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Congress Crisis in Rajasthan: पायलट और गहलोत की ताकत को आंकने में चूके माकन, इन 5 गलतियों से बखेड़ा

Rajasthan Congress Crisis: राजस्थान कांग्रेस के कई विधायक पार्टी के संघर्ष का ठीकरा राज्य प्रभारी अजय माकन पर भी फोड़ रहे हैं. राजस्थान की उठा-पटक में माकन की क्या गलतियां हैं, आइये जानते हैं.

Ajay Maken Role in Rajasthan Crisis: कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव (Congress President Election) में बतौर दावेदार अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) का नाम आने के बाद राजस्थान (Rajasthan) में नए मुख्यमंत्री को लेकर शुरू हुए संघर्ष का ठीकरा राज्य कांग्रेस प्रभारी अजय माकन (Ajay Maken) पर भी फोड़ा जा रहा है. पार्टी के कुछ नेताओं के बयानों से लगता है कि माकन सचिन पायलट (Sachin Pilot) और अशोक गहलोत की ताकत को आंकने में चूक गए और कुछ गलतियां कर बैठे, जिससे राज्य में सियासी बखेड़ा खड़ा हो गया.

जब राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी बनाए गए माकन

जून 2020 में सचिन पायलट की बगावत के बाद, राजस्थान के तत्कालीन कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडे पर पार्टी में संतुलन बरकार नहीं रख पाने का आरोप लगा था और उन्हें हटाकर राहुल गांधी के विश्वास पात्र अजय माकन को प्रभारी बनाया गया था. अजय माकन को प्रभारी बनाने की मांग सचिन पायलट ने की थी. 

करीब महीने भर के संघर्ष के बाद जब राज्य में कांग्रेस सरकार से संकट टल गया था और सचिन पायलट को कांग्रेस ने पार्टी में बने रहने के लिए मना लिया था तब 17 अगस्त 2020 को अजय माकन को राज्य प्रभारी का जिम्मा दिया गया था.

तीन लोगों की समिति में भी रखे गए माकन

इसके अलावा राज्य कांग्रेस में सब कुछ सामान्य करने के लिए एक समिति का भी गठन किया गया था, जिसमें माकन के साथ वरिष्ठ नेता अहमद पटेल और केसी वेणुगोपाल को भी रखा गया था. इस समिति को आलाकमान के समझौतों को लागू कराने का काम दिया गया था. हालांकि, नवंबर 2020 में अहमद पटेल का निधन हो गया और वेणुगोपाल के साथ जिम्मेदारी मुख्य रूप से माकन के कंधों पर आ गई थी.

कांग्रेस में कोई भी राज्य प्रभारी आलाकमान और प्रदेश सरकार के बीच अहम कड़ी होता है. राज्य प्रभारी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह पार्टी के अंदर की बारीक से बारीक सूचना पर कान खुले और नजर पैनी रखेगा और किसी अप्रिय स्थिति के पनपने से पहले ही उसका समाधान कर देगा. हालांकि, अजय माकन के लिए राजस्थान में चुनौती बड़ी थी क्योंकि एक ही पार्टी के दो दिग्गजों के बीच उन्हें खाई पाटनी थी और पार्टी में संतुलन बनाना था. 

माकन की भारी गलतियां

राजस्थान कांग्रेस के कुछ नेताओं का कहना है कि अजय माकन दो साल के वक्त में भी पायलट और गहलोत के बीच खाई को नहीं पाट पाए और न ही जयपुर के संकेट को पढ़ पाए. दिल्ली में आलाकमान ने जब सचिन पायलट को सीएम बनाने का फैसला कर लिया था तो माकन को गहलोत खेमे के विधायकों को पहले विश्वास में लेना चाहिए था. यह खबर सार्वजनिक तौर पर लीक नहीं होनी चाहिए थी कि माकन और खड़गे पर्यवेक्षक के रूप में सीधे सचिन पायलट को सीएम बनवाने के लिए राजस्थान भेजे गए हैं और पायलट को भी इस बात को गुप्त रखना चाहिए था. 

कुछ नेताओं का कहना है कि अजय माकन को यहां तक अंदाजा नहीं था कि अशोक गहलोत के साथ कितने विधायक हैं और कितने पायलट के समर्थन में हैं जबकि राज्य प्रभारी होने के नाते उन्हें इस बारे में बारीकी से जानकारी होनी चाहिए थी. माकन इस मुगालते में रहे कि सोनिया गांधी के कहने भर से राज्य में सत्ता परिवर्तन हो जाएगा क्योंकि विधायक पार्टी लाइन के खिलाफ नहीं जाएंगे. सूत्रों के मुताबिक, कुछ वरिष्ठ नेताओं ने दिल्ली में ही माकन को राजस्थान में पक रही खिचड़ी के बारे में चेता दिया था लेकिन वह आलाकमान के फैसले को सीधे लागू कराने के लिए जयपुर आए. 

