POCSO मामले में येदियुरप्पा को राहत, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की कार्यवाही पर लगाई रोक
बी. एस. येदियुरप्पा के वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कहा, 'कुछ बयान ऐसे हैं जिन्हें अभियोजन पक्ष ने दबा दिया… हाईकोर्ट ने तथ्यों को अनदेखा कर दिया. याचिकाकर्ता चार बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं.'

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा को पॉक्सो कानून के तहत दर्ज यौन उत्पीड़न मामले में राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हाईकोर्ट की कार्यवाही पर अंतरिम रोक लगा दी है. मंगलवार (2 दिसंबर, 2025) को सुप्रीम कोर्ट येदियुरप्पा की याचिका पर सुनवाई कर रहा था.
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमल्या बागची की बेंच के सामने येदियुरप्पा की याचिका लगी, जिसमें उन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने येदियुरप्पा के खिलाफ मामला रद्द करने से इनकार कर दिया था. मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा, 'नोटिस जारी किया जाए. इस बीच निचली अदालत की कार्यवाही स्थगित रहेगी.'
येदियुरप्पा की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण साक्ष्यों को नजरअंदाज कर दिया और उन बयानों पर ध्यान नहीं दिया जिनसे इस बात के संकेत मिलते हैं कि घटना के दौरान ऐसा कुछ हुआ ही नहीं. एडवोकेट लूथरा ने कहा, 'कुछ बयान ऐसे हैं जिन्हें अभियोजन पक्ष ने दबा दिया… हाईकोर्ट ने तथ्यों को अनदेखा कर दिया. याचिकाकर्ता चार बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं.'
सीजेआई सूर्यकांत ने कहा, 'आप हाईकोर्ट को मिनी ट्रायल के लिए कैसे बाध्य कर सकते हैं?' पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण) अधिनियम के तहत दर्ज प्राथमिकी 14 मार्च 2024 को दर्ज की गई उस शिकायत से उत्पन्न हुई है, जिसमें एक महिला (अब दिवंगत) ने आरोप लगाया था कि येदियुरप्पा ने उनकी 17 वर्षीय बेटी से उस वक्त छेड़छाड़ की थी जब वे सहायता मांगने के लिए उनके आवास पर गई थीं.
महिला ने यह भी आरोप लगाया था कि पूर्व मुख्यमंत्री ने पैसे की पेशकश कर घटना को दबाने की कोशिश की. उनकी शिकायत के आधार पर पुलिस ने पॉक्सो अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की.
बाद में चार जुलाई 2024 को एक निचली अदालत ने न केवल येदियुरप्पा के खिलाफ, बल्कि तीन अन्य लोगों के खिलाफ भी साक्ष्य नष्ट करने और मामले को दबाने के प्रयास के आरोपों पर संज्ञान लिया. इसके बाद कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस संज्ञान आदेश को अस्पष्ट बताते हुए रद्द कर दिया और निचली अदालत को पुनर्विचार करने का निर्देश दिया. इसके बाद 28 फरवरी को त्वरित विशेष अदालत ने एक नया संज्ञान आदेश जारी किया और येदियुरप्पा और अन्य आरोपियों को 15 मार्च को पेश होने के लिए तलब किया.
येदियुरप्पा ने 28 फरवरी के इस आदेश और शिकायत को उच्च न्यायालय में चुनौती दी और कहा कि आरोप राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित और असंगत हैं।
हालाकि, उच्च न्यायालय ने पिछले महीने मामला रद्द करने से इनकार कर दिया, जिसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री ने उच्चतम न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया।
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Source: IOCL






















