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दिल्ली हिंसा मामले में पुलिस के शुरुआती रवैये पर SC ने की टिप्पणी, शाहीन बाग पर सुनवाई फिलहाल टाली

दिल्ली हिंसा में अब तक 20 लोगों की मौत हो चुकी है. साथ ही 200 से ज्यादा लोग जख्मी हैं.राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने रात में हिंसा ग्रस्त इलाकों का दौरा किया.

नई दिल्ली: उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा के मामले में दखल देने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि हाई कोर्ट पहले ही मामले को देख रहा है. शाहीन बाग में सड़क रोक कर बैठे लोगों को वहां से हटाने की मांग करने वाली याचिका पर भी कोर्ट ने सुनवाई टाल दी है. कहा है कि फिलहाल दिल्ली के हालात ऐसे नहीं है कि इस मामले पर सुनवाई की जाए. मामले पर अगली सुनवाई 23 मार्च को होगी.

क्या है मामला

शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ पिछले करीब 70 दिनों से सड़क रोक कर बैठे लोगों के मसले पर सुप्रीम कोर्ट में 20 दिनों से मामला लंबित है. कोर्ट ने शुरू में चुनाव की वजह से सुनवाई टाली, बाद में सरकार का जवाब देखकर आदेश देने की बात कही. फिर शाहीन बाग के लोगों को समझाने के लिए दो वार्ताकार- संजय हेगड़े और साधना रामचंद्रन नियुक्त कर दिए. वार्ताकार लोगों को सड़क से हटने के लिए समझा पाने में नाकाम रहे हैं. ऐसे में याचिकाकर्ता कोर्ट से किसी ठोस आदेश की उम्मीद कर रहे थे. लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी. कोर्ट ने कहा, “हम होली की छुट्टियों के बाद मामले की सुनवाई करेंगे.''

वार्ताकार संजय हेगड़े ने इसका समर्थन करते हुए कहा, "शायद होली के रंग लोगों में आपसी प्रेम बढ़ाएं. इस पर जज ने भी कहा, "हम चाहते हैं कि हर कोई अपना गुस्सा शांत करे. समाज से ऐसे बर्ताव की उम्मीद नहीं की जाती."

वार्ताकारों की रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट को सौंपी लगभग 10 पन्ने की रिपोर्ट में वार्ताकारों ने बताया है कि प्रदर्शनकारी शाहीन बाग में सड़क से हटने को तैयार नहीं है. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वह सिर्फ एक सड़क पर बैठे हैं. 5 रास्तों को दिल्ली पुलिस ने खुद बंद कर दिया है. पुलिस और कोर्ट उनकी सुरक्षा की गारंटी ले और बाकी रास्तों को खोल दे. इससे नोएडा-दिल्ली और दिल्ली-फरीदाबाद को जोड़ने वाले यातायात काफी हद तक आसान हो जाएगा. लाखों लोगों को हो रही परेशानी का जिम्मा अकेले प्रदर्शनकारियों पर नहीं डाला जा सकता. वह अपने लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं.

कोर्ट का आदेश

कोर्ट ने आज इस रिपोर्ट पर कहा, “सफलता मिले या न मिले, मामलों के हल के लिए प्रयोगात्मक कोशिश होती रहनी चाहिए. हम वार्ताकारों की भूमिका को बंद नहीं कर रहे हैं. वह आगे भी अपने भूमिका निभा सकते हैं.“ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई फिर टलने पर सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, कोर्ट हमें शाहीन बाग में उचित कार्रवाई करने की इजाजत दे. इस पर बेंच के अध्यक्ष जस्टिस संजय किशन कॉल ने कहा, “हम अपनी तरफ से कोई आदेश नहीं दे रहे हैं. लेकिन किसी के ऊपर कोई रोक भी नहीं लगा रहे हैं. पुलिस कानूनन जो उचित कार्रवाई है, वह कर सकती है.''

पुलिस के रवैये पर टिप्पणी

इसके बाद चर्चा का रुख दिल्ली में हिंसा के दौरान पुलिस के लाचर रवैये की तरफ मुड़ गया. 2 जजों की बेंच के सदस्य जस्टिस के एम जोसेफ ने कहा, “ऐसा क्यों होता है कि पुलिस उपद्रव की स्थिति में आदेश की प्रतीक्षा करती है. कोई हिंसा भड़काने वाला बयान देता है और पुलिस उस पर कार्रवाई नहीं करती. अगर समय पर पुलिस कार्रवाई करे, पुलिस के हाथ न रोके जाएं तो हिंसा पर काफी हद तक लगाम लगाई जा सकती है. इंग्लैंड और अमेरिका जैसे देशों में भड़काऊ बयान देने वालों पर कार्रवाई से पहले पुलिस को सरकार से इजाजत नहीं लेनी पड़ती. जस्टिस कौल ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “प्रकाश सिंह मामले में हमने पुलिस व्यवस्था में सुधार को लेकर व्यापक आदेश दिए थे. लेकिन पूरे देश में उसका पालन नहीं किया गया.''

सॉलिसीटर जनरल का एतराज

इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “आज चर्चा का विषय प्रकाश सिंह मामला नहीं है. मेरा कोर्ट से निवेदन है कि यहां कोई ऐसी बात ना की जाए, जिससे पुलिस के मनोबल पर असर पड़े. हमने हिंसा में एक कॉन्स्टेबल को गंवाया है. डीसीपी स्तर के अधिकारी को बुरी तरह से मारा-पीटा गया है. फिलहाल जरूरत इस बात की है कि पुलिस को अपना काम करने दिया जाए.'' मेहता ने यह भी कहा कि अगर भारत की पुलिस इंग्लैंड की पुलिस की तरह त्वरित कार्रवाई करेगी तो सबसे पहले कोर्ट ही मामले में दखल देगा.

याचिकाकर्ता ने जताई निराशा

मामले में याचिकाकर्ता अमित साहनी ने एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए कहा, “हम निराश हैं कि कोर्ट ने आज भी कोई आदेश नहीं दिया. हम लाखों लोगों को हो रही समस्या को लेकर कोर्ट पहुंचे थे. लेकिन अलग-अलग वजह से कोई आदेश नहीं आ पा रहा है. कोर्ट ने कहा है कि पुलिस अपने हिसाब से कार्रवाई कर सकती है. वैसे भी कोर्ट में लंबित कोई मामला पुलिस को स्थिति के आधार पर कार्रवाई करने से नहीं रोकता. अब सरकार को देखना है कि वह लोगों की समस्या को हल करने के लिए क्या कर सकती है.''

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करीब 2 दशक से सुप्रीम कोर्ट के गलियारों का एक जाना-पहचाना चेहरा. पत्रकारिता में बिताया समय उससे भी अधिक. कानूनी ख़बरों की जटिलता को सरलता में बदलने का कौशल. खाली समय में सिनेमा, संगीत और इतिहास में रुचि.
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