‘क्या पुजारियों को ASI से मिलता है वेतन?’, लोकसभा में पूछे सवाल पर क्या बोले गजेंद्र सिंह शेखावत
Parliament Winter Session: केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की ओर से मंदिरों के पुजारियों को कोई वेतन या भत्ता नहीं दिया जाता है.

संसद के शीतकालीन सत्र के आठवें दिन सोमवार (8 दिसंबर, 2025) को शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे/यूबीटी) गुट के एक सांसद अनिल देसाई ने लोकसभा में केंद्र सरकार से एक सवाल किया. सांसद अनिल देसाई ने देश भर के पुजारी और मौलवियों की सैलेरी और भत्ता को लेकर सवाल पूछते हुए कहा कि क्या संस्कृति मंत्री यह बताएंगे कि क्या देश में मंदिर के पुजारियों को सरकार की ओर से वेतन, भत्ता या अन्य सुविधाएं प्रदान की जाती हैं?
अगर हां, तो उसका पूरा विवरण दें और अगर नहीं, तो इसके पीछे के कारण बताएं. इसके अलावा, क्या किसी मस्जिद के मौलवी या किसी चर्च के पादरी को केंद्रीय और/या राज्य सरकारें कोई वेतन आदि देतीं हैं? अगर हां, तो सरकार उसका पूरा विवरण दें.
केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री ने लोकसभा में दिया जवाब
शिवसेना (यूबीटी) के सांसद अनिल देसाई के सवाल पर केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने केंद्र सरकार की ओर से जवाब दिया. केंद्रीय मंत्री ने कहा, “भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI), संस्कृति मंत्रालय का एक संलग्न कार्यालय, केंद्रीय संरक्षित स्मारकों (CPMs) के संरक्षण, रखरखाव और संधारण के लिए उत्तरदायी है, जिसमें मंदिर भी शामिल हैं. हालांकि, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की ओर से इन मंदिरों के पुजारियों को कोई वेतन या भत्ता नहीं दिया जाता है.”
उन्होंने आगे कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से किसी भी मंदिर के पुजारी या मस्जिद के मौलवी या चर्च के पादरी को किसी तरह का कोई वेतन, भत्ता या कोई अन्य सुविधा नहीं दी जाती है.
राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् पर क्या बोले गजेंद्र सिंह शेखावत?
लोकसभा में राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् पर सोमवार (8 दिसंबर, 2025) को चर्चा के दौरान केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा के बयान पर पलटवार किया. इसके साथ ही उन्होंने कांग्रेस सांसद से लोकसभा में दिए गए तथ्यों को सत्यापित करने को भी कहा. दरअसल, प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा था कि महाकवि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 1875 में वंदे मातरम् के दो अंतरे लिखे थे और 1882 में चार अन्य अंतरे जोड़कर उन्हें अपने उपन्यास में प्रकाशित किया था.
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