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क्या होता है अभय मुद्रा, इस मुद्रा में क्यों बनती हैं प्रतिमाएं

क्या आप जानते हैं कि अभय मुद्रा क्या होती है? क्योंकि अधिकांश देवी-देवताओं की प्रतिमाएं इसी मुद्रा में दिखती है. जानिए अभय मुद्रा का क्या अर्थ है, जिस कारण संसद भवन में भी इसका जिक्र हुआ है.

दुनियाभर के सभी धर्मों में अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा की जाती है. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी मुद्रा के बारे में बताएंगे, जिस मुद्रा का कनेक्शन अधिकांश धर्मों से है. इतना ही नहीं अभी हाल ही में संसद भवन में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने भी इसका जिक्र किया था. आज हम आपको बताएंगे कि अभय मुद्रा क्या होती है और इसका इस्तेमाल कहां पर किया जाता है. 

अभय मुद्रा

अभय मुद्रा का कनेक्शन कई धर्मों के देवी-देवताओं से है. बता दें कि अभी हाल ही में संसद भवन में भी अभय मुद्रा का जिक्र किया गया था. जिसके बाद से ही सोशल मीडिया से लेकर अलग-अलग धर्म को मानने वाले लोग भी ये जानना चाहते थे कि आखिर अभय मुद्रा क्या होता है और इसका कनेक्शन धर्म या देवी-देवताओं से क्या है. 

मुद्रा क्या है?

सबसे पहले ये जानते हैं कि आखिर मुद्रा क्या होती है. बता दें कि मुद्रा हाथ उठाकर किसी खास तरह का संदेश देने का एक कलात्मक तरीका है. वहीं मुद्राएं दरअसल उंगलियों की स्थितियां हैं. इनका अभिप्राय दैवीय शक्ति की अनुभूति और किसी एक जगह ध्यान केंद्रित करने के लिए होता है. आपने देखा होगा कि सभी धर्मों के देवता फोटो में किसी ना किसी तरह की मुद्रा में दिखते हैं. इसमें सबसे महत्वपूर्ण मुद्रा पद्म मुद्रा, गदा मुद्रा और अभय मुद्रा है. 

क्या होता अभय मुद्रा

'अभय मुद्रा' दरअसल निर्भय रहने और सुरक्षा का एक संकेत है. ये हिंदू, बौद्ध और जैन प्रतिमाओं में प्रचलित है. इस मुद्रा में आम तौर पर दाहिना हाथ कंधे की ऊंचाई तक उठा रहता है. वहीं हथेली को बाहर की और उंगलियों को सीधा रखते हुए दिखाया जाता है, जबकि बायां हाथ गोद में रहता है. आपने कई भगवान समेत कई देवताओं की प्रतिमाओं को इस मुद्रा में देखा होगा. भगवान नटराज समेत अधिकतर हिंदू देवता अभय मुद्रा में नजर आते हैं, जिसका अर्थ होता है डरो मत, मैं आपकी रक्षा करूंगा.

अभय का अर्थ

संस्कृत में अभय का अर्थ निर्भयता है. इस प्रकार यह मुद्रा सुरक्षा, शांति स्थापित करने और भय दूर करने का प्रतीक है. प्राचीन समय के अधिकांश मूर्ति आपको अभय मुद्रा में नजर आएगी. 

बौद्ध धर्म में अभय मुद्रा

बता दें कि गुप्त काल की भगवान बुद्ध की ऐसी कई मूर्तियां और चित्र देखते हैं, जिसमें वो अपना एक हाथ ऊपर उठाए हुए अभय मुद्रा में हैं.

नटराज की मूर्ति

इसके अलावा तमिलनाडु की 11वीं सदी की इस चोल काल की नटराज की मूर्ति भी अभय मुद्रा में है. शिव की नटराज छवि उन्हें ब्रह्मांड के निर्माता, संरक्षक और विध्वंसक की भूमिकाओं से जोड़ती है. क्योंकि नटराज के दाहिने हाथ में डमरू ये सृष्टि की पहली आवाज़ बनती है. वहीं ऊपरी बाएं हाथ में अग्नि जो आग ब्रह्मांड को नष्ट कर देगी और निचले दाहिने हाथ से वह अभय मुद्रा भय को दूर करने वाला इशारा में हैं. इन प्रतीकों का अर्थ है शिव में विश्वास के माध्यम से भक्त मोक्ष हासिल कर सकते हैं. 

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