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द्वारका में द्वापर की तरह 'प्रकट' भए नंदलाला, आसमान से बारिश तो आंखों से बरसे आंसू

जन्माष्टमी की धूम पूरी दुनिया में रही, लेकिन दिल्ली में ऐसी जन्माष्टमी मनाई गई कि द्वारका में द्वापर का माहौल नजर आने लगा. श्रद्धालु इस कदर कान्हा की भक्ति में खो गए कि उन्हें खुद का भी होश नहीं रहा.

जब आसमान से बरसते पानी और आंखों के आंसुओं का संगम हो जाए तो समझ लीजिए कि कान्हा अपनी मौजूदगी का अहसास दिला रहे हैं. यह नजारा दिल्ली के द्वारका में दिखा, जहां नंदलाला द्वापर वाले अंदाज में ऐसे 'प्रकट' हुए कि आसमान से तो बारिश हो रही थी और आंखों से आंसू बरस रहे थे. साथ ही, यह भी लगने लगा कि भले ही यह युग द्वापर नहीं, लेकिन माहौल द्वापर वाला जरूर बन चुका है. दरअसल, जन्माष्टमी के मौके पर दिव्य ज्योति जागृति संस्थान ने दो दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया था. आइए आपको रूबरू कराते हैं कि कार्यक्रम में ऐसा क्या-क्या हुआ, जिसने पूरे माहौल को दिव्य बना दिया.


द्वारका में द्वापर की तरह 'प्रकट' भए नंदलाला, आसमान से बारिश तो आंखों से बरसे आंसू

कान्हा की भक्ति में खिंचे चले आए श्रद्धालु

जन्माष्टमी के मौके पर दिव्य ज्योति जागृति संस्थान ने हर साल की तरह इस बार भी द्वारका सेक्टर-10 में कान्हा के आगमन के लिए 29वां दो दिवसीय भव्य श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव आयोजित किया. इस कार्यक्रम की थीम दर्शन इतिहास का, परिवर्तन आज का थी. 25 अगस्त से शुरू हुए इस प्रोग्राम ने पहले दिन इस तरह समां बांधा कि दूसरे दिन भी हजारों श्रद्धालु कान्हा के दीदार के लिए खिंचे चले आए. यहां सभी प्रस्तुति इतनी शानदार रहीं कि हर कोई मंत्रमुग्ध रह गया. नन्हे-मुन्ने कलाकारों का प्रदर्शन इतना शानदार था कि कई बार लगा प्रभु खुद लीला दिखा रहे हैं. 


द्वारका में द्वापर की तरह 'प्रकट' भए नंदलाला, आसमान से बारिश तो आंखों से बरसे आंसू

आसमां से बरसी कान्हा की महिमा

26 अगस्त को रात 11:55 बजे तक हर कोई कान्हा के जन्म का इंतजार कर रहा था, तब आसमान में घंटों से ठहरे हुए काले-घने बादल अचानक बरसने लगे. बिजली उसी तरह कड़कने लगी, जैसे द्वापर युग में कान्हा के आगमन का स्वागत प्रकृति ने किया था. बारिश की यह झड़ी कान्हा के जन्म के दौरान रात 12:01 बजे तक लगातार जारी रही और उसके बाद अचानक थम गई. वहीं, जब कुंज बिहारी की आरती शुरू हुई तो बारिश की बूंदें एक बार भी नंदलाला का तिलक करने के लिए धरती पर आने लगीं. इस दौरान हर किसी की जुबां पर बस एक ही बात थी कि आसमां से बारिश नहीं, कान्हा की महिमा बरस रही है.


द्वारका में द्वापर की तरह 'प्रकट' भए नंदलाला, आसमान से बारिश तो आंखों से बरसे आंसू

बारिश में नाचने लगे श्रद्धालु

आमतौर पर बारिश हो तो हर कोई खुद को बचाने की कोशिश करता है, लेकिन 26 अगस्त की रात जब बरखा ने धरती का रुख किया तो कान्हा की भक्ति में डूबे हजारों श्रद्धालु झूमने लगे और घूम-घूमकर नाचने लगे. हर शख्स द्वापर युग के उस वक्त की कल्पना करने लगा, जब कड़कड़ाती बिजली और मूसलाधार बारिश के बीच कान्हा ने मथुरा में कंस की कैद में जन्म लिया था.


