म्यांमार में रॉयटर के पत्रकारों को मिली सजा पर एडिटर्स गिल्ड ने कहा- मीडिया की आवाज नहीं दबेगी
म्यांमार के गोपनीय कानून के उल्लघंन में रायटर के दो पत्रकारों को सात-सात साल की सजा. रोहिंग्या मुसलमानों की हत्याओं के बारे में गलत रिर्पोटिंग के लिए मिली सजा.

नई दिल्ली: एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने सोमवार को म्यांमार में अंतरराष्ट्रीय न्यूज एजेंसी रॉयटर के दो पत्रकारों को जेल में डाले जाने के फैसले की कड़ी निंदा की और तत्काल उनकी रिहाई की मांग की. रॉयटर के दो पत्रकार 32 साल के वा लोन और 28 साल के क्यो सो ओ को म्यांमार के गोपनीय कानून को तोड़ने के आरोप में देश की एक अदालत ने सात साल जेल की सजा सुनाई है. इन पर आरोप है कि इन्होंने रोहिंग्या मुसलमानों की कथित हत्याओं के बारे में रिर्पोटिंग करते हुए म्यांमार के गोपनीय कानून का उल्लंघन किया है.
पत्रकारों को सजा सुनाए जाने की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी आलोचना हो रही है. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने पत्रकारों की तत्काल रिहाई की मांग करते हुए एक बयान जारी कर कहा कि वो ‘मीडिया की आवाज दबाने के लिए’ किसी भी देश में सरकारी गोपनीयता कानून के प्रावधानों को लागू किए जाने के खिलाफ है.
फैसले के बाद पत्रकार वा ने कहा, "मुझे डर नहीं है. मैंने कुछ गलत नहीं किया. मुझे न्याय, लोकतंत्र और आजादी पर पूरा विश्वास है." पत्रकारों को सजा सुनाए जाने के बाद रॉयटर्स ने भी इसकी निंदा की है और इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला करार दिया है. रॉयटर्स ने कहा, ''आज का दिन म्यांमार और प्रेस के लिए निराशाजनक है.''
क्या हैं पूरा मामला पत्रकारों पर म्यांमार के गोपनीय कानून का उल्लंघन कर गलत रिर्पोटिंग का आरोप हैं. इस पूरे मामले की जांच 9 जनवरी से शुरू हुई थी. औपचारिक रूप आरोपपत्र 9 जुलाई को दाखिल किए गए थे. पत्रकारों को दो पुलिसकर्मियों से मुलाकात के बाद 12 दिसंबर 2017 की रात को गिरफ्तार किया गया था.
सरकार के मुताबिक, इन पुलिसकर्मियों ने ही उन्हें गोपनीय दस्तावेज सौंपे थे. जज ये लवीन ने अदालत में कहा, ‘‘चूंकि उन्होंने गोपनीयता कानून के तहत अपराध किया है, दोनों को सात-सात साल जेल की सजा सुनायी जा रही है.’’ दोनों पत्रकारों को ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट (शासकीय गोपनीयता अधिनियम) के तहत दोषी पाया गया है.
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान रोहिंग्या एक जातीय (एथनिक) समूह है जो बौद्ध बहुसंख्यक म्यांमार में आबाद है. म्यांमार में इनकी सबसे ज्यादा आबादी रखाइन प्रांत में है. हालांकि, रखाइन के अलावा अन्य 7 इलाकों में भी रोहिंग्या मुसलमान आबाद हैं, लेकिन उनकी संख्या बहुत ही कम है.
देश में इस वक़्त करीब 10 लाख रोहिंग्या मुसलमान हैं. बीते 70 साल से रोहिंग्या मुसलमान अपने ही वतन में जुल्म-व-सितम सहने के साथ ही अजनबी की तरह जीने को मजबूर हैं, क्योंकि उनके पास नागरिकता नहीं है. इसकी वजह ये है कि इनका शुमार म्यांमार के 135 आधिकारिक जातीय समूह में नहीं होता है.
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