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तीन तलाक: SC ने कहा, 6 दिन बहस, 2-2 दिन विरोधी- समर्थक बोलें, 1-1 दिन एक दूसरे का जवाब दें

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक पर सुनवाई शुरू हो गई है. मुस्लिम महिलाओं के भविष्य से जुड़े सबसे बड़े मुकदमे पर पांच जजों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है. आज से इस मामले की सुप्रीम कोर्ट में रोज सुनवाई होगी. सुनवाई शुरू होते ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हमें ये देखना है कि 3 तलाक, हलाला और बहुविवाह धर्म का मूल हिस्सा हैं या नहीं. अगर ऐसा है तो इन्हें मानना धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के दायरे में आएगा.
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तीन तलाक का मसला इसलिए गंभीर हो गया है क्योंकि फोन पर, व्हाट्स अप पर या चिट्ठी से तीन तलाक भेजने के किस्से सामने आ रहे हैं. पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे मुस्लिम देशों में भी ये परंपरा बंद हो चुकी है, लेकिन भारत में अब भी जारी है.
पांच जजों की संविधान पीठ में चीफ जस्टिस जे एस खेहर, जस्टिस कुरियन जोसफ, जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन, जस्टिस उदय उमेश ललित और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं.
Five-judge Constitution bench of the Supreme court begins hearing on validity of triple talaq pic.twitter.com/cNuWpxfBqs
— ANI (@ANI_news) May 11, 2017
LIVE UPDATES-
- केंद्र के वकील तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया- बराबरी और सम्मान महिला का हक. सोमवार को एटॉर्नी जनरल रोहतगी विस्तार से केंद्र का पक्ष रखेंगे
- 3 तलाक: सुप्रीम कोर्ट ने कहा-कुल 6 दिन बहस। 2 दिन 3 तलाक विरोधी बोलें,2 दिन समर्थक। बाद में 1-1 दिन दूसरे की बात का जवाब दें। दलीलों का दोहराव न हो
- सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि तीन तलाक़ पर केंद्र सरकार का क्या रुख है. सरकार ने कहा कि वो तीन तलाक़ के खिलाफ हैं, क्योंकि वो असंवैधानिक है.
- पर्सनल लॉ बोर्ड कि तरफ से दलील दी गई है कि ये पर्सनल लॉ का मामला है. सरकार तो सिर्फ कानून बना सकती है लेकिन कोर्ट को इसमें दखल नही देना चाहिए. तीन तलाक़ कोई मुद्दा ही नहीं है. वहीं, याचिकाकर्ता ने कहा कि ये मौलिक अधिकारों के हनन का मामला है.
- याचिकाकर्ता शायरा बानो के वकील ने कहा है कि धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की भी सीमाएं हैं. नैतिकता, स्वास्थ्य, कानून व्यवस्था से परे नहीं है. उन्होंने कहा है कि तीन तलाक धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. अनिवार्य हिस्सा उसे माना जाता है जिसके हटने से धर्म का स्वरूप ही बदल जाए.
- याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत में कहा कि ऐसे कई इस्लामिक देश हैं जहां पर तीन तलाक़ को मान्यता नहीं है, हालांकि उन देशों में भी इस्लामिक कानून को ही माना जाता है.
- जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने कहा है कि एक साथ तीन तलाक बोलने की व्यवस्था हमारी समीक्षा के दायरे में है. इस्लाम में मौजूद तलाक के दूसरे स्वरुप पर बहस ज़रूरी नहीं है.
- सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता पक्ष की दलील दी गई है कि मुस्लिम समाज में पुरुषों के पास तो तलाक़ का अधिकार है पर महिला के पास नहीं, लिहाज़ा यहां पुरुष और महिला को समान मौलिक अधिकार नहीं है और इसी वजह से इस मामले को सुनने की ज़रूरत है.
- याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि हमारे संविधान में महिला और पुरुष को समान अधिकार की बात कही गई है, लेकिन मुस्लिम समाज में तलाक के मुद्दे पर ऐसा नहीं है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि मुस्लिम समाज के कानून का आधार क्या है, क्या सिर्फ शरीयत के हिसाब का ही पालन होता है या और भी कुछ आधार है.
- सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा है कि हम तीन तलाक पर सुनवाई करेंगे. हलाला इससे जुड़ा है, इसलिए जरुरत पड़ने पर इस पर भी सुनवाई होगी. बहुविवाह पर सुनवाई नहीं होगी.
- अलग-अलग धर्मों के पांच जजों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है. सिख, ईसाई, पारसी, हिंदू और मुस्लिम जज इस संविधान पीठ का हिस्सा हैं.
- इस संविधान पीठ की अध्यक्षता खुद चीफ जस्टिस जे एस खेहर कर रहे हैं. बेंच गर्मी की छुट्टी में विशेष रूप से इस सुनवाई के लिए बैठ रही है.
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Source: IOCL























