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Nari Shakti: नहीं आता था टू व्हीलर चलाना भी, लेकिन हौसले से दौड़ा डाली 12 कोच की ट्रेन

Independence Day 2022:इंसान में जज्बा हो तो वो असंभव को संभव कर डालता है और सुरेखा यादव (Surekha Yadav) ने यह साबित कर दिखाया.उनके नाम भारत ही नहीं बल्कि एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर का खिताब है.

Asia's First Female Train Driver Surekha Yadav: हौसला हो तो कुछ भी करना मुश्किल नहीं है, फिर चाहे वो काम आपने पहले कभी नहीं किया हो तो भी आप उसे कर जाते हैं. शायद इसी तरह का जज्बा भारतीय रेलवे की ट्रेन ड्राइवर सुरेखा यादव (Surekha Yadav) के दिल में भी रहा होगा. सुरेखा यादव के नाम भारत ही नहीं बल्कि एशिया (Asia) की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर (Train Driver) होने का खिताब है.

आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि ट्रेन ड्राइवर की पोस्ट पर आवेदन करते वक्त सुरेखा को दुपहिया चलाना तक नहीं आता था. फिर भी उन्होंने इस पोस्ट के लिए आवेदन किया. एक तरह से वह भारतीय रेलवे (Indian Railways) में लोको पायलट यानी ट्रेन ड्राइवर की पोस्ट पर महिलाओं के आने के लिए प्रेरणा बन गईं. आज इसी लोको पायलट की जिंदगी के कुछ पहलुओं से रूबरू होते हैं, जिन्होंने देश का गौरव बढ़ाया. 

आज भी याद है रेलवे का वो इश्तिहार

सुरेखा यादव बताती हैं कि साल 1986 में रेलवे का एक इश्तिहार (Advertisement) आया था. उसका नंबर  01/1986 आज भी उन्हें याद है. उन्होंने बताया कि इसमें रेलवे ने असिस्टेंट ड्राइवर इलेक्ट्रिक और लोको पायलट की पोस्ट निकाली थी. सुरेखा ने बताया कि उन्होंने  इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा भी किया था और सबसे बड़ी बात यह वैकेंसी महिलाओं के लिए भी थी.उन्होंने बगैर देरी करते हुए इस पोस्ट के लिए आवेदन कर दिया.

सुरेखा का कहना है कि उन्हें ये नहीं पता था कि उनका सिलेक्शन हो जाएगा. ये ईश्वर की इच्छा थी या फिर उनकी क्षमता कि उन्हें रेलवे ने चुन लिया.वह बताती हैं कि उन्हें पता चला कि उनसे पहले एशिया में भी किसी महिला ने ट्रेन ड्राइवर की पोस्ट नहीं संभाली हैं. तब उन्होंने ये सोच कर इस काम को तन-मन धन से अपना लिया कि और लड़कियां भी उन्हें देख इस पेशे में आएंगी. 

सुरेखा बताती हैं कि फरवरी 1989 में उन्होंने सेंट्रल रेलवे ज्वॉइन कर लिया. उन्हें पहली पोस्टिंग छत्रपति शिवाजी टर्मिनस स्टेशन पर मिली. उन्होंने साल 2000 में पहली लेडिज स्पेशल ट्रेन भी चलाई. साल 2019 में महिला दिवस पर मुंबई से पुणे तक पहली लेडिज स्पेशल डेक्कन एक्सप्रेस चलाई. बीते 6 साल से वह बतौर सीनियर इंस्ट्रक्टर भविष्य के लोको पायलटों को ट्रेनिंग दे रही हैं.

वह कहती हैं कि जो मन हो जरूर करना चाहिए. आप अगर एक कदम आगे बढ़ाओगे तो आपको मदद भी मिलेगी और सब प्रोत्साहित भी करेंगे. उनका कहना है कि काम अच्छा हो तो सब अच्छा हो जाता है और देश का नाम भी हो जाता है. 

पिता ने दिया पढ़ाई पर पूरा ध्यान

महाराष्ट्र के सतारा जिले में रामचंद्र भोसले और सोनाबाई के घर 2 सितंबर 1965 को सुरेखा जन्म हुआ था.  पिता रामचंद्र भोसले एक किसान थे. सुरेखा उनके पांच बच्चों में सबसे बड़ी संतान थी. वह बताती हैं कि मेरे पिताजी भले ही किसान थे, लेकिन उन्होंने हमें अच्छे से पढ़ाया-लिखाया. हमारे पिता ने लड़का-लड़की में कोई भेद नहीं किया. सुरेखा कहती हैं कि इसी का फायदा हुआ और हम भाई-बहन अच्छे से पढ़-लिख सके.

