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हीट वेव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बैठक, बढ़ते तापमान ने क्यों उड़ाई केंद्र की नींद?

बैठक में पीएम ने निर्देश दिया कि आने वाले महीनों में गर्मी में लगने वाली आग को देखते हुए सभी अस्पतालों में इसका ऑडिट किया जाए. हर रोज दिए जाने वाले मौसम के पूर्वानुमान को आसान भाषा में समझाया जाए.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 मार्च को आने वाले महीनों में होने वाली गर्मी की संभावना को देखते हुए बैठक की. इस बैठक में केंद्रीय गृह सचिव और कैबिनेट सचिव के अलावा कई आला अधिकारी शामिल हुए थे. पीएम को इस बैठक में मानसून, गेहूं और अन्य रबी फसलों पर मौसम के प्रभाव और अन्य विषयों के बारे में जानकारी दी गई.

मीटिंग में पीएम ने क्या कहा

बैठक में पीएम ने निर्देश दिया कि आने वाले महीने में गर्मी में लगने वाली आग को देखते हुए सभी अस्पतालों में आग का ऑडिट किया जाए. इसके अलावा पीएम मोदी ने मौसम विभाग से हर रोज दिए जाने वाले पूर्वानुमान को इस तरीके से जारी करने को कहा है जिसे आसानी से समझा जा सके. बैठक में इस बात पर भी चर्चा हुई कि टीवी न्यूज चैनल और एफएम रेडियो दैनिक मौसम पूर्वानुमान को समझाने के लिए रोजाना कुछ मिनट खर्च कर सकते हैं.

बैठक में सिंचाई के लिए पानी की सप्लाई, चारा और पेयजल की निगरानी के लिए चल रहे प्रयासों की भी समीक्षा की गई. इसके अलावा प्रधानमंत्री को आवश्यक आपूर्ति की उपलब्धता और इमरजेंसी के लिए तैयारियों के संदर्भ में राज्यों और अस्पतालों के बुनियादी ढांचे की तैयारियों के बारे में जानकारी दी गई.

पीएम नरेंद्र मोदी ने बैठक के दौरान गर्मी के कारण जंगल में लगने वाली आगों से बचने के लिए प्रयासों की आवश्यकता पर जोर दिया. पीएम ने कहा कि इसे रोकने और इस समस्या से निपटने के प्रयासों के लिए प्रणालीगत परिवर्तन किए जाने की आवश्यकता है. 

इसके अलावा प्रधानमंत्री ने निर्देश दिया कि गर्मी के मौसम के दौरान जलाशयों में चारे और पानी की उपलब्धता पर नजर रखी जाए. पीएमओ ने जानकारी दी कि भारतीय खाद्य निगम को प्रतिकूल मौसम की स्थिति में अनाज के भंडारण को सुनिश्चित करने के लिए तैयार करने के लिए कहा गया.

फरवरी का औसत तापमान

इस साल की शुरुआत कड़ाके की ठंड से हुई लेकिन फरवरी महीना आते आते मौसम का तापमान बढ़ गया. आंकड़ों की मानें तो एक तरफ जहां इस साल यानी की सर्दी ने बीते कई सालों के रिकॉर्ड तोड़ दिया. उम्मीद लगाई जा रही थी कि 2023 में सर्दियां कुछ महीनों तक तो जरूर रहेगी. हालांकि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. 2023 में जनवरी का महीना खत्म होते-होते उत्तर भारत के मौसम में हल्की गर्मी महसूस की जाने लगी. 

इसके बाद फरवरी में तो इतनी गर्मी पड़ी की सारे रिकॉर्ड ही टूट गए. बढ़ते तापमान की बात की जाए तो सिर्फ दिल्ली में फरवरी के महीने में अब तक का तीसरा सबसे ज्यादा अधिकतम तापमान दर्ज किया गया. फरवरी 2023 में राजधानी में 27.7 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया.   

