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केरल: सत्ता का नया प्रयोग या होगी तानाशाही युग की शुरुआत?

रियास सीपीएम की युवा इकाई के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और उन्होंने पिछले साल विजयन की बेटी वीणा से शादी की थी. विजयन के इस फैसले के बाद राज्य में पार्टी के भविष्य को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं.

नई दिल्ली: पिछले 45 बरस का रिकॉर्ड तोड़कर दोबारा केरल की सत्ता में आये मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने अपने एक फैसले से देश की राजनीति में एक ऐसे युग की शुरुआत की है, जो आगे चलकर एक मिसाल बनेगी. गुरुवार को शपथ लेने वाली कैबिनेट में उन्हें छोड़ कोई भी चेहरा पुराना नहीं होगा यानी मंत्री बनने वाले सभी चेहरे नए होंगे. सत्ता आधारित राजनीति में शायद यह पहला और अनूठा प्रयोग है जिसकी तारीफ इसलिए हो रही है कि विजयन ने नए लोगों को मंत्री बनाकर यह संदेश दिया है कि सीपीएम एक ऐसी पार्टी है जो सभी को बराबरी का दर्जा देने में यकीन रखती है. फिर भले ही वह पार्टी के तमाम फैसले लेने वाली सर्वोच्च इकाई पोलित ब्यूरो का कोई सदस्य हो या आम जमीनी कार्यकर्ता.

लेकिन सोशल मीडिया से लेकर सियासी गलियारे में इसके लिए उनकी खूब आलोचना हो रही है और पार्टी में विवाद भी खड़ा हो गया है, जिसकी दो बड़ी वजह हैं. पहली यह कि पिछली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए निपाह और कोरोना वायरस से निपटने में जिस केके शैलजा ने देश-विदेश में अपने काम का डंका बजवाया था, उन्हें कैबिनेट में नहीं लिया गया. दूसरी वजह यह कि मुख्यमंत्री ने अपने दामाद को मंत्री बन दिया. लिहाजा केरल की सियासत में उन पर अब दो तरह के आरोप लग रहे हैं. एक तो यह कि उनका बर्ताव तानाशाही भरा है और उनकी तुलना सोवियत संघ के ताकतवर नेता रहे जोसफ स्टालिन से की जा रही है. दूसरा, अपने दामाद को मंत्री बनाने से उन पर परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप यह कहते हुए लगाया जा रहा है कि अब बीजेपी और सीपीएम में भला फर्क ही क्या राह गया है.

वैसे पुरानी कैबिनेट के एक भी चेहरे को मंत्री न बनाकर विजयन ने यह जता दिया है कि उनका कद सीपीएम की स्टेट कमेटी से बहुत ऊंचा है. अमूमन इस पार्टी में ऐसा होता नहीं है कि कोई अकेला व्यक्ति ही अपनी पूरी कैबिनेट का फैसला ले. हैरानी यह भी है कि पोलित ब्यूरो ने भी अब तक इस पर अपना कोई ऐतराज नहीं जताया है, जिससे साफ है कि मुख्यमंत्री को उसका भी मौन समर्थन है. अब विजयन का साथ छोड़ चुके उनके पुराने मित्र कुन्हानंदन नायर ने कहा, "ये एक गलत फैसला है. वो (विजयन) जोसफ स्टालिन की तरह हैं. इसलिए वो किसी और की राय नहीं सुनते. बंगाल में ज्योति बसु ने भी कभी ऐसे अपने मंत्री नहीं हटाए थे." दामाद मोहम्मद रियास को मंत्री बनाने के फैसले को भी वे गलत बताते हैं.

भविष्य को लेकर सवाल

रियास सीपीएम की युवा इकाई के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और उन्होंने पिछले साल विजयन की बेटी वीणा से शादी की थी. विजयन के इस फैसले के बाद राज्य में पार्टी के भविष्य को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं. राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर जे प्रभाष कहते हैं, "ये दिखाता है कि मुख्यमंत्री ये सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके खिलाफ बोलने वाली कोई आवाज ही न बचे. दो दशकों से जब विजयन ने कमान संभाली है, पार्टी के लोगों को आलोचनात्मक दृष्टिकोण से चीजों को समझना सिखाया ही नहीं गया है. ये फैसला दिखाता है कि अब सरकार में दूसरा कोई फैसले नहीं ले पाएगा. वो चाहते हैं कि उनके नेतृत्व पर कोई सवाल न उठाए. उनके मुताबिक ये पार्टी के भविष्य के लिए सही नहीं है. इस बात में किसी को शक नहीं होना चाहिए. ये सिर्फ शैलजा को हटाने की बात नहीं है. ये नए नेतृत्व के बारे में है. मुख्यमंत्री ने अपना दिमाग नहीं लगाया है. सवाल ये उठता है कि आने वाले समय के लिए मुख्यमंत्री पद के लिए किसे तैयार किया जाएगा. ऐसा लग रहा है जैसे विजयन हमेशा के लिए, दुनिया के खत्म होने तक रहेंगे." जबकि नायर कहते हैं, "ऐसा लग रहा जैसे शैलजा को लेकर विजयन पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं. सीताराम येचुरी को इस मामले में दखल देना चाहिए क्योंकि सीपीएम देश में कहीं और सत्ता में नहीं है."

सोशल मीडिया पर भी विजयन की आलोचना हो रही है. फिल्म समीक्षक और पत्रकार एना वैटिकेट ने लिखा, "शैलजा को हटाने का फैसला जिस भी वजह से लिया गया हो, ये पार्टी की छवि, सीएम और राज्य के लिए नुकसानदेह है. इसके अलावा केरल के उन लोगों के लिए भी बुरा है जो कि राज्य में बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था बनाए रखना चाहते हैं. केरल कैबिनेट से उन्हें हटाना भारतीय महिलाओं के लिए हतोत्साहित करने वाला फैसला है. ये याद दिलाता है प्रगतिशील और शिक्षित होने के बावजूद केरल पितृसत्ता में डूबा हुआ है."

मशहूर मलयालम कवि उमेश बाबू, एक जमाने में सीपीएम के सांस्कृतिक मोर्चे के सदस्य हुआ करते थे. उमेश बाबू उन दिनों की याद करते हुए बताते हैं, ''भारतीय लोकतांत्रिक युवा परिसंघ (DYFI) के नेता रहते हुए पिनराई विजयन बिल्कुल तानाशाही बर्ताव करते थे. वो अपनी आलोचना कतई बर्दाश्त नहीं करते थे." विजयन ने राज्य सचिव का पद रिकॉर्ड 17 बरस तक संभाला था. वो 2015 तक सीपीएम के स्टेट सेक्रेटरी रहे. उमेश बाबू कहते हैं, "जब विजयन राज्य सचिव बन गए, तब वीएस अच्युतानंदन को निशाना बनाया गया. उन पर पार्टी के भीतर से लगातार हमले होने लगे. हालात इतने खराब हो गए कि 2006 में पिनराई विजयन ने अच्युतानंदन को चुनाव लड़ने से भी रोकने की कोशिश की, जिस पर बहुत हंगामा हुआ. हालांकि पार्टी ने विजयन के इस फैसले को खारिज कर दिया था."

हालांकि, केरल के वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक बीआरपी भास्कर की राय बिल्कुल अलग है. वह कहते हैं, "विजयन के ऊपर आरोप ये है कि वो मुंडू पहनने वाले मोदी हैं (मलयालम में धोती को मुंडू कहते हैं) क्योंकि वो तानाशाही रवैये वाले इंसान हैं."

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