के जरिये राज्य का असंतुलन खत्म कर स्वस्थ लोकतंत्र को स्थापित करने की प्रक्रिया का प्लॉट भी लिखा जा चुका है.
जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा से मुक्त करने के बाद जिस तरह की आशांकायें तमाम बुद्धिजीवी और राजनीतिक दल लगा रहे थे, वैसा भी कुछ नहीं हुआ. सबसे बड़ी बात अलगाववादी अलग-थलग तो पड़ ही चुके थे, अब उनका कोई नामलेवा भी नहीं बचा. पाकिस्तान को हर अंतरराष्ट्रीय फोरम पर लगातार मुंह की खानी पड़ रही है. अशांति और आतंक फैलाने के उसके हर मंसूबे को राजनयिक और सैन्य हर स्तर पर पस्त किया जा रहा है.
ऐसे में प्रधानमंत्री आवास पर जम्मू कश्मीर के मसले पर हुई सर्वदलीय बैठक ऐतिहासिक है. ऐतिहासिक इसलिए क्योंकि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाने के बाद पहली बार इस मसले पर वार्ता के लिए सभी दल बैठे हैं. खासौतर से जम्मू कश्मीर का गुपकार गैंग जो इस मोदी सरकार के इस फैसले को किसी भी सूरत में मानने को तैयार नहीं था. इस बैठक के बाद बयान जो आए, वे हमने-आपने सबने सुने. मगर जो नहीं कहा गया या जिसकी चर्चा आज कोई नहीं कर रहा, असली राज उन्हीं को डिकोड करने में छिपा है.
सबसे बड़ी बात तो ये कि बात बात पर हुर्ऱियत राग अलापने की प्रथा बंद हुई और गुपकार गठबंधन ने भी पूर्ण राज्य के दर्जे के साथ चुनावी प्रक्रिया की मांग की. वरना सरकारी खर्चे पर हुर्रियत को दिल्ली बुलाना और उनकी आवभगत करने का चलन और यहीं आकर उनका ऊलूल-जुलूल बयन देकर चले जाना की परंपरा का अवसान हो चुका है. इस पूरी बैठक में या इसके दौरान कहीं भी पाकिस्तान परस्त हुर्रियत का कोई नामलेवा भी नहीं रहा. मतलब साफ है कि भारत सरकार के साहसिक कदम और मजबूत कार्ययोजना से पाकिस्तान के ये पिट्ठू अलग-थलग पड़ चुके हैं और अस्तित्वविहीन भी. हालंकि इन सबके बीच महबूबा का पाकिस्तान प्रेम जागा, लेकिन भाषा और तेवर बिल्कुल नरम थे और फर्क किसी को धेलेभर नहीं पड़ा. ये भी छोटी बात नहीं कि ये राजनीतिक दल पूर्ण राज्य और चुनाव की बात कर रहे हैं, मतलब मुख्य धारा में आने की ललक उनकी दिख रही है.
ये बैठक तो विश्वास बहाली और लोकतांत्रिक प्रक्रिया आगे ले जाने के लिए थी. चुनाव से पहले भारत सरकार परिसमीन कराएगी. कारण कि लद्धाख यहां से अलग होकर केंद्र शासित राज्य बन चुका है. फिलहाल केंद्र शासित से पूर्ण राज्य की दिशा में जम्मू-कश्मीर को ले जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस की अध्यक्षता में एक कमेटी राज्य की सीटों का परिसीमन करने में जुटी है. यहीं छिपी है आज की राज की बात. वो ये है कि 370 की सर्जरी के बाद के गढ़े जा रहे सियासी घावों का भऱना शुरु हो गया है. इस पूरी कहानी में जो सबसे अहम और सकारात्मक बात सामने आई है वो आपको बताते हैं.
दरअसल, जम्मू कश्मीर से 370 और 35ए हटाकर केंद्र की मोदी सरकार ने इस क्षेत्र का इतिहास बदला था और अब सुधार के विस्तार में केंद्र सरकार परिसीमन के पैमाने पर चुनावी भूगोल भी बदलने जा रही है. राज की बात ये है कि अंदरूनी तौर पर जम्मू कश्मीर में चुनाव की तैयारियां शुरु कर दी गई हैं और अब जब अगले चुनाव होंगे तो नए परिसीमन के साथ, नए संतुलन के साथ और नई सोच के साथ.
