एक्सप्लोरर

सरकार के कोरोना प्रबंधन पर उठ रहे सवाल, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दिए जवाब

विदेश मंत्री ने लंदन में आयोजित एक कार्यक्रम में कोरोना संकट के दौरान केंद्र सरकार पर उठ रहे तमाम सवालों के जवाब दिए.

नई दिल्ली: भीषण कोरोना संकट के दौरान सरकार के कोविड प्रबंधन पर देश-दुनिया में उठ रहे सवालों का विदेश मंत्री एस जयशंकर ने लंदन में आयोजित कार्यक्रम में जवाब दिया. कार्यक्रम का विषय था कि भारत के पास सर्वाइवल और रिवाइवल का कोई प्रावधान है?

सवाल: भारत में मौजूदा कोरोना संकट के बीच यह सवाल कई जगह से उठ रहे हैं कि क्या सरकार इस संकट को पहचानने और उससे मुकाबले की तैयारी करने में चूकी?

जवाब: मुझे नहीं लगता कि हमने समस्या को पहचानने में कोई चूक की या हमने इसके लिए तैयारी नहीं की. आप देखें कि फरवरी 2021 में भारत में प्रतिदिन आने वाले कोरोना मामलों का आंकड़ा 10 हजार के करीब था. जबकि कल के आंकड़े 3.8 लाख आए हैं. यानी नए मामलों में 38 गुना की बढ़ोतरी हुई है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वायरस किस तेजी से फैला है.

यदि मार्च अंत के आंकड़ों को देखें तो प्रतिदिन 100 से अधिक मामलों वाले जिलों की संख्या 75 थी. वहीं आज यह आंकड़ा बढ़कर 400 हो चुका है.  पॉजिटिविटी रेट को देखे तो भी करीब 40 जिले 15 प्रतिशत के आंकड़े दिखा रहे थे मार्च के अंत में. वहीं आज यह संख्या 360 जिलों में है. पहली वेव का पीक सितंबर के मध्य में हुआ. उस दौरान भी बहुत सी चीजों ने हमें चौंकाया. कई चीजों की कमी हुई. कोई भी इस तरह की महामारी के लिए तैयार नहीं था. हमारे पास पीपीई, मास्क तक की भी कमी थी. लॉकडाउन बहुत पीड़ादायक फैसला था. लेकिन वो अच्छा साबित हुआ. उसके परिणाम सामने आए. 

महाराष्ट्र, केरल में चिंताएं थी. अक्टूबर, नवंबर, दिसंबर में कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाहें दी गईं. टीमें भेजी गईं. 75 टीमें कई राज्यों में भेजी गईं. उन्हें बताया गया कि कहां कमी है. जो भी सूचनाएं मिल रही थीं. सरकार ने 1200 ऑक्सीजन प्लांट की इजाजत दी. केंद्र ने इसके लिए पैसे भी दिए क्योंकि स्वास्थ्य राज्य का विषय है. एक तरह से लोगों के बीच भी एक विश्वास पैदा हुआ क्योंकि आंकड़े लगातार कम हो रहे थे.

सभी लोग अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बात कर रहे थे. आर्थिक रफ्तार बढ़ाने के लिए यह विश्वास जरूरी भी था. यह कहा जा सकता है कि सभी लोग थोड़ा निश्चिंत और लापरवाह हो गए थे क्योंकि कोविड मामलों के आंकड़े कम हो रहे थे. यह कोई दोषारोपण का खेल नहीं है. कोई नहीं कहेगा कि हमने अपने सुरक्षा इंतजामों को हर समय मुस्तैद रखा. इसका कारण भी समझा जा सकता है कि फरवरी में आंकड़े 10 हजार तक आ रहे थे.

सवाल: क्या चुनाव रैलियां, बड़ी सभाओं का आयोजन एक चूक नहीं थी?

