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Earthquake: 'हिमालय क्षेत्र में आ सकता है बड़ा भूकंप लेकिन...' वैज्ञानिकों का दावा

Earthquake: वैज्ञानिकों ने दावा किया है और साथ ही चेतावनी दी है कि हिमालय क्षेत्र में कभी भी बड़ा भूकंप आ सकता है, लेकिन उसे लेकर पहले से डरने या घबराने की नहीं, तैयारियों की जरूरत है.

Earthquake: नेपाल सहित भारत के कई राज्यों में मंगलवार की देर रात और बुधवार की सुबह आए भूकंप के झटकों के बाद वैज्ञानिकों ने बुधवार को कहा कि हिमालयी क्षेत्र में कभी भी बड़ा भूकंप आ सकता है, इसकी प्रबल संभावना है. उन्होंने कहा कि इससे डरने और घबराने की बजाय जान-माल के नुकसान को कम करने के लिए भूकंप के लिए पहले से बेहतर तैयारी की जरूरत है. पश्चिमी नेपाल के सुदूर पहाड़ी क्षेत्र में आए 6.6 तीव्रता के तेज भूकंप के झटके महसूस किए गए, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई. भूकंप के झटके भारत की राजधानी दिल्ली सहित कई राज्यों में महसूस किए गए.

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वरिष्ठ भूभौतिकीविद् अजय पॉल ने कहा कि हिमालय क्षेत्रों और यूरेशियन प्लेटों के बीच टकराव के परिणामस्वरूप भूकंप आया है. पॉल ने कहा कि भारतीय प्लेट पर यूरेशियन प्लेट के लगातार दबाव के कारण इसके नीचे जमा होने वाली तनावपूर्ण ऊर्जा समय-समय पर भूकंप के रूप में खुद को मुक्त करती रहती है.

सात या उससे अधिक की तीव्रता वाला भूकंप आ सकता है

अजय पॉल ने कहा कि, "हिमालय के नीचे तनावग्रस्त ऊर्जा के संचय के कारण भूकंप आना एक सामान्य और निरंतर प्रक्रिया है. संपूर्ण हिमालयी क्षेत्र भूकंप के तेज झटके की चपेट में है और एक कभी भी एक बड़े भूकंप की प्रबल संभावना हमेशा बनी हुई है." उन्होंने दावा किया कि भविष्य में आने वाले भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर सात या उससे अधिक हो सकती है. हालांकि, पॉल ने कहा कि तनावपूर्ण ऊर्जा या भूकंप कब आएगा, इसकी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है. उन्होंने कहा कि "कोई नहीं जानता कि यह कब होगा. यह अगले पल, अगले महीने या 100 साल बाद भी हो सकता है." 

150 सालों में हिमालय क्षेत्र में चार बड़े भूकंप आए 

पिछले 150 वर्षों में हिमालयी क्षेत्र में चार बड़े भूकंप दर्ज किए गए, जिनमें 1897 में शिलांग में, 1905 में कांगड़ा में, 1934 में बिहार-नेपाल में और 1950 में असम में भूकंप शामिल थे. भू वैज्ञानिक ने कहा कि इन सूचनाओं के बावजूद भूकंप की आवृत्ति के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है.

बता दें कि साल 1991 में उत्तरकाशी में भूकंप आया, उसके बाद 1999 में चमोली में और 2015 में नेपाल में एक भूकंप आया था. पॉल ने कहा कि भूकंप को लेकर डरने के बजाय, उससे बेहतर तरीके से निपटने के लिए खुद को तैयार रखना और जान-माल को होने वाले नुकसान को कम करना महत्वपूर्ण है.

भूकंप से पहले की तैयारी है जरूरी

पॉल ने कहा कि भूकंप प्रतिरोधी निर्माण होने चाहिए, लोगों को इस बात से अवगत कराया जाना चाहिए कि भूकंप से पहले, उनकी घटना के समय और उनके होने के बाद तैयारियों के माध्यम से क्या किया जा सकता है. इसके लिए साल में कम से कम एक बार मॉक ड्रिल की जानी चाहिए, अगर ये चीजें की जाती हैं, तो भूकंप से होने वाले नुकसान को 99.99 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है.

पॉल ने जापान का उदाहरण देते हुए कहा कि इसकी बेहतर तैयारियों के कारण देश को लगातार मध्यम तीव्रता के भूकंपों की चपेट में आने के बावजूद जान-माल का ज्यादा नुकसान नहीं होता है. उन्होंने कहा कि वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान भी भूकंप के प्रभाव को कम करने के लिए क्या किया जा सकता है, इस बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए गांवों और स्कूलों में अपनी टीमों को भेजता रहता है.

संस्थान के एक अन्य वरिष्ठ भू-भौतिक विज्ञानी नरेश कुमार ने कहा कि भूकंप की चपेट में आने के कारण उत्तराखंड को भूकंपीय क्षेत्र IV और V में रखा गया है.उन्होंने कहा कि चौबीसों घंटे भूकंपीय गतिविधियों को दर्ज करने के लिए हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में लगभग 60 भूकंप वेधशालाएं स्थापित की गई हैं.

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