जम्मू और कश्मीर में चल रही चुनावी तैयारियों के बीच आपको सबसे पहले वर्तमान परिसीमन और भूगोल को समझना होगा. अभी की स्थिति ये है कि जम्मू क्षेत्र में इलाका बड़ा है, लेकिन जनसंख्या कम. आंकडों से समझे तो 62 फीसद क्षेत्रफल में 44 फीसद आबादी है. वहीं कश्मीर में 39 फीसद इलाका है, लेकिन आबादी 53 फीसद. इसीलिए, आबादी के आधार पर 46 विधानसभा सीटें कश्मीर संभाग तो 37 सीटें जम्मू संभाग के पास रहती थीं. कुल 73 विधानसभा सीटों वाले इस इलाके में पहले तो अनुसूचित जनजाति की 7 सीटें बढ़ाई जा रही हैं. ये जम्मू या कश्मीर में कहां जुड़ेंगी, इसको लेकर लगातार अभी से बहस चल रही है. हालांकि, राजनीतिक दल जब इस विवाद को गरम करने में लगे हैं, उस बीच संतुलन साधने का आयोग ने नया फार्मूला बना लिया है, जिससे किसी संभाग के साथ अन्याय का भाव न हो.
यह जानना जरूरी है कि परिसीमन में सिर्फ आबादी ही सीटों के गठन में आधार नहीं होती. वैज्ञानिक तौर पर तीन तथ्यों को ध्यान में रखा जाता है. पहला आबादी, दूसरा क्षेत्र और तीसरा प्रशासनिक सहूलियत. अभी तक जम्मू-कश्मीर संभाग का बंटवारा हॉरिजेंटल आधार पर है, मतलब भारत के नक्शे में जो मुकुट दिखता है, उसका नीचे का हिस्सा जम्मू और ऊपर का कश्मीर. सीटों का परिसीमन भी इसी आधार पर था.
अब राज की बात ये है कि जिस पद्धति और परिसीमन पर अभी तक चुनाव हो रहे थे वो हॉरिजेंटल परिसीमन था लेकिन अब ये तस्वीर उलटने जा रही है. मतलब अब वर्टिकल या परपेंडिक्यूलर परिसीमन होगा. इसे आसान भाषा में समझने के लिए अभी तक सीटों का बंटवारा बाएं से दाएं या दाएं से बाएं काटकर होता था. अब उसकी जगह ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर यानी खड़ी लकीर के साथ सीटें बटेंगी.
जी राज की बात ये है कि नेपाल की ही तर्ज पर हिमालय की गोद में बसे इस क्षेत्र का परिसीमन अब खड़ी लकीर यानी उत्तर से दक्षिण की तरफ होगा. अभी तक ये पूरब-पश्चिम यानी पड़ी लकीर के आधार पर होता था. इस तरह जम्मू-कश्मीर संभाग का स्पष्ट विभाजन जो दिखता था वो नहीं रहेगा. वोटों का संतुलन भी ज्यादा तार्किक और समावेशी होगा. मतलब इस परिसीमन में सिर्फ सात सीटें ही नहीं बढ़ेंगी, जिसमें अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा. इस प्रक्रिया से सामाजिक संतुलन को भी बेहतर करने की राह प्रशस्त होगी.
यानि कि कुल मिलाकर तैयारी ये है कि ऐतिहासिक, भौगोलिक औऱ सामाजिक स्तर पर जो भी गलतियां प्रशासनिक और राजनैतिक तौर पर हुई हैं उन्हें एक बार में ही सुधार दिय जाए ताकि समस्या जड़ से खत्म हो. परिसीमन और चुनाव की तैयारियों के सात ही साथ कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास का प्लान भी तैयार किया जा रहा है. यानि देश के मस्तक पर जो भी परिवर्तन किए जा रहे हैं वो जम्मू कश्मीर के विकास के साथ ही साथ सकारात्मक दूरगामी परिणाम देने वाले होंगे और सबसे अहम ये कि ये देखने वाली बात होगी कि परिसीमन का स्वरूप बदलने के बाद सियासी हालात जम्मू कश्मीर में कितने बदलते हैं.
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