मौसम विभाग के आंकड़ों की माने तो फरवरी के लिए भारतीय क्षेत्र का औसत अधिकतम मासिक तापमान बढ़कर 29.5 डिग्री सेल्सियस हो गया, जो 1901 के बाद का ज्यादा है.

मार्च में बढ़ेगा तापमान 

आईएमडी की रिपोर्ट के अनुसार मार्च महीने में देश के ज्यादातर हिस्सों का तापमान सामान्य से ज्यादा की उम्मीद है. इन क्षेत्रों में नॉर्थ वेस्ट इंडिया और सेंट्रल और ईस्ट भारत के क्षेत्र भी शामिल हैं. केवल दक्षिणी प्रायद्वीपीय के इलाकों में सामान्य से कम अधिकतम तापमान हो सकता है.

2022 में भी हीट वेव ने किया था लोगों का हाल बेहाल

पिछले साल यानी 2022 में भारत में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ी थी. देश के कई क्षेत्रों में अप्रैल के महीने में भयंकर लू चल रही थी, अप्रैल महीने देश का जो तापमान था उसने 122 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ डाला था. वहीं दूसरी तरफ अचानक बढ़े तापमान के कारण  भारत के कृषि उत्पादन पर भी इसका बहुत बुरा असर पड़ा था.

सरकार की नींद क्यों उड़ी

साल 2022 के अधिकतम और न्यूनतम तापमान में अचानक हुई बढ़त ने 9 राज्यों पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, जम्मू -कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में उपजने वाले फसलों, फलों, सब्जियों और जानवरों को बुरी तरह से प्रभावित किया था. 

साल 2022 के अप्रैल और मार्च महीने में ज्यादा तापमान के कारण गेहूं और आम की पैदावार पर बुरा असर पड़ा था. फसल का खराब होने से सरकार की नींद इसलिए उड़ी हुई है क्योंकि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है और अगर फसल के उपज पर असर पड़ता है तो व्यापार में भी नुकसान होगा.  अब जानते हैं कि आने वाले महीनों में ज्यादा गर्मी पड़ती है तो सरकार को क्या नुकसान होगा.

1. गेहूं का उत्पादन: अगर इस साल फरवरी में ही मार्च-अप्रैल जितनी गर्मी पड़ती है तो इस गर्मी के कारण गेहूं का उत्पादन प्रभावित हो सकता है. इसके अलावा दिन के साथ साथ रात का तापमान भी सामान्य के मुकाबले दो से ढाई गुना ज्यादा रह रहा है. जिसके कारण फसल जल्दी पकने की संभावना है. फसल समय से पहले पक जाने के कारण इसके दाना का पूरा ग्रोथ नहीं होगा और पैदावार सामान्य से कम रह जाएगी. ऐसा अनुमान जताया जा रहा है कि तेज गर्मी पड़ती है तो इस बार 10 से 15 प्रतिशत गेहूं की पैदावार कम होगी. 

2. ग्रीष्मकालीन फसल पर प्रभाव: जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव त्वचा और सेहत तक ही सीमित नहीं रहेगा बल्कि इस समस्या का जल्दी कोई समाधान नहीं निकाला गया तो इसका असर सीधे तौर पर ग्रामीण इलाकों में की जाने वाली खेती  पड़ पड़ेगा. 

कृषि विशेषज्ञों ने चेतावनी दी गई है कि, इस साल  मार्च और अप्रैल में पड़ने वाला मानसून गर्मी की फसलों, 'रबी' (सर्दियों) और 'खरीफ' (मानसून) की फसलों को नुकसान पहुंचा सकता है. गर्मी की फसलों को होने वाले नुकसान को लेकर सरकार और किसान दोनों ही बेहद चिंतित हैं. विशेषज्ञों की मानें तो गर्मियों की फसलों के लिए अधिकतम सहनीय तापमान 35 डिग्री सेल्सियस होता है, और अगर तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंचता है, तो इससे फसलों को भारी नुकसान पहुंचेगा. 