जवाब: इस मसले पर इन दिनों काफी बात हो रही है. ऐसे मौकों पर इन सवालों की जरूरत को भी समझा जा सकता है. लेकिन देखिए कि क्या किसी लोकतांत्रिक देश में चुनाव टाले जा सकते हैं या नहीं कराए जाएं? हमने देखा है कि एक बार चुनाव न कराने का फैसला भारत में लिया गया था और उसके क्या परिणाम हुए. हम एक लोकतांत्रिक और राजनीतिक चेतना वाले देश हैं. थोड़ी देर के लिए सोचिए कि अगर चुनाव न करवाए जाते. अगर सरकार फरवरी मार्च में यह कहती कि हम चुनाव नहीं करवा रहे हैं तो क्या प्रतिक्रिया होती? यह कोई किताबी बात नहीं है. बहुत व्यावहारिक सवाल है. 

एक साल पहले हमने लॉकडाउन लगाने का फैसला लिया. जरूरी था क्योंकि हम एक समाज के तौर पर इस चुनौती से मुकाबले के लिए तैयार नहीं था. यही एक मात्र फैसला था. उस समय ब्रिटेन में ही हमारे लॉकडाउन के फैसले पर कहा गया कि यह निर्णय सीएए और एनआरसी विरोधी विरोध प्रदर्शनों को खत्म करने के लिए किया गया है. यानी हम कठोर फैसला लें तो भी आलोचना और ना लें तो भी आलोचना. चुनाव तो अवश्यंभावी हैं. 

दूसरा मुद्दा लोगों की भीड़ का उठाया गया. यह सही है कि भीड़ जमा हो रही थी. यह कैसे कहा जा सकता है कि धार्मिक आयोजनों की भीड़ तो गलत है लेकिन विरोध प्रदर्शनों की भीड़ वाजिब क्योंकि अंततोगत्वा भीड़ तो भीड़ ही है. घटनाओं के हो जाने के बाद बड़ी सहूलियत से यह कहा जा सकता है कि हमें यह नहीं करना चाहिए था या भीड़ को जमा होने की इजाजत नहीं देनी चाहिए थी. यह भी देखिए कि एक साल पहले इसी सख्ती के लिए हमारी आलोचना हो रही थी.

भारत एक राजनीतिक देश है जहां लोग तर्क करना, चर्चा करना पसंद करते हैं. मैं सवालों से नहीं भागता और न ही बहस से बचता हूं. लेकिन यह देखना होता है कि कभी-कभी ऐसी स्थिति होती है कि जरूरत चर्चा या बहस से ज्यादा अपनी तैयारियों को दुरुस्त करने की होती है. ऐसे में कहना पड़ता है कि अभी काम करने की जरूरत है और हम बहस के मुद्दों को किनारे कर काम में जुटें क्योंकि यह संकट ऐसा है जिसमें अस्तित्व का ही खतरा है.

सवाल: वैक्सीन मैत्री पर भी सवाल उठाए जा रहें हैं? भारत ने अपने यहां बनाए गए लाखों वैक्सीन दूसरे मुल्कों को दिए. किस तरह यह फैसला लिया गया कि कितने टीके भारत के लोगों के लिए रखे जाएं और कितने अन्य देशों को दिए जाएं?

जवाब: जी हां वैक्सीन दिए गए. भारत में उत्पादित टीके ब्रिटेन को भी मिले. ब्रिटिश लोगों के भी लगाए गए. यहां यह समझना होगा कि भारत का वैक्सीन उत्पादन अन्य किसी मुल्क की तुलना में अलग है. भारत में सबसे ज्यादा बने कोविशील्ड टीकों का ही उदाहरण लें. यह ऑक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनेका का साझा प्रोजेक्ट था जिसमें भारतीय कंपनी को उत्पादन का काम दिया गया.

भारतीय कंपनी को यह काम सौंपा गया क्योंकि उसकी क्षमताओं पर भरोसा किया गया. यानी इस काम के साथ अन्य मुल्कों को वैक्सीन देने की जवाबदेही और जिम्मेदारी भी आई. यह समझना होगा कि यह केवल भारत में बनाई गई और भारत में उत्पादित वैक्सीन नहीं है. यह एक पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय परियोजना थी.  साथ ही इस काम में कोवैक्स परियोजना का भी सहयोग था. यानी इसके साथ अन्य मुल्कों को कम कीमत पर वैक्सीन मुहैया कराने की जिम्मेदारी भी थी. 

