महाकालेश्वर मंदिर मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित है। यह भगवान शिव को समर्पित है और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
Mahakaleshwar Mandir: बिना भस्म आरती क्यों नहीं मिलती महाकाल की पूर्ण कृपा? जानिए धार्मिक रहस्य और मान्यता
Mahakaleshwar Mandir Bhasm Aarti: उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर अपने आप में विशेष पहचान रखता है, क्योंकि यह एक मात्र ज्योतिर्लिंग है जहां भगवान शिव का अद्भुत श्रृंगार किया जाता है.

Mahakaleshwar Mandir Bhasm Aarti: मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर भक्तों के बीच भक्ति का एक बड़ा केंद्र है. जो भगवान शिव को समर्पित है. यह मंदिर भगवान के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. महाकालेश्वर मंदिर की भस्म आरती यहां की खास पहचान है. ये आरती एक धार्मिक अनुष्ठान है. जो हमें जीवन के सबसे बड़े सत्य मृत्यु के बारे में बताती है.
12 ज्योतिर्लिंग में से है सबसे खास
12 ज्योतिर्लिंग में से उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जहां भगवान शिव का ऐसा अनोखा श्रृंगार किया जाता है. वहीं सभी ज्योतिर्लिंग में से सिर्फ महाकाल मंदिर में ही भस्म आरती की जाती है, जो भगवान शिव को समर्पित होती है.
मान्यता है कि भगवान शिव को यह आरती, बेहद ही प्रिय है. आइए जानते है इस आरती की मान्यता और रहस्य.
क्या है भस्म चढ़ाने की मान्यताएं?
वैराग्य और मृत्यु को जीवन का अंतिम सच माना गया है, और यही भाव भस्म आरती के माध्यम से मिलता है. भगवान शिव को काल का भी नियंत्रक कहा गया है. यह संसार क्षणिक है, यहां मौजूद हर वस्तु का अंत निश्चित है और अंततः सब कुछ राख में मिल जाएगा. भस्म उसी सत्य का प्रतीक है.
स्वयं भगवान शिव अपने शरीर पर भस्म धारण कर यह बताते हैं कि भौतिक सुख और सुविधाएं स्थायी नहीं हैं, जबकि आत्मा कभी नष्ट नहीं होती.
भगवान शिव द्वारा भस्म धारण करने का अर्थ यह भी है कि उन्होंने मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है, इसी कारण उन्हें महाकाल भी कहा जाता है. भस्म आरती ब्रह्म मुहूर्त में संपन्न होती है, जब महाकाल अपने निराकार स्वरूप में विराजमान होते हैं.
मान्यता है कि इस दिव्य स्वरूप के दर्शन से मनुष्य को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. भस्म आरती के दर्शन मात्र से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.
भस्म सांसारिक इच्छाओं के त्याग का प्रतीक
भस्म आरती व्यक्ति को जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाता है. पहले जब महाकाल मंदिर में भगवान शिव का शृंगार किया जाता था, तो भस्म को श्मशान घाट से लाया जाता था. पंचतत्वों में विलीन हुए देह की राख को शिव को समर्पित किया जाता था.
मगर अब के समय में गाय के गोबर और चंदन से बनी भस्म का इस्तेमाल किया जाता है. भस्म को शुद्ध माना जाता है, जो जीवन से नकारात्मकता दूर करती है, साथ ही इसे सांसारिक वस्तुओं और इच्छाओं के त्याग का भी प्रतीक माना जाता है.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
Frequently Asked Questions
महाकालेश्वर मंदिर कहाँ स्थित है?
महाकालेश्वर मंदिर की भस्म आरती क्यों खास है?
भस्म आरती महाकालेश्वर मंदिर की खास पहचान है। यह एक धार्मिक अनुष्ठान है जो जीवन के सबसे बड़े सत्य मृत्यु के बारे में बताता है।
भस्म चढ़ाने की क्या मान्यताएं हैं?
भस्म वैराग्य और मृत्यु को जीवन का अंतिम सत्य मानने का प्रतीक है। यह दर्शाती है कि भौतिक सुख स्थायी नहीं हैं और आत्मा अजर-अमर है।
भस्म आरती का क्या महत्व है?
मान्यता है कि भस्म आरती के दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति होती है और नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं। यह जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है।
वर्तमान में भस्म आरती में किस भस्म का प्रयोग किया जाता है?
अब के समय में गाय के गोबर और चंदन से बनी भस्म का इस्तेमाल किया जाता है। इसे शुद्ध माना जाता है और यह सांसारिक इच्छाओं के त्याग का प्रतीक है।
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