मनोज तिवारी से सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हमें सूची दें, हम आपको सीलिंग अधिकारी बनाएंगे’
ल्ली के मास्टर प्लान का उल्लंघन करते हुए चल रहे एक परिसर की सील कथित तौर पर हटाने के मामले में मनोज तिवारी को अवमानना नोटिस जारी किया गया था.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी में अवैध इमारतों की सीलिंग पर उसके निर्देशों का कथित रूप से उल्लंघन करने के मामले में दिल्ली के बीजेपी अध्यक्ष और सांसद मनोज तिवारी से नाराजगी जताई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सांसद होने से उन्हें कानून अपने हाथ में लेने की आजादी नहीं मिल जाती. कोर्ट ने यह भी कहा, ‘‘मिस्टर तिवारी, आप अपनी सीडी में कह रहे हैं कि एक हजार जगह ऐसी हैं जिन्हें सील किये जाने की जरूरत है. हमें इन जगहों की सूची दें। हम आपको सीलिंग अधिकारी बनाएंगे.’’
तिवारी को जारी किया गया था अवमानना नोटिस
दिल्ली के मास्टर प्लान का उल्लंघन करते हुए चल रहे एक परिसर की सील कथित तौर पर हटाने के मामले में तिवारी को अवमानना नोटिस जारी किया गया था. नोटिस के अनुरूप वह अदालत में पेश हुए. सुप्रीम कोर्ट ने तिवारी के उस बयान पर नाराजगी प्रकट की जिसमें उन्होंने कहा था कि निगरानी समिति एक हजार अवैध भवनों को सील नहीं कर रही है. न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने तिवारी को दिल्ली में सीलिंग के मामले में एक समाचार चैनल से बातचीत में किये गये इस दावे पर स्पष्टीकरण देने को कहा और मामले में एक सप्ताह के अंदर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया. पीठ में न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता भी शामिल हैं.
उत्तर पूर्व दिल्ली से लोकसभा सदस्य तिवारी के खिलाफ पूर्वी दिल्ली नगर निगम ने गोकलपुरी इलाके में एक परिसर की कथित तौर पर सील हटाने के मामले में प्राथमिकी दर्ज कराई थी. तिवारी की ओर से वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि बीजेपी नेता ने कोई सील नहीं हटाई और सांसद होते हुए उन्होंने कभी सीलिंग प्रक्रिया को बाधित भी नहीं किया. वकील ने कहा कि उन्हें विस्तृत जवाब देने के लिए समय चाहिए होगा.
तिवारी ने सीडी में कहा था- एक हजार जगहें ऐसी हैं जहां सीलिंग की जरूरत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘‘हम आपसे पूछ रहे हैं, क्या आपने सीडी देखी है? सीडी में वह कह रहे हैं कि एक हजार जगहें ऐसी हैं जहां सीलिंग की जरूरत है. वह संसद सदस्य हैं. इससे उन्हें कानून हाथ में लेने की आजादी नहीं मिल जाती.’’ कोर्ट ने तिवारी को तीन अक्तूबर को पेश होने का निर्देश दिया जब मामले में अगली सुनवाई होगी. इस संबंध में शीर्ष अदालत के आदेश से बनी निगरानी समिति की तरफ से दाखिल रिपोर्ट पर गंभीरता से संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पहले कहा था कि दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोई जनप्रतिनिधि शीर्ष अदालत के आदेशों की अवमानना करता है. कोर्ट ने समिति की रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए कहा कि यह ‘अधिक चिंताजनक स्थिति’ को दर्शाती है.
निगरानी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘‘इस अदालत के बार बार दिये गये निर्देशों के बावजूद राजनीतिक दलों के सदस्य और ऐसे अन्य लोग जानबूझकर अदालत के निर्देशों की अवहेलना कर रहे हैं और राजनीतिक फायदों के लिए उनके प्रति असम्मान प्रकट कर रहे हैं.’’
समिति ने मामले में की कड़ी कार्रवाई की सिफारिश
दिल्ली सीलिंग मामले में न्यायमित्र के रूप में अदालत को सहयोग दे रहे वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने समिति की रिपोर्ट पीठ के समक्ष रखी थी और कहा कि डेयरी के रूप में इस्तेमाल की जा रही जगह की सीलिंग कथित तौर पर हटाने के मामले में तिवारी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी है. कुमार ने बताया था कि परिसर को पुन: सील कर दिया गया है और घटना का वीडियो समिति की रिपेार्ट के साथ संलग्न कर दिया गया है. समिति ने मामले में कड़ी कार्रवाई की सिफारिश की है.
निगरानी समिति में चुनाव आयोग के पूर्व सलाहकार के जे राव, पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण के अध्यक्ष भूरे लाल और मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) सोम झींगन हैं. अदालत ने 24 मार्च, 2006 को समिति का गठन किया था. सुप्रीम कोर्ट अनधिकृत निर्माण कार्यों को सीलिंग से बचाने वाले ‘दिल्ली कानून (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2006’ और उसके बाद के अन्य कानूनों की वैधता से जुड़े मुद्दों पर भी विचार कर रहा है.
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