ऐसे में स्वाभाविक तौर पर भारत ने जब अपना टीकाकरण शुरू किया तो उत्पादन और खपत के अलावा कई अन्य कारकों का भी ध्यान रखा. यानी हमने देखा कि टीके कैसे दिए जाएं उसका क्या शेड्यूल बनाया जाए आदि. इसके लिए पहले मेडिकल स्टाफ, फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर, फिर सेना, पुलिस आदि को टीके दिए गए. बाद में 60 वर्ष और फिर उससे कम आयु के लोगों को प्राथमिकता दी गई. 

जरूरत का आकलन करते हुए टीकों का उत्पादन इस्तेमाल से कुछ समय पहले शुरू किया गया. हालांकि वैक्सीन की एक निर्धारित शेल्फ लाइफ भी होती है. लिहाजा उत्पादन, खपत, जरूरत समेत कई बातों का ध्यान रखा गया. हमने अपने करीबी पड़ोसी मुल्कों का भी ध्यान रखा कि वहां फ्रंटलाइन चिकित्सा स्टाफ को टीके लगें. क्योंकि हम नहीं चाहते थे कि हमारी दहलीज पर महामारी बढ़ रही हो. एक संतुलन बनाने का प्रयास किया गया. 

इस पूरे समीकरण में एक महत्वपूर्ण पहलू वैक्सीन उत्पादन के लिए जरूरी कच्चे माल की आपूर्ति भी रही. हमने फरवरी के आखिर और मार्च के शुरुआत में यह महसूस किया कि वैक्सीन उत्पादन को बढ़ाने के लिए हमारे पास कच्चा माल नहीं आ रहा है. इसकी वजह थी कि कुछ शक्तियां उसे अपनी तरफ खींच रही थीं, खासतौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका. 

यह समझना होगा कि वैक्सीन बहुत जटिल उत्पाद है. मुझे बताया गया कि दुनिया के 30 देशों से करीब 300 चीजों की जरूरत होती है वैक्सीन बनाने के लिए. मार्च के बाद से हमने विदेश मंत्रालय में प्रयास किया कि हम कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करें. हमारे राजदूतों ने इसके लिए कोशिश की. हालांकि इन सभी बातों के कारण हमारी अपेक्षाओं के बावजूद उत्पादन का ग्राफ नहीं बढ़ सका.

लोगों के मन में सवाल भारत के हेल्थ सेक्टर के ढांचे और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमियां उजागर होने को लेकर भी है. हम यह कहकर अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते. ऐसा किसी संकट में तो कहा नहीं जा सकता कि जैसी व्यवस्था है उससे ही काम चलाना होगा. सो, हमें मौजूदा व्यवस्था के साथ ही इस चुनौती से निपटने का प्रयास करना है. उसे प्रभावी बनाने के लिए हर संभव उपाय करना होगा. आज जिसे ऑक्सीजन या रेमडेसिविर दवा की जरूरत है उसे हम नीतियों के जवाब नहीं दे सकते. उन्हें व्यावहारिक समाधान चाहिए. ऐसे उपाय चाहिएं जिनसे उनकी मुश्किल हल हो सके.

हमें डॉक्टर्स जो बता रहे हैं उसके मुताबिक 117 और 1617 जैसे कोरोना वायरस के वेरिएंट कहीं ज्यादा संक्रामक हैं. इसलिए लोगों को श्वास संबंधी समस्याएं भी पिछली बार की मुकाबले जल्दी हो रही हैं. उनके मामले भी पिछली लहर की तुलना में ज्यादा आ रहे हैं. इसने मेडिकल ऑक्सीजन की मांग को कई गुना बढ़ा दिया है. यानी पहले यदि हमारी जरूरत एक हजार मीट्रिक टन लिक्विड ऑक्सीजन की थी तो आज यह आंकड़ा बढ़कर 7-8 हजार मीट्रिक टन हो गया है.

