दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार पर FIR का आदेश, CBI में जॉइंट डायरेक्टर रहते जांच में गड़बड़ी और धमकाने का आरोप
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पंकज मिथल और प्रसन्ना बी वराले की बेंच ने 25 सालों से इन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के खिलाफ जांच न होने को कानून का मजाक बताया.

सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला देते हुए दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार और पूर्व एसीपी विनोद पांडे के खिलाफ एफआईआर का आदेश दिया है. मामला तब का है जब दोनों सीबीआई में नियुक्ति पर थे. नीरज कुमार संयुक्त निदेशक और विनोद पांडे इंस्पेक्टर थे. 25 साल पुराने इस मामले में दोनों पर दस्तावेजों में हेरफेर, जालसाजी, गलत तरीके हिरासत में लेने और धमकाने जैसे कई आरोप हैं.
साल 2000 के इस मामले में विजय अग्रवाल और शीश राम सैनी नाम के 2 व्यक्तियों की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट 2006 में एफआईआर का आदेश दिया था. हाई कोर्ट ने माना था कि दोनों अधिकारियों के खिलाफ प्रथमदृष्टया संज्ञेय अपराध का मामला बनता है. हाई कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के एसीपी रैंक के अधिकारी को जांच का ज़िम्मा सौंपने को कहा था.
क्या हैं दोनों अधिकारियों पर आरोप?
नीरज कुमार और विनोद पांडे पर आरोप है उन्होंने पूर्व आईआरएस अधिकारी अशोक कुमार अग्रवाल के खिलाफ मामले की जांच के दौरान दस्तावेज़ों में हेरफेर और जालसाजी की थी. उनके नेतृत्व वाली सीबीआई (CBI) की टीम ने 26 अप्रैल, 2000 को कुछ दस्तावेज जब्त किए, लेकिन उसका जब्ती ज्ञापन (seizure memo) अगले दिन, यानी 27 अप्रैल, 2000 को बनाया गया.
मामला आगे बढ़ने पर उन्होंने अशोक अग्रवाल के छोटे भाई विजय अग्रवाल को अवैध रूप से समन किया. इसका मकसद अशोक अग्रवाल की तरफ से नीरज कुमार के खिलाफ की गई शिकायत को वापस लेने के लिए दबाव बनाना था. ऐसा करते समय उन्होंने निचली अदालत से विजय को मिली जमानत के आदेश का भी उल्लंघन किया.
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा- कानून का मजाक
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पंकज मिथल और प्रसन्ना बी वराले की बेंच ने दोनों अधिकारियों की अपील को खारिज कर दिया. जजों ने 25 वर्षों से इन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के खिलाफ जांच न होने को कानून का मजाक बताया. उन्होंने कहा कि एफआईआर की जांच दिल्ली पुलिस के एसीपी रैंक के अधिकारी करें. कोशिश की जाए कि जांच 3 महीने में पूरी हो. दोनों आरोपी जांच में सहयोग करें. दोनों की गिरफ्तारी तब तक न हो जब तक जांच अधिकारी को ऐसा करना जरूरी न लगे.
अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने जांच अधिकारियों को जवाबदेह बनाने पर जोर दिया है. कोर्ट ने कहा, "अब समय आ गया है कि कभी-कभी उनकी भी जांच हो जो दूसरों की जांच करते हैं. व्यवस्था में लोगों के विश्वास को बनाए रखने के लिए यह जरूरी है."
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