पहुंच आसान नहीं 

पार्टी के कुछ नेताओं ने आरोप लगाया है कि अजय माकन तक कभी पहुंच आसान नहीं रही. हाल में जयपुर में विधायकों के विद्रोह के बाद जब सीएम अशोक गहलोत माकन से मिलने गेस्ट हाउस पहुंचे तो वह उनसे भी नहीं मिले. उनकी जगह मल्लिकार्जुन खड़गे गहलोत से मिले थे. पार्टी नेताओं के मुताबिक, एक कार्यकर्ता की पहुंच प्रभारी तक होनी चाहिए, जो कि माकन के साथ नहीं है.

पक्षपाक्षपूर्ण रवैया

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, गहलोत सरकार में मंत्री शांति धारीवाल ने अजय माकन पर पक्षपाती होने का आरोप लगाया. धारीवाल के मुताबिक, माकन ने पार्टी में बगावत भांपने के बजाय विधायकों से सचिन पायलट का प्रचार करने को कहा.

धारीवाल ने कहा, ''यह सौ फीसदी साजिश थी और राजस्थान कांग्रेस प्रभारी इसमें शामिल थे. मेरा प्रभारी के खिलाफ आरोप है कि वह पक्षपाती होकर विधायकों से बात कर रहे थे. उन्होंने विधायकों से कहा कि सचिन पायलट के नाम को प्रचारित करें.'' धारीवाल ने माकन पर लंबे समय से पक्षपाती होने और पायलट का पक्ष लेने का आरोप लगाया.

ऐसे संतुलन बैठा सकते थे माकन 

पार्टी नेताओं के मुताबिक, माकन को चाहिए था कि पायलट-गहलोत खेमों के बीच संतुलन बनाने और आलाकमान के निर्देशों का पालन कराने के लिए काम करते. इसके लिए वह राजनीतिक नियुक्तियों और कैबिनेट विस्तार आदि के माध्यम से पायलट के लोगों को सरकार में शामिल करा सकते थे, जो वह नहीं करा सके. यहां तक कि माकन अशोक गहलोत से आलाकमान के निर्देश के मुताबिक, संवाद बनाकर नहीं रख पाए.

विधायक दल की बैठक बुलाने से करते ये काम

गहलोत सरकार के मंत्री धारीवाल ने यह भी आरोप लगाया कि पर्यवेक्षक के रूप में माकन सभी विधायकों से व्यक्तिगत रूप से मिलना नहीं चाहते थे. उन्होंने कहा वह बस सोनिया गांधी को सीएम चुनने के लिए अधिकृत करने के प्रस्ताव को लागू कराना चाहते थे. वह चाहते तो विधायक दल की बैठक बुलाने से पहले उनसे बात करते लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

इसलिए भी सचिन के करीब हो गए माकन

गहलोत खेमे के कुछ विधायकों का यह भी मानना है कि 2022 के राज्यसभा चुनाव में राजस्थान से उम्मीदवार नहीं बनाए जाने के कारण भी माकन पायलट के ज्यादा करीब हो गए थे. माकन को हरियाणा से चुनाव लड़ना पड़ा था और वह हार गए. वहीं, हरियाणा कांग्रेस के नेता रणदीप सुरजेवाला को राजस्थान से लड़ाया गया था. 

पार्टी नेताओं के मुताबिक, आंतरिक रूप से मुद्दों को हल करने के बजाय माकन दिल्ली गए और विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की बात की. कुछ विधायकों ने दावा किया कि राजस्थान के घटनाक्रम से करीब डेढ़ हफ्ते पहले उन्होंने राज्य प्रभारी अजय माकन से दिल्ली में मुलाकात की थी, जिसमें मालूम लग गया था कि सचिन पायलट को सीएम बनाने का फैसला आलाकमान ने ले लिया है. पायलट के खिलाफ विधायकों का रुख मालूम होने के बाद भी अचानक विधायक दल की बैठक बुलाई गई.

राजस्थान में जब शुरू हुआ संघर्ष

बता दें कि बीते रविवार (25 सितंबर) को राजस्थान कांग्रेस में अशोक गहलोत गुट के 80 से ज्यादा विधायकों ने सचिन पायलट को सीएम बनाए जाने के फैसले के खिलाफ बागी रुख अख्तियार कर लिया था और विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी को इस्तीफा तक सौंप दिया था. वे अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे की ओर से बुलाई गई विधायक दल की बैठक में शामिल नहीं हुए थे. तब से राजस्थान कांग्रेस में संघर्ष चल रहा है. इस बीच गुरुवार (29 सितंबर) को सोनिया गांधी से मुलाकात कर अशोक गहलोत ने साफ कर दिया है कि वह कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. आगे वह राजस्थान के सीएम बने रहेंगे या उनकी जगह कोई और कुर्सी संभालेगा, इस पर सबकी नजरें टिकी हैं.

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