बतौर सरकार यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इसे पूरा करें. किसी भी साधन का इस्तेमाल करें. हमने उद्योग समूहों से कहा कि वो अपने कामकाज में बदलाव करें और ऑक्सीजन खपत को रोकें ताकि उसका इस्तेमाल इलाज में हो सके. उन्हें उत्पादन केंद्रों से खपत के इलाकों तक पहुंचाने के लिए व्यापक प्रयास चल रहे हैं.

भारत में ऑक्सीजन टैंकरों की भी कमी रही. देश का कुल जमा ऑक्सीजन टैंकर फ्लीट करीब 1200 का था जो काफी कम है. हम उसे ही बढ़ाने में लगे हैं. इन दिनों भारतीय दूतावास ऑक्सीजन टैंकर, कंसंट्रेटर, जनरेटर आदि जुटा रहे हैं. सो, यह एक बड़ा संकट है, विषम चुनौती है. हम अपना सबकुछ प्रयास और उससे भी अधिक देने की कोशिश कर रहे हैं. 

सवाल: भारत के इस संकट में बहुत से देशों ने उनके लोगों और अनेक संगठनों ने मदद का हाथ बढ़ाया है. आप उनके लिए क्या कहेंगे और खासतौर पर यह कैसे सुनिश्चित किया जा रहा है कि यह मदद जरूरतमंद लोगों तक पहुंचे?

जवाब: हम यूके में मौजूद भारतीय समुदाय और दुनिया के अलग-अलग देशों में बसे भारत के लोगों उनके संगठनों से मिली सहायता और संबल का तहे दिल से धन्यवाद करते हैं.  साथ ही विभिन्न सरकारों की तरफ से टैंकरों, ऑक्सीजन सिलेंडर आदि पहुंचाने की मदद के लिए भी शुक्रगुजार हैं. इसमें कोई शक नहीं कि हमारे स्वास्थ्य क्षेत्र की कमियां उजागर हुई हैं. यह साफ है कि बीते 70 सालों में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए बहुत अधिक निवेश नहीं किया गया. हो सकता है कि उसके कुछ कारण भी रहे हों. क्योंकि आज यह कह देना बहुत आसान है कि आपको अधिक धन देना चाहिए था. 

आज मैं सरकार में उस जगह हूं, जहां से हम नीतियों को बनते देखते हैं. मैं आपको बता सकता हूं कि यह उतना आसान नहीं है जितना लोगों को सुनने में लगता है. यह कोई बचाव का तर्क नहीं है लेकिन हम इसको नजरअंदाज नहीं कर सकते. इसी जरूरत को स्वीकार करते हुए ही प्रधानमंत्री मोदी ने आयुष्मान भारत की शुरुआत की.

उनका यह मत है कि हम लोगों को प्राइवेट मैडिकल प्रैक्टिशनर्स के भरोसे नहीं छोड़ सकते, चाहे वो कितनी ही अच्छी सेवाएं क्यों न दे रहे हैं. लेकिन देश में एक मजबूत सरकार समर्थित स्वास्थ्य सेवा होनी चाहिए क्योंकि रोटी-कपड़ा-मकान और रोजगार के साथ-साथ स्वास्थ्य भी एक मूलभूत जरूरत है. फिलहाल हमें उसी के साथ काम करना है जो उपलब्ध है. यानी एक कमजोर और अल्प निवेश से खड़ी स्वास्थ्य सेवा. 

सवाल: मुश्किल की घड़ी में दुनिया के कई देशों से भारत को मदद मिली है. कई संगठन और भारतीय समुदाय के कई समूह भी मदद कर रहे हैं. आप इस पर क्या कहेंगे? क्या यह मदद जरूरतमंद लोगों तक पहुंच रही है.

जवाब: भारत में हम इस वक्त महसूस कर सकते हैं कि दुनिया हमारे साथ है. दुनिया के कई विदेश मंत्रियों से बात करता हूं, बहुत सारे लोगों से चर्चा होती है लोग संदेश भेजते हैं हम आपके लिए क्या कर सकते हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति यह कहते हैं कि मैं भारत के लिए अपनी नीतियां बदल रहा हूं क्योंकि भारत ने संकट के समय अमेरिका की मदद की थी. मैं गत दिनों सिंगापुर के विदेश मंत्री विवेक बालाकृष्णन से बात कर रहा था और उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि पिछली वेव के दौरान भारत ने दवाइयों के संदर्भ में बेझिझक सिंगापुर की मदद की थी. सिंगापुर ने भारत के लिए क्रायोजेनिक टैंकर भेजें और अन्य उपकरण मुहैया कराए.

