Shakambhari Navratri 2025: कब से कब तक मनाई जाएगी शाकंभरी नवरात्र?जानें तिथि,महत्व और पूजा विधि
Shakambhari Navratri 2025: शाकंभरी नवरात्रि 28 दिसंबर 2025 से 3 जनवरी 2026 तक मनाई जाएगी. इसमें देवी शाकंभरी की पूजा अष्टमी से पूर्णिमा तक की जाती है, जिससे स्वास्थ्य, भरण-पोषण और समृद्धि मिलती है.

Shakambhari Navratri 2025: शाकंभरी नवरात्रि हिंदू धर्म का एक विशेष और आध्यात्मिक पर्व है, जो देवी शाकंभरी को समर्पित है. देवी शाकंभरी को भगवती का वह रूप माना जाता है. उन्होंने अकाल और भूख से मानवता की रक्षा की थी.
यह नवरात्रि पौष माह में मनाई जाती है और खास तौर पर कृषि से जुड़े क्षेत्रों में इसका गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है. यह रूप शक्ति, समृद्धि और संरक्षण का प्रतीक माना जाता है.
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल शाकंभरी नवरात्र 28 दिसंबर 2025 से शुरू होगी. वहीं, इसका समापन 03 जनवरी 2026 को होगा.
इसे प्रकृति की पूजा से भी जोड़ कर देखा जाता है. यह पर्व हमें प्रकृति, अन्न के प्रति संवेदनशील होना सीखाता है. ऐसे में आइए जानते हैं कि शाकंभरी नवरात्रि पूजा विधि और महत्व.
कब से कब तक मनाया जाएगा पर्व
- शाकंभरी नवरात्रि का प्रारंभ- 28 दिसंबर 2025
- शाकंभरी नवरात्रि की समाप्ति- 3 जनवरी 2026
- बाणदा अष्टमी या पौष शुक्ल अष्टमी- 28 दिसंबर 2025
- शाकंभरी जयंती या पौष पूर्णिमा- 3 जनवरी 2026
पंचांग के अनुसार पौष शुक्ल अष्टमी तिथि 27 दिसंबर को दोपहर 01.09 बजे शुरू होकर 28 दिसंबर को सुबह 11.59 बजे समाप्त होगी.
क्यों होती है यह बाकी नवरात्रियों से अलग
हिंदू धर्म में चार बार नवरात्रि मनाई जाती है. शाकंभरी नवरात्रि अन्य नवरात्रियों से अलग होती है. यह शुक्ल प्रतिपदा से नहीं, बल्कि पौष शुक्ल अष्टमी से शुरू होती है और पौष पूर्णिमा तक चलती है.
आमतौर पर यह आठ दिनों का पर्व होता है, लेकिन तिथि के कारण कभी-कभी इसकी अवधि सात या नौ दिन की भी हो सकती है. इसे बाणदा अष्टमी से शुरू होने के कारण विशेष रूप से शुभ माना जाता है.
देवी शाकंभरी का महत्व
देवी शाकंभरी को उस दिव्य शक्ति का रूप माना जाता है, जिन्होंने धरती पर अकाल समाप्त करने के लिए फल, सब्जियां, अनाज और हरियाली उत्पन्न की. इसलिए उन्हें वनस्पति, फसल और पोषण की देवी कहा जाता है.
प्रतिमाओं में देवी को हरियाली से घिरा दिखाया जाता है, जो समृद्धि, उर्वरता और जीवन का प्रतीक है. उनकी पूजा प्रकृति और मानव जीवन के गहरे संबंध को दर्शाती है. कुछ जगहों में बहुत ही धूमधाम के साथ मनाई जाती है.
पूजा मंत्र:
- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति माहेश्वरी अन्नपूर्णा स्वाहा॥
- ॐ महानारायण्यै च विदमहे महादुर्गायै धीमहि तन्नो शाकम्भरी: प्रचोदयात्॥
- ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धनधान्य: सुतान्वित:। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥
- शाकैः पालितविष्टपा शतदृशा शाकोल्लसद्विग्रहा । शङ्कर्यष्टफलप्रदा भगवती शाकम्भरी पातु माम् ॥
पूजा विधि, क्षेत्रीय महत्व और आध्यात्मिक संदेश
शाकंभरी नवरात्रि के दौरान भक्त सुबह जल्दी उठकर स्नान करके साफ वस्त्र धारण करते हैं. शाकंभरी नवरात्रि में भक्त उपवास रखते हैं. मंत्र जाप करते हैं. मां शाकंभरी को लाल चुनरी समेत अन्य 16 शृंगार की सामग्री चढ़ाते हैं.
देवी को फल, सब्जियां व हरे पत्ते अर्पित करते हैं. दुर्गा सप्तशती का पाठ कर आरती करें. इस दिन मिट्टी के एक पात्र में जौ के बीज बोएं और उस पर 8 दिनों तक पानी छिड़कें ताकि जौ अच्छे से उगे. इस दौरान सभी तरह की तामसिक चीजों से दूर रहते हैं.
कई मंदिरों में विशेष पूजा, अभिषेक और सामूहिक प्रार्थनाएं होती हैं. कर्नाटक में देवी की पूजा बाणशंकरी देवी के रूप में की जाती है और बाणदा अष्टमी का विशेष महत्व है.
यह पर्व राजस्थान, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के कई हिस्सों में श्रद्धा से मनाया जाता है. शाकंभरी नवरात्रि प्रकृति का संरक्षण का भी संदेश देता है.
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