सुरेखा ने सेंट पॉल हाईस्कूल से (Saint Paul High School) से पढ़ाई की और वो एक ऑलराउंडर स्टूडेंट रहीं. स्कूली पढ़ाई के बाद उन्होंने गर्वमेंट पॉलिटेक्निक कराड से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग (Electrical Engineering) में डिप्लोमा किया. वह गणित से बीएससी (BSc) करने के बाद बीएड (B.Ed) कर टीचर बनना चाहती थीं, लेकिन भारतीय रेलवे में नौकरी लगने के बाद उनकी ये इच्छा पूरी नहीं हो पाई. 

रेलवे में अपने काम से बनाई पहचान

साल 1986 में सुरेखा ने रेलवे की परीक्षा दी. रेलवे लिखित और मौखिक परीक्षा में सुरेखा अकेली महिला थी. साल 1987 में भारतीय रेलवे भर्ती बोर्ड (Railway Recruitment Board) मुंबई ने उन्हें इंटरव्यू के लिए बुलाया. सबसे पहले उन्हें कल्याण ट्रेनिंग स्कूल में बतौर ट्रेनी असिस्टेंट ड्राइवर (Trainee Assistant Driver) भेजा गया. साल 1989 में वो रेगुलर असिस्टेंट ड्राइवर हो गईं. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. जिस सुरेखा को कभी टू-व्हीलर या फ़ोर-व्हीलर चलाना तक नहीं आता था आज वो रेलवे का 9 से 12 का कार रैक (Car Rake) चला रहीं हैं.

साल 1998 में सुरेखा को पूरी तरह से गुड्स ट्रेन चलाने का जिम्मेदारी मिली. साल 2000 तक में उन्हें मोटर वुमन की पोस्ट पर प्रमोशन मिला. इसके बाद उनकी इस उपलब्धि के चर्चे होने लगे. मीडिया वाले उनके इंटरव्यू तो लोग उनका ऑटोग्राफ़ लेने के लिए आने लगे और वह पूरे देश में मशहूर हो गईं.

साल 2010 में वो भारत के वेस्टर्न घाट रेलवे लाइन पर भी ट्रेन चला चुकी हैं. इस मुश्किल ट्रैक पर  ट्रेन चलाने के लिए उन्हें रेलवे से स्पेशल ट्रेनिंग दी गई. सुरेखा ने बताया,"कुछ लोगों को उन्हें इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी दिए जाने से आपत्ति थी. वो लोग कह रहे थे अभी तक किसी महिला को ये पोस्ट नहीं मिली, किसी महिला को इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी नहीं दी जा सकती है." लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने जुनून के लिए लड़ीं. वह बताती हैं कि तब उन्होंने जवाब दिया कि उनकी पुरुष ड्राइवरों जैसी ट्रेनिंग हुई है और रेलवे ने उन्हें इसलिए चुना है कि वह इस काम में सक्षम है. 

जब साल 2000 में पूर्व रेल मंत्री ममता बनर्जी ने अप्रैल में लेडीज़ स्पेशल ट्रेन चलाई तो वह इसकी पहली महिला ड्राइवर बनी थीं. 8 मार्च, 2011 को सुरेखा ने पुणे से सीएसटी तक डेक्कन क्वीन (Deccan Queen) चलाई, ये रेलवे के बेहद मुश्किल रेल रूट्स में से एक है. ट्रेन ड्राइवर्स को चेन खिंचना, रेल रोको जैसी कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन इसके बावजूद 32 साल से ट्रेन चला रही सुरेखा यादव के काम के दौरान ट्रेन एक्सीडेंट का कोई रिकॉर्ड नहीं है.

एक ही काम करते हुए जेंडर मायने नहीं रखता

सुरेखा का बताती है कि काम के दौरान उन्हें एक महिला होने के नाते उन्हें शुरुआत में कुछ दिक्कतें पेश आईं थी. लोग आसानी से यकीन नहीं कर पाते थे कि कोई महिला कुशलता से ट्रेन चला सकती है, लेकिन परिवार, दोस्तों और सहकर्मियों ने उनका सपोर्ट किया. वह कहती हैं कि इसके अलावा उन्हें कभी भी एक महिला होने के नाते किसी तरह के भेदभाव से नहीं जूझना पड़ा.

उनका मानना है कि यदि आप महिला कार्ड खेलती हैं तो आप खुद की विश्वसनीयता खो देती हैं. वह कहती हैं कि वो अपना काम सबसे अच्छे से करना चाहती थी और उनका मानना है कि महिलाओं और पुरुषों के बीच शारीरिक अंतर हैं, लेकिन जब हम एक ही काम कर सकते हैं तो तब जेंडर का कोई मतलब नहीं होता. पहली महिला लोको पायलट होने की नाते कई राष्ट्रीय अवॉर्ड्स और पुरस्कारों उनके नाम हैं तो उन्होंने अभिनय की दुनिया में भी हाथ आजमाया है. उन्होंने टीवी सीरीयल 'हम भी किसी से कम नहीं' में काम किया है.

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