द्वारका में द्वापर की तरह 'प्रकट' भए नंदलाला, आसमान से बारिश तो आंखों से बरसे आंसू

कलाकारों की प्रस्तुति ने कर दिया भावुक

इस कार्यक्रम में टेक्नोलॉजी और संस्कृति का अद्भुत संगम नजर आया, जिसके माध्यम से समाज तक श्री कृष्ण की शिक्षाओं के वैज्ञानिक और व्यावहारिक पहलुओं को पहुंचाया गया. कार्यक्रम में कलाकारों ने गुरु वंदना, श्री कृष्ण का विराट स्वरूप दर्शन, श्री कृष्ण की लीलाएं और श्री कृष्ण के जन्मदिन का आनंदमयी उत्सव जैसे तमाम मंचन किए गए, जिन्हें देखकर कार्यक्रम में मौजूद करीब 45 हजार श्रद्धालु भावुक हो गए. तमाम श्रद्धालुओं की आंखों से अविरल आंसू बहते नजर आए. 


द्वारका में द्वापर की तरह 'प्रकट' भए नंदलाला, आसमान से बारिश तो आंखों से बरसे आंसू

मनोज तिवारी ने गाया भजन तो मनु भाकर ने फोड़ी मटकी

इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण मटकी फोड़ गतिविधि थी, जिसमें समाज में व्याप्त सामाजिक बुराइयों पर निशाना साधा गया। इस दौरान केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, सांसद अन्नपूर्णा देवी, सांसद मनोज तिवारी, राज्यसभा सांसद अरुण सिंह और ओलंपिक में डबल मेडल जीतने वाली शूटर मनु भाकर मौजूद थे. मनु भाकर ने गुलेल से अपना शूटिंग कौशल दिखाया और सामाजिक बुराइयों की मटकियां फोड़ दीं. इसके अलावा पूर्वी दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी ने कान्हा का भजन गाकर हर किसी का दिल जीत लिया.


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खबर कोई भी हो... कैसी भी हो... उसकी नब्ज पकड़ना और पाठकों को उनके मन की बात समझाना कुमार सम्भव जैन की काबिलियत है. मुहब्बत की नगरी आगरा से मैंने पत्रकारिता की दुनिया में पहला कदम रखा, जो अदब के शहर लखनऊ में परवान चढ़ा. आगरा में अकिंचन भारत नाम के छोटे से अखबार में पत्रकारिता का पाठ पढ़ा तो लखनऊ में अमर उजाला ने खबरों से खेलना सिखाया. 

2010 में कारवां देश के आखिरी छोर यानी राजस्थान के श्रीगंगानगर पहुंचा तो दैनिक भास्कर ने मेरी मेहनत में जुनून का तड़का लगा दिया. यहां करीब डेढ़ साल बिताने के बाद दिल्ली ने अपने दिल में जगह दी और नवभारत टाइम्स में नौकरी दिला दी. एनबीटी में गुजरे सात साल ने हर उस क्षेत्र में महारत दिलाई, जिसका सपना छोटे-से शहर से निकला हर लड़का देखता है. साल 2018 था और डिजिटल ने अपना रंग जमाना शुरू कर दिया था तो मैंने भी हवा के रुख पकड़ लिया और भोपाल में दैनिक भास्कर पहुंच गया. 

झीलों के शहर की खूबसूरती ने दिल और दिमाग पर काबू तो किया, लेकिन जरूरतों ने वापस दिल्ली ला पटका और जनसत्ता में काफी कुछ सीखा. यह पहला ऐसा पड़ाव था, जिसकी आदत धारा के विपरीत चलना थी. इसके बाद अमर उजाला नोएडा में करीब तीन साल गुजारे और अब एबीपी न्यूज में बतौर फीचर एडिटर लोगों के दुख-दर्द और तकलीफ का इलाज ढूंढता हूं. करीब 18 साल के इस सफर में पत्रकारिता की दुनिया के हर कोने को खंगाला, चाहे वह रिपोर्टिंग हो या डेस्क... प्रिंटिंग हो या मैनेजमेंट... 

काम की बात तो बहुत हो चुकी अब अपने बारे में भी चंद बातें बयां कर देता हूं. मिजाज से मस्तमौला तो काम में दबंग दिखना मेरी पहचान है. घूमने-फिरने का शौकीन हूं तो कभी भी आवारा हवा के झोंके की तरह कहीं न कहीं निकल जाता हूं. पढ़ना-लिखना भी बेहद पसंद है और यारों के साथ वक्त बिताना ही मेरा पैशन है. 

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