इसी तरह खाड़ी के मुल्कों से भी भारत को बहुत मदद मिल रही है. चाहे कतर हो, बहरीन हो यूएई हो, या सऊदी अरब सभी ने इस चीज का उल्लेख किया कि पिछले साल इस संकट की शुरुआत में भारत ने अपने मदद के दरवाजे खुले रखे. इसी तरीके की सहभागिता हम लंदन में G7 की बैठक के दौरान भी महसूस करते हैं. G7 के अधिकतर देश लगभग उसी संकट से गुजरे हैं जिससे हम आज गुजर रहे हैं.

भगवान ना करे कि किसी को इस तरीके के संकट से रूबरू होना पड़े. लेकिन हमने देखा है कि इटली में कैसे हालात थे. कई देश चाहे ब्रिटेन हो अमेरिका हो या फ्रांस हो ऐसे हालात देख चुके हैं. वह हमारे लिए महसूस करते है. यह महामारी निश्चित रूप से लोगों की विचारधारा बदलने वाली है. इसमें एक तरफ जहां हमें लोगों के अंधियारे पक्ष से रूबरू कराया है. वहीं एक आशावादी व्यक्ति के तौर पर मैं यह महसूस करता हूं कि कूटनीति में साझेदारी की भावना बढ़ी है. यह संकट हम में से कई लोगों को नजदीक लाया है. यह हम घरेलू मोर्चे पर ही महसूस करते हैं.

सवाल: हाल ही में आपने अपने चीनी समकक्ष विदेश मंत्री वांग जी से बात की और आग्रह किया कि भारत आने वाली कार्गो फ्लाइट को खुला रखा जाना चाहिए ताकि दवाओं और जरूरी साजो सामान की आपूर्ति होती रहे. भारत और चीन के मौजूदा रिश्तो को आप किस तरह देखते हैं और सीमाओं पर क्या हो रहा है?

जवाब: भारत और चीन के रिश्ते इस समय एक मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं. कई पुराने समझौतों को दरकिनार कर चीन ने बहुत बड़ी तादाद में अपनी सेना को वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब तैनात किया. इसका कोई स्पष्टीकरण भी नहीं है. इस सिलसिले को शुरू हुए अब 1 साल से भी ज्यादा हो चुका है. उनकी कार्यवाही ने सीमा पर शांति और स्थायित्व को नुकसान पहुंचाया है. पिछले साल जून में हमने करीब 45 साल बाद भारत चीन सीमा पर रक्तपात देखा.

हम चीन के साथ स्पष्ट है कि सीमा पर शांति और स्थायित्व रिश्तों को आगे बढ़ाने के लिए अत्यंत जरूरी है. यह संभव नहीं है कि सीमाओं पर खून बहाया जा रहा हो और हम कहें कि आइए अन्य क्षेत्रों में हम संबंधों को सुधारने पर काम करें. यह व्यावहारिक नहीं है. हम इस बात को बार-बार कहते हैं. कई मामलों पर प्रगति हुई है कुछ इलाकों में तनाव कम हुआ है सैनिक पीछे हटे हैं. हम कई अन्य इलाकों में भी तनाव घटाने के उपाय कर रहे हैं.

हमारी पिछली बातचीत में ज्यादा फोकस कोरोना संकट पर ही था. मैंने उनसे कहा कि कोरोना ज्यादा व्यापक सुनामी है. मेरे चीनी समकक्ष मंत्री वांग भी इस बात से सहमत थे कि कोरोना का मुकाबला किया जाना चाहिए. मैंने उनसे कहा कि भारतीय कंपनियों ने चीन में ऑर्डर दिए हैं और इसलिए कार्गो की सप्लाई जारी रहनी चाहिए. इसका सकारात्मक परिणाम भी निकला और हमारी कई एयरलाइंस को मंजूरी भी मिली.

