SC On Namesake Candidates: ‘राहुल गांधी’ और ‘लालू यादव’ को चुनाव लड़ने से नहीं रोक सकते, जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की ये टिप्पणी
Supreme Court On Same Name Candidate: याचिकाकर्ता स्टीफन ने अपनी याचिका में हमनाम उम्मीदवारों को मैदान में उतारने की प्रथा को गलत और मतदाताओं के मन में भ्रम पैदा करने के लिए बनाई गई एक चाल" बताया.
Namesake Candidates Row: एक जैसे नाम के उम्मीदवारों के मुद्दे को हल करने के लिए निर्देश देने वाला याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (03 अप्रैल) को कहा कि किसी शख्स को सिर्फ इसलिए चुनाव लड़ने से नहीं रोक सकते क्योंकि उनका नाम किसी राजनेता से मिलता है. जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ में जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस संदीप मेहता ने इस मामले की सुनवाई की.
दरअसल, चुनावों में हमनाम उम्मीदवारों के मामले को हल करने के लिए भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) को तत्काल कदम उठाने का निर्देश देने की याचिका के जरिए मांग की गई. इस पर पीठ ने याचिकाकर्ता साबू स्टीफन की ओर से पेश हुए वकील वीके बीजू से पूछा, “अगर कोई राहुल गांधी या लालू प्रसाद यादव के रूप में पैदा हुआ है तो उसे चुनाव लड़ने से कैसे रोका जा सकता है? क्या इससे उनके अधिकारों पर असर नहीं पड़ेगा? अगर किसी के माता-पिता ने (किसी राजनीतिक नेता को) ऐसा ही नाम दिया है तो क्या यह उनके चुनाव लड़ने के अधिकार में बाधा बन सकता है?”
पीठ ने याचिका वापस लेने की दी इजाजत
न्यायाधीशों ने वकील से कहा, "आप जानते हैं कि इस मामले का भविष्य क्या होगा." और ये कहते हुए उन्हें याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी. याचिकाकर्ता स्टीफन ने अपनी याचिका में हमनाम उम्मीदवारों को मैदान में उतारने की प्रथा को "गलत" और "मतदाताओं के मन में भ्रम पैदा करने के लिए बनाई गई एक पुरानी चाल" बताया था. इसमें कहा गया कि इस तरह की प्रथा को "युद्ध स्तर" पर रोका जाना चाहिए क्योंकि "प्रत्येक वोट में उम्मीदवार के भविष्य का फैसला करने की शक्ति होती है."
याचिका में क्या कहा गया?
स्टीफन ने तर्क दिया, "ऐसे मामलों में उत्पन्न होने वाले भ्रम को स्पष्टता से बदला जाना चाहिए और यह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 और चुनाव संचालन नियम, 1961 में उचित संशोधन हो सकता है." उन्होंने यह भी आशंका व्यक्त की कि नामधारी उम्मीदवारों को भारत में राजनीतिक और प्रशासनिक प्रणालियों के बारे में ज्ञान और जागरूकता नहीं हो सकती है, और उन्हें प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों से "प्रायोजन" मिल सकता है. हालाकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि वह यह दावा नहीं कर रहे हैं कि सर्वेक्षण में सभी स्वतंत्र उम्मीदवार "फर्जी" हैं.
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