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योगी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका, धर्मांतरण रोधी कानून के तहत दर्ज कई FIR रद्द

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सर्वोच्च संवैधानिक कोर्ट के रूप में इस कोर्ट को संविधान के भाग 3 के तहत मौलिक अधिकारों के हनन के विरुद्ध राहत प्रदान करने की शक्तियां प्रदान की गई हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (17 अक्टूबर, 2025) को उत्तर प्रदेश के धर्मांतरण रोधी कानून के तहत दर्ज की गई कई प्राथमिकिओं को रद्द कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपराधिक कानून निर्दोष नागरिकों को परेशान करने का साधन नहीं हो सकता और हिंदुओं को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के कथित अपराध को लेकर उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में दर्ज कई प्राथमिकी रद्द कर दीं.

उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के आह्वान पर एक महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने उत्तर प्रदेश के सैम हिगिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज (SHUATS) के कुलपति राजेंद्र बिहारी लाल सहित कई व्यक्तियों के खिलाफ पांच प्राथमिकियों को रद्द कर दिया.

न्यायमूर्ति पारदीवाला, जिन्होंने 158 पन्नों का फैसला लिखा, ने पाया कि प्राथमिकियां कानूनी खामियों, प्रक्रियागत खामियों और विश्वसनीय सामग्री के अभाव के कारण दोषपूर्ण थीं. उन्होंने फैसला सुनाया कि इस तरह के अभियोजन को जारी रखना न्याय का उपहास होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में क्या कहा?

फैसले में, 2022 में दर्ज एक प्राथमिकी के पंजीकरण में स्पष्ट खामियों का जिक्र करते हुए कहा गया, ‘आपराधिक कानून को निर्दोष व्यक्तियों के उत्पीड़न का साधन बनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जिससे मुकदमा चलाने वाली एजेंसियों को पूरी तरह से अविश्वसनीय सामग्री के आधार पर अपनी मर्जी और कल्पना से मुकदमा शुरू करने की अनुमति मिल सके.’

एक प्राथमिकी के तथ्यों का हवाला देते हुए फैसले में कहा गया, ‘पुलिस के लिए यह संभव नहीं था कि वह निहित स्वार्थ वाले लोगों से एक ही कथित घटना के बारे में काफी विलंब से शिकायत करा कर और उसके बाद उन्हीं आरोपियों के खिलाफ नए सिरे से जांच शुरू करके इस कठिनाई को दूर कर सके. दुर्भाग्य से, रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री से ऐसा ही लगता है.’

पीठ ने इस दलील को खारिज कर दिया कि संविधान के अनुच्छेद 32 (मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए सुप्रीम कोर्ट में जाने का अधिकार) के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट की ओर से प्राथमिकियों को रद्द नहीं किया जाना चाहिए.

संविधान ने सुप्रीम कोर्ट को ऐसी जिम्मेदारियां दी हैं- न्यायमूर्ति

कोर्ट ने कहा, ‘सर्वोच्च संवैधानिक कोर्ट के रूप में इस कोर्ट को संविधान के भाग 3 के तहत मौलिक अधिकारों के हनन के विरुद्ध राहत प्रदान करने की शक्तियां प्रदान की गई हैं. यह तथ्य कि इस अधिकार को स्वयं एक मौलिक अधिकार के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है, इस बात की स्पष्ट पुष्टि करता है कि यह न्यायालय उनके प्रवर्तन का अंतिम गारंटर है.’

पीठ ने कहा, ‘संविधान ने इस पर ऐसी जिम्मेदारी डाल दी है तो इस न्यायालय को याचिकाकर्ता को वैकल्पिक उपाय अपनाने का निर्देश देने की आवश्यकता नहीं है, जब शिकायत मौलिक अधिकार के कथित हनन से उत्पन्न हुई हो.’ पीठ ने कहा कि असाधारण तथ्यों की मांग है कि प्राथमिकियों को रद्द किया जाना चाहिए.