सवाल: संकट के दौरान बहुत से सवाल आर्थिक रफ्तार से भी जुड़े हैं. भारत ने 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखा था. क्या ताजा स्थिति के बाद आप उस टाइमलाइन को बदलना चाहेंगे?

जवाब: इस बात पर कोई सवाल ही नहीं की कोरोना ने दुनिया से बहुत बड़ी कीमत वसूली है. लेकिन इसने अर्थव्यवस्थाओं को, देशों को, नेताओं को, कारोबारियों को और नीति निर्माताओं को कई सबक भी सिखाए. अब हम अपनी सोच और व्यवहार में पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा डिजिटल हैं. कोविड-19 तनाव के बीच भी हमारी व्यवस्थाओं ने अनेक क्षमताएं हासिल की है. भारत ने भी शपथ ली जो आत्मनिर्भरता से जुड़ी है. हम पूर्व में कई जरूरी सामानों की आपूर्ति के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहे. इसमें कोई बड़ी गलती नहीं है लेकिन ऐसे में जब किल्लत होती है, संकट आता है तो यह निर्भरता मुश्किल बन जाती है.

आज राष्ट्रीय सुरक्षा का मतलब है उत्पादन की सुरक्षा और आत्मनिर्भरता. इस कड़ी में मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने के लिए किए गए परफॉर्मेंस लिंक इंसेंटिव जैसे प्रयासों के अब सकारात्मक परिणाम दिखने लगे हैं. अन्य श्रम सुधार किए, शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव किए, वित्तीय क्षेत्र में सुधारों को लागू किया. इस दूसरी वेव के शुरू होने से पहले तक बहुत आशावाद के साथ हम आगे बढ़ रहे थे. मौजूदा हालात हमारी परीक्षा है. हम इसका मुकाबला करेंगे लेकिन इस बात का भी विश्वास है कि हमारी आर्थिक दिशा बरकरार रहेगी. यह सुधारों की तरफ और मजबूती के साथ आगे बढ़े. यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हमारा उद्योग जगत ही आत्मविश्वास महसूस कर रहा है. सुधारों से पीछे जाने का कोई सवाल ही नहीं. यह सरकार अपने आर्थिक विजन पर आगे बढ़ेगी.

सवाल: तो आप आखिर में क्या कहना चाहेंगे…?

जवाब: अंत में मैं इतना ही कहूंगा कि इस आयोजन का विषय है कि क्या भारत के पास कोई प्लान है? जी हां, भारत के पास प्लान है. इस संदर्भ में कि हम सेकंड वेव की तात्कालिक चुनौती से निपटने के लिए प्रयास कर रहे हैं. वहीं इससे आगे के लिए भी अपने प्लान को तैयार कर रहे हैं. हमारी मौजूदा जरूरत ऑक्सीजन को पूरा करने के लिए उपाय कर रहे हैं. साथ ही भारत में टीकाकरण के विस्तार की योजना पर आगे बढ़ रहे हैं. कोरोना काल में श्रम, वाणिज्य क्षेत्र में जो सुधार किए गए उनके नतीजा सामने हैं. विदेश नीति को लेकर हमारे कदमों का नतीजा संकट के इस समय में सामने है. बीते 70 सालों और खास तौर पर गत 7 वर्षों में किए गए कामों के परिणाम देखे जा सकते हैं. 

यह भी पढ़ें: कोरोना की तीसरी लहर जरूर आएगी, इसे टाला नहीं जा सकता: कोविड-19 पर केन्द्र के शीर्ष वैज्ञानिक सलाहकार की बड़ी चेतावनी

और पढ़ें
Sponsored Links by Taboola
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

