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Blog: दिल्ली में आप क्यों हारी, अब चुनौती क्या हैं और आगे करना क्या चाहिए?

नई दिल्ली: दिल्ली नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी की हार तो तय थी लेकिन इतनी बुरी हार की कल्पना तो शायद उनके नेताओं ने भी नहीं की होगी. बीजेपी के मुकाबले आप एक चौथाई सीटें ही हासिल कर पाई. कांग्रेस उसे कड़ी टक्कर दे गयी. आप के लिए सबसे ज्यादा कष्टकारी बात यह है कि उसका वोट प्रतिशत पिछले विधान सभा चुनाव के मुकाबले करीब करीब आधा ही रह गया है. तब उसके हिस्से में 53 -54 फीसद वोट आया था लेकिन अब उसके हिस्से में 25-25 फीसद ही आ रहा है.

आप उन वार्डों में भी हार गयी है जो झुग्गी झोपड़े के लिए जाने जाते हैं. झुग्गी वाले तो अरविंद केजरीलाल को अपना मसीहा मानते थे. आप वहां भी हार गयी है जो मध्यम वर्ग वोटरों के वार्ड जाने जाते हैं. यह वर्ग मुफ्त पानी और सस्ती बिजली बिल के लिए केजरीवाल का शुक्रिया अदा करता रहा है . आप मुस्लिम बहुल वार्डों में भी हारी जो पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को छोड़कर उसके पास चला गया था . आप उन वार्डों में भी हारी जो उसके मंत्रियों के विधानसभा क्षेत्रों में आते हैं. यहां तक कि उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के विधानसभा क्षेत्र पटपड़गंज के चार वार्डों में भी आप को हार का सामना करना पड़ा. वैसे आप के आंतरिक सर्वे में आप को 200 से ज्यादा वार्ड मिलते बताए गये थे.

आप को क्या करना चाहिए?

इतनी करारी हार के बाद आम आदमी पार्टी को जनादेश का सम्मान करना चाहिए था. मुख्यमंत्री केजरीवाल को जनता से उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरने के लिए माफी मांगनी चाहिए थी. बीजेपी को बधाई देना चाहिए थी. मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाने का वायदा करना चाहिए था. अपनी सरकार को जनता के द्वार पर ले जाने का आश्वासन देना चाहिए था. मंत्रीमंडल में फेरबदल करने के संकेत देने चाहिए थे. विधायक दल की बैठक बुलाकर सबको कसने की बात करनी चाहिए थी. पार्टी के कार्यकर्ताओं का सम्मेलन बुलाने और उनकी राय लेने की घोषणा करनी चाहिए थी. आत्मचिंतन जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए था. इसके साथ ही अपनी उपलब्धियों को गिनाना चाहिए था. बताना चाहिए था कि मोहल्ला क्लिनिक खोले हैं, सरकारी स्कूलों की हालत सुधारी है, तीन सौ बस्तियों में पानी पहुंचाया है और ऐसे काम आगे भी करते रहेंगे.

लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. न बधाई दी गयी , न माफी मांगी गयी , न आत्मचिंतन की बात हुई और न ही विपक्ष की भूमिका जोरदार ढंग से निभाने का वादा किया गया. उल्टे सारा इल्जाम ईवीएम मशीनों पर डाल दिया गया.

लेकिन 'आप' का तर्क

पार्टी प्रवक्ता आशुतोष लगातार कहते रहे कि तीनों नगर निगमों में बीजेपी के दस साल के शासन के दौरान कोई काम नहीं हुआ , जमकर भ्रष्टाचार हुआ, चोरी चकारी की गयी. इसके बाद उनकी हैरानी सामने आई. उनका कहना था कि ऐसी भ्रष्ट पार्टी को आखिर कैसे लोग वोट दे सकते हैं.

आशुतोष हो सकता है कि ठीक कह रहे हों कि दिल्ली वालों ने दस साल भ्रष्ट नगर निगमों को झेला लेकिन फिर सवाल उठता है कि यह बातें जनता को समझाने में कामयाब क्यों नहीं हुई. सवाल उठता है कि जनता ने फिर भी आप पर विश्वास क्यों नहीं किया. सवाल उठता है कि दस साल के कथित भ्रष्ट तंत्र को क्यों दिल्ली के वोटरों ने पांच और सालों का मौका दे दिया.

