Mughal Emperor Education: कौन था मुगल साम्राज्य का सबसे पढ़ा-लिखा बादशाह? जानें
मुगल शहजादों की पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था आमतौर पर उनके दरबार या निजी शिक्षण तक सीमित थी. वे विदेश जाकर पढ़ाई नहीं करते थे, बल्कि दुनिया के श्रेष्ठ विद्वान दरबार में आकर उन्हें शिक्षित करते थे.

मुगल साम्राज्य को आमतौर पर उनकी विशाल सत्ता, कला और प्रशासनिक व्यवस्था के लिए जाना जाता है, लेकिन शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में भी यह दौर बेहद महत्वपूर्ण रहा है. मुगल शासकों का मानना था कि मजबूत शासन के लिए विद्वता और बौद्धिक समझ उतनी ही जरूरी है जितनी सैन्य शक्ति. यही वजह है कि मुगल दरबार में शिक्षकों, विद्वानों और लेखकों को विशेष सम्मान दिया जाता था. इस बात का समर्थन कई लेखक करते हैं, जिनमें अली एम अजीज, इरफान हबीब और जेएन सरकार शामिल है. इन लोगों ने अपनी किताबों में मुगल दरबार की परंपरा का बखूबी जिक्र किया है.
मुगल शहजादों की शिक्षा आम स्कूलों या विदेशों में नहीं होती थी. उन्हें महलों के भीतर ही पढ़ाया जाता था. फारसी, अरबी, इतिहास, भूगोल, गणित, साहित्य और दर्शन जैसी विधाएं शिक्षा का हिस्सा थीं. आगरा और लाहौर जैसे शहर उस दौर के बड़े शैक्षणिक केंद्र माने जाते थे, जहां देश-विदेश के विद्वान आकर शहजादों को पढ़ाते थे.
दारा शिकोह ज्ञान और आध्यात्म का प्रतीक
शाहजहां के बड़े पुत्र दारा शिकोह को मुगल इतिहास का सबसे विद्वान और विचारशील शहजादा माना जाता है. उन्हें सत्ता या युद्ध में खास दिलचस्पी नहीं थी, बल्कि उनका झुकाव आध्यात्म और दर्शन की ओर था. वे सूफी संतों के संपर्क में रहते थे और अलग-अलग धर्मों की शिक्षाओं को समझने का प्रयास करते थे. दारा शिकोह का मानना था कि सभी धर्मों की मूल भावना एक जैसी है. इसी सोच के तहत उन्होंने उपनिषदों का अध्ययन किया और करीब 50 उपनिषदों का फारसी भाषा में अनुवाद करवाया. उनकी प्रसिद्ध रचना मज्म-उल-बहरेन में सूफी मत और वेदांत दर्शन के बीच समानताओं को समझाया गया है. यही कारण है कि इतिहासकार उन्हें मुगल युग का सबसे प्रगतिशील और शिक्षित शहजादा मानते हैं.
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