LPG Gas Cylinder: 300 रुपए में मिलेगा गैस सिलेंडर, किस राज्य ने कर दिया ये बड़ा ऐलान
300 रुपए में मिलेगा गैस सिलेंडर, किस राज्य ने कर दिया ये बड़ा ऐलान
MCD Bye Election Result Live: दिल्ली नगर निगम के 12 वार्ड में उपचुनाव के लिए मतगणना आज, सभी तैयारियां पूरी 
Live: दिल्ली नगर निगम के 12 वार्ड में उपचुनाव के लिए मतगणना आज, सभी तैयारियां पूरी 
पाकिस्तान के पूर्व पीएम इमरान खान से 20 मिनट की मुलाकात के बाद बोलीं उनकी बहन, 'अल्हम्दुलिल्लाह, वह...'
पाकिस्तान के पूर्व पीएम इमरान खान से 20 मिनट की मुलाकात के बाद बोलीं उनकी बहन, 'अल्हम्दुलिल्लाह, वह...'
PAK Vs SL: जनवरी में खेला जाएगा श्रीलंका और पाकिस्तान के बीच टी20 सीरीज, जानें पूरा शेड्यूल
PAK Vs SL: जनवरी में खेला जाएगा श्रीलंका और पाकिस्तान के बीच टी20 सीरीज, जानें पूरा शेड्यूल
Advertisement

वीडियोज

Toyota HILUX goes Electric ! | Auto Live #toyota #hilux #toyotahilux
Nissan Tekton vs Renault Duster: Upcoming cars in India | Auto Live
Sansani: 'जानी दुश्मन' औलाद...मम्मी-पापा खल्लास ! | Crime News
Tata Sierra 2025 price, specs, features, engine and all details!| Auto Live
Mahindra XEV 9S first look, interior and features | Auto Live
Advertisement

फोटो गैलरी

Advertisement
Petrol Price Today
₹ 94.72 / litre
New Delhi
Diesel Price Today
₹ 87.62 / litre
New Delhi

Source: IOCL

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
LPG Gas Cylinder: 300 रुपए में मिलेगा गैस सिलेंडर, किस राज्य ने कर दिया ये बड़ा ऐलान
300 रुपए में मिलेगा गैस सिलेंडर, किस राज्य ने कर दिया ये बड़ा ऐलान
MCD Bye Election Result Live: दिल्ली नगर निगम के 12 वार्ड में उपचुनाव के लिए मतगणना आज, सभी तैयारियां पूरी 
Live: दिल्ली नगर निगम के 12 वार्ड में उपचुनाव के लिए मतगणना आज, सभी तैयारियां पूरी 
पाकिस्तान के पूर्व पीएम इमरान खान से 20 मिनट की मुलाकात के बाद बोलीं उनकी बहन, 'अल्हम्दुलिल्लाह, वह...'
पाकिस्तान के पूर्व पीएम इमरान खान से 20 मिनट की मुलाकात के बाद बोलीं उनकी बहन, 'अल्हम्दुलिल्लाह, वह...'
PAK Vs SL: जनवरी में खेला जाएगा श्रीलंका और पाकिस्तान के बीच टी20 सीरीज, जानें पूरा शेड्यूल
PAK Vs SL: जनवरी में खेला जाएगा श्रीलंका और पाकिस्तान के बीच टी20 सीरीज, जानें पूरा शेड्यूल
Dhurandhar Advance Booking: एडवांस बुकिंग में रणवीर सिंह की फिल्म का जलवा, कमा डाले करोड़ों
एडवांस बुकिंग में रणवीर सिंह की 'धुरंधर' का जलवा, कमा डाले करोड़ों
Video: पहले घेवर फिर लड्डू और अब बिरयानी, पुनीत सुपरस्टार ने कीचड़ में डुबोकर खाए चावल- वीडियो वायरल
पहले घेवर फिर लड्डू और अब बिरयानी, पुनीत सुपरस्टार ने कीचड़ में डुबोकर खाए चावल- वीडियो वायरल
क्या डायपर पहनाने से खराब हो जाती है बच्चों की किडनी, जानें इस बात में कितनी हकीकत?
क्या डायपर पहनाने से खराब हो जाती है बच्चों की किडनी, जानें इस बात में कितनी हकीकत?
अब तक चोरी हुए कितने फोन ढूंढ चुका संचार साथी ऐप? होश उड़ा देंगे ये आंकड़े
अब तक चोरी हुए कितने फोन ढूंढ चुका संचार साथी ऐप? होश उड़ा देंगे ये आंकड़े
Embed widget