आशुतोष को लगता है कि वोटरों ने बीजेपी को वोट नहीं दिया बल्कि यह सारा कमाल तो ईवीएम मशीनों का है. उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया कह रहे हैं कि भले ही उनके आरोपों का मजाक उड़ाया जा रहा हो लेकिन वह ईवीएम मशीनों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते ही रहेंगे. सवाल उठता है कि क्या ऐसी बहानेबाजी से अपनी करारी को ढका जा सकता है, क्या अपनी कमजोरियों को ऐसे आरोपों के कालीन तले छुपाया जा सकता है. अगर नहीं तो सवाल उठता है कि क्या केजरीवाल पर वापसी का कोई मौका है.

केजरीवाल की दिक्कत क्या है?

केजरीवाल की दिक्कत यह है कि वह बहुत जल्दबाजी में हैं. उनकी रणनीति जल्दी से जल्दी राष्ट्रीय पार्टी बनने की है. वह दिल्ली , पंजाब और गोवा में छह फीसद से ज्यादा वोट हासिल कर चुकी है. उसे एक अन्य राज्य में छह फीसद वोट हासिल करने है ( हो सकता है इस साल गुजरात में होने वाले चुनावों में वह ऐसा करने में कामयाब हो जाए ) . ऐसा होने पर उसे राष्ट्रीय दल का दर्जा मिल जाएगा क्यों कि चार लोकसभा सीटें उसके पास पहले से ही है. चुनाव आयोग के एक नियम के तहत उसे राष्ट्रीय दल घोषित किया जा सकता है. लेकिन केजरीवाल को दिल्ली के अपने गढ़ को मजबूत करना चाहिए थी और फिर आगे बढ़ना चाहिए था. फौज जब आगे बढ़ती है तो जीते हुई इलाकों में अपनी पकड़ मजूबत बनाने की बाद ही अगले मोर्चे पर जाती है. यहां तो दिल्ली में जीते भी नहीं थे कि सारे देश की राजनीति को बदल देने की बात करते रहे. पंजाब, गोवा और दिल्ली नगर निगम में हार के बाद क्या अब केजरीवाल दिल्ली पर ही सारा ध्यान देंगे.

केजरीवाल के सामने खतरा क्या है?

विधानसभा चुनावों में तीन साल बचे हैं. लेकिन उससे पहले ही एक बड़े सकंट का सामना केजरीवाल को करना पड़ सकता है. उनके दल के 21 विधायकों पर चुनाव आयोग की तलवार लटक रही है. बहुत संभव है कि उनकी सदस्यता रद्द हो जाए और फिर से चुनाव हों . ऐसे में आप को उस चुनावी लड़ाई के लिए खुद को तैयार करना चाहिए या ईवीएम मशीनों पर आंदोलन चलाने का सोचना चाहिए .

केजरीवाल चाहे तो नया नारा दे सकते हैं ....आपकी सरकार , आपके द्वार ....वह जनता से जुड़े पांच काम छांट सकते हैं और उन्हे पूरा करने के लिए वार्डवार शिविर लगा सकते हैं . हर शिविर में खुद जा सकते हैं . राशन कार्ड , पैन कार्ड , आधार कार्ड , बिजली पानी बिल में गड़बड़ी जैसी समस्याएं मौके पर हल कर सकते हैं . जनता के काम समय पर और बिना रिश्वत दिए हो रहे हैं या नहीं इस पर नजर रख सकते हैं . केजरीवाल को अगर वापसी करनी है तो जनता के बीच ही जाना होगा . जनता के काम करने होंगे . जनता का दिल जीतना होगा . लोग कहते हैं कि केजरीवाल से बहुत उम्मीदे थी लेकिन केजरीवाल ने निराश किया . इस सवाल का जवाब केजरीवाल को तलाशना ही होगा कि आखिर उन्होंने दिल्ली की जनता को कैसे निराश कर दिया . हर बात पर मोदी या फिर ले गर्वनर को कोसने से काम नहीं चलेगा.

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