Type 1 Diabetes Awareness: भारत में डायबिटीज मरीजों के लिए नई उम्मीद, निक जोनस और प्रियंका लाए बियॉन्ड टाइप 1 कैंपेन
Diabetes Stigma In India: भारत में लगातार डायबिटीज के मामले बढ़ रहे हैं, चलिए आपको बताते हैं कि इसको लेकर निक जोनस और प्रियंका ने कौन सा अभियान शुरू किया है और उसका फायदा क्या है?

Type 1 Diabetes Awareness India: निक जोनस और प्रियंका चोपड़ा अब भारत में डायबिटीज़ को लेकर एक नई पहल की शुरुआत कर रहे हैं. दुनिया भर में टाइप 1 डायबिटीज को लेकर काम करने वाला निक का गैर-लाभकारी संगठन बियॉन्ड टाइप 1 अब देश में भी जागरूकता बढ़ाने और इससे जुड़ी शर्म, हिचकिचाहट को खत्म करने के लिए अभियान चला रहा है. प्रियंका ने इंस्टाग्राम पर बताया कि वह अपने पति निक जोनस की इस मुहिम को भारत तक लाने पर खुश हैं. बियॉन्ड टाइप 1 का उद्देश्य दुनिया भर के टाइप 1 डायबिटीज मरीजों को एक प्लेटफॉर्म पर लाना है, जहां उन्हें सही जानकारी, संसाधन, समर्थन और बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा मिल सके.
क्या कहा प्रियंका चोपड़ा ने?
प्रियंका ने लिखा कि उनकी टाइप 1 डायबिटीज़ की समझ निक की मेडिकल जर्नी से ही शुरू हुई। सिर्फ 13 साल की उम्र में निदान होने के बाद निक ने अपनी हालत को मैनेज करते हुए एक ऐसी जिंदगी बनाई जो लोगों को सीमाओं से आगे बढ़ने की ताकत देती है. प्रियंका ने कहा कि निक ने बियॉन्ड टाइप 1 की स्थापना इसलिए की ताकि डायबिटीज से जूझ रहे लोग सम्मान, जानकारी और सपोर्ट हासिल कर सकें.
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भारत क्यों है इस पहल का बड़ा केंद्र?
दुनियाभर में डाटबिटीज के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, भारत उनमें से एक है. WHO के अनुसार भारत में 18 वर्ष से ऊपर करीब 7.7 करोड़ लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं. दुनिया में सबसे ज़्यादा टाइप 1 डायबिटीज वाले युवाओं में भारत दूसरे नंबर पर है, कई मामलों में बीमारी देर से पकड़ में आती है और बच्चे वर्षों तक इसे अकेले झेलते रहते हैं. इसी अंतर को भरने के लिए बियॉन्ड टाइप 1 भारत में एक कैंपेन लॉन्च कर रहा है, जिसमें ऐसे लोगों की कहानियां शामिल होंगी जिन्होंने डायबिटीज से लड़ते हुए अपनी जिंदगी में बड़ा बदलाव लाया. इस कैंपेन में शामिल लोग हैं, लेफ्टिनेंट कर्नल कुमार गौरव, मेहरिन राणा, निशांत अमीन, श्रेया जैन, इंदु थंपी और हरिचंद्रन पोनुसामी.
निक जोनस की अपनी जर्नी
निक जोनस को 2002 में, जब वह सिर्फ 13 साल के थे, टाइप 1 डायबिटीज का इलाज हुआ था. शुरुआत में वह खुद को बिल्कुल अकेला महसूस करते थे. बाद में उन्होंने महसूस किया कि उनकी तरह कई लोग हैं जो निदान के बाद आइसोलेशन में चले जाते हैं, जिन्हें किसी सहारे और समझ की जरूरत होती है. इसी अनुभव ने उन्हें बियॉन्ड टाइप 1 शुरू किया. यह एक ऐसा संस्थान है, जिसका उद्देश्य ऐसा माहौल बनाना है, जहां लोग अपनी जर्नी साझा कर सकें, खुलकर बात कर सकें और एक-दूसरे को मजबूत बना सकें.
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Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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Source: IOCL