3.  मौसमी सब्जी का नुकसान: ज्यादा गर्मी के कारण मौसमी सब्जियों में कीट का प्रकोप बढ़ जाता है. जिससे किसानों को मौसमी सब्जी का नुकसान होगा.

4. गर्मी से होने वाली बीमारी: लगातार बढ़ रहे पारा और लू का सीधा असर इंसानी शरीर पर होता है. सेहत के लिहाज से मौसम को काफी चुनौतीपूर्ण माना जाता है, अगर ऐसे समय में लापरवाही बरती गई तो उन्हें कई तरह की बीमारियां हो सकती है. स्वास्थ्य विशेषज्ञ सभी लोगों से गर्मी से बचाव वाले उपाय करते रहने की अपील करते हैं.

फूड पॉइजनिंग की परेशानी 

फूड पॉइजनिंग गर्मी की सबसे आम बीमारियों में से एक है. यह समस्या दूषित भोजन खाने या पानी पीने के कारण होता है. गर्मी के दिनों में बढ़ते तापमान के कारण खाने में बैक्टीरिया, वायरस तेजी से पनपने लगते हैं. ये वायरस भोजन के रास्ते हमारे शरीर में प्रवेश करने के बाद पेट दर्द, मतली, दस्त या उल्टी जैसी समस्याओं का कारण बनते हैं.

डिहाइड्रेशन की समस्या

डिहाइड्रेशन का मतलब आसान भाषा में समझे तो शरीर में पानी की कमी होना है, हालांकि यह बीमारी समय रहते ठीक की जा सकती है. दरअसल गर्मी के मौसम में इंसान अपने शरीर से पसीने के रूप में बहुत सारा पानी खो देता है, इसी अनुपात में अगर पानी न पिया जाए तो शरीर में इसकी कमी हो सकता है. डिहाइड्रेशन होने से कमजोरी, थकान, रक्तचाप, बुखार जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. 

हीट स्ट्रोक या लू लगना

हीट स्ट्रोक को मेडिकल टर्म में 'हाइपरथर्मिया' कहते हैं और यह गर्मी के मौसम में होने वाली सबसे आम बीमारी है. यह बीमारी लंबे समय तक बाहर धूप में रहने या गर्म तापमान में रहने कारण होती है. हीट स्ट्रोक में मरीज को सिर में दर्द, चक्कर, कमजोरी और  बेहोशी जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं. इसे हिंदी भाषा में लू लगना भी कहते हैं. 

स्किन पर चकत्ते या घमौरी 

गर्मी बढ़ने के साथ ही शरीर में चकत्ते या घमौरी होना भी आम है. ऐसा होने का कारण गर्मी में पसीना ज्यादा निकलना है.

टाइफाइड 

यह भी गर्मी में होने वाली बेहद आम बीमारी है. टाइफाइड जो दूषित पानी पीने से होता है. आमतौर पर जब संक्रामक बैक्टीरिया शरीर में प्रवेश करता है तब टाइफाइड की समस्या होती है. इस बीमारी के होने से मरीज को तेज बुखार, भूख न लगना, पेट में तेज दर्द होना, कमजोरी महसूस होने जैसी बीमारियों का सामना करना पड़ता है.

मीजल्स और चिकन पॉक्स

गर्मी के मौसम में चिकन पॉक्स और मीजल्स यानी खसरा और जैसी बीमारियों का भी खतरा बढ़ जाता है. मीजल्स और चिकन पॉक्स दोनों ही वायरस से होने वाली बीमारी है. चिकनपॉक्स में शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर लाल रंग के चकत्ते दिखना, करीब 7 से 10 दिन तक शरीर पर लाल दाने और चकत्ते बने रहना या बुखार आना चिकन पॉक्स के लक्षण हैं.

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