कोर्ट ने प्राथमिकियों में बड़ी खामी की ओर किया इशारा

कोर्ट ने प्रत्येक प्राथमिकी के तथ्यों पर विस्तार से चर्चा की और एक बड़ी खामी की ओर इशारा किया, जिसमें यह भी शामिल था कि धर्मांतरण का कोई भी पीड़ित शिकायत लेकर पुलिस के पास नहीं पहुंचा. हालांकि, पीठ ने छह प्राथमिकियों में से एक से संबंधित याचिकाओं को इस आधार पर अलग करने का आदेश दिया कि यह नए सिरे से निर्णय के लिए कुछ अन्य अपराधों से संबंधित है और यह स्पष्ट किया कि आरोपियों को पहले दी गई अंतरिम सुरक्षा मामले के अंतिम रूप से तय होने तक जारी रहेगी.

फैसलों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा, ‘जहां उच्च न्यायालय इस बात से संतुष्ट है कि किसी न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया जा रहा है या दुरुपयोग होने की संभावना है या न्याय का लक्ष्य प्राप्त नहीं होगा, तो उसे कानून के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करने का न केवल अधिकार है, बल्कि दायित्व भी है.’ हालांकि, पीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश कानून, एक विशेष कानून होने के नाते, दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) से अलग कुछ विशेष प्रक्रियात्मक मानदंड निर्धारित करता है.

गवाहों के बयान पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट ने कहा, ‘कानून की यह स्थापित स्थिति है कि विधायिका की मंशा को कानून के स्पष्ट पाठ से समझा जाना चाहिए और यदि स्पष्ट व्याख्या से कोई असंगति नहीं निकलती है या वह अव्यवहारिक नहीं है, तो न्यायालयों को स्पष्ट पाठ से निकले स्पष्ट अर्थ से विचलित नहीं होना चाहिए.’

गवाहों के बयानों की सत्यता पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘न तो गवाहों ने गैरकानूनी धर्म परिवर्तन किया था, न ही वे 14 अप्रैल, 2022 को हुए कथित सामूहिक धर्मांतरण के स्थान पर मौजूद थे.’ एक फैसले का हवाला देते हुए, अदालत ने एक प्राथमिकी को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि एक ही कथित घटना के लिए कई प्राथमिकी का होना जांच की शक्तियों के दुरुपयोग को दर्शाता है. पीठ ने कहा कि एक ही घटना के संबंध में बार-बार प्राथमिकी दर्ज करने से जांच प्रक्रिया की निष्पक्षता कमज़ोर होती है और आरोपियों को अनुचित उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है.

VHP उपाध्यक्ष की शिकायत पर दर्ज हुई थी प्राथमिकी

याचिकाएं दिसंबर 2021 और जनवरी 2023 के बीच भारतीय दंड संहिता और उप्र कानून के विभिन्न प्रावधानों के तहत दर्ज की गई छह प्राथमिकियों से संबंधित थीं. विश्व हिंदू परिषद (VHP) के उपाध्यक्ष हिमांशु दीक्षित की शिकायत के आधार पर फतेहपुर जिले के कोतवाली पुलिस थाने में 15 अप्रैल, 2022 को एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें 35 नामजद और 20 अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ आरोप लगाया गया था कि एक दिन पहले इवेंजेलिकल चर्च ऑफ इंडिया में 90 हिंदुओं को ईसाई धर्म में परिवर्तित किया गया था.

आरोप लगाया गया कि हिंदुओं को अनुचित प्रभाव, दबाव और धोखाधड़ी और आसानी से पैसे कमाने का प्रलोभन देकर फंसाया गया. इस सिलसिले में आईपीसी की धारा 307 (हत्या का प्रयास), 504 (शांति भंग करने के उद्देश्य से जानबूझकर अपमान करना) और 386 (जबरन वसूली) के तहत मामले दर्ज किए गए. आरोपियों पर धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत भी मामला दर्ज किया गया.

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