पेग में ही क्यों नापी जाती है शराब, आखिर क्या है इसकी वजह?
Liquor Scale In Peg: पेग सिर्फ शराब की नाप नहीं, बल्कि विज्ञान, इतिहास और गिनती का वह मिलाजुला फॉर्मूला है जो एक ग्लास में दुनिया भर की कहानी समेटे बैठा है. आइए समझें.

क्या कभी सोचा है, शराब की दुनिया में छोटा-बड़ा नहीं, पेग क्यों चलता है? बार काउंटर पर ग्लास उठते हैं, बोतलें खुलती हैं और बैलेंस बिल्कुल 30 या 60 एमएल पर ही टिक जाता है. लेकिन आखिर यह 30-60 की कहानी शुरू कहां से हुई? क्यों भारत और नेपाल समेत कुछ देशों में ही शराब को ‘पेग’ की इकाई में नापा जाता है? और क्यों इस नाम के पीछे छिपा इतिहास आज भी ग्लास से लेकर आदतों तक अपना असर छोड़ता है? जवाब आपको चौंकाने वाले हैं. चलिए जानें.
पेग का क्यों है इतना महत्व?
शराब जब परोसी जाती है तो उसका पूरा खेल ग्लास या बोतल का नहीं बल्कि नाप का होता है, वही नाप जिसे हम ‘पेग’ कहते हैं. भारत और नेपाल में यह शब्द इतना आम है कि लोग शराब को पेग में ही तौलते-समझते हैं. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि दुनिया के बाकी देशों में शराब को इस तरीके से नहीं मापा जाता है, वहां यूनिट अलग होती है और तरीका भी, तो फिर हमारे यहां पेग का इतना महत्व क्यों है?
कहां से आया पेग शब्द?
सबसे पहले बात करते हैं इसके इतिहास की. इंटरनेट और ऐतिहासिक संदर्भ बताते हैं कि पेग शब्द डेनमार्क के पुराने शब्द paegl से आया है. यह माप की एक ऐसी इकाई थी जिससे तरल पदार्थों को नापा जाता था. समय के साथ यह शब्द अलग-अलग देशों में अलग रूप लेता गया और भारत-नेपाल में यह शराब की मानक नाप बन गया.
क्यों पेग में ही नापी जाती है शराब?
अब सवाल यह है कि आखिर छोटा पेग 30 एमएल और बड़ा पेग 60 एमएल ही क्यों होता है? इसके पीछे एक सीधी, वैज्ञानिक और बेहद सामान्य-सी पर रहस्यमयी वजह है. शरीर की क्षमता को ध्यान में रखते हुए 30 एमएल को एक ऐसा सेफ हिस्सा माना गया जिसमें शराब की मात्रा शरीर के लिए तुरंत भारी नहीं पड़ती है. यह क्वांटिटी इतनी कम होती है कि शरीर इसे टूटकर अलग-अलग केमिकल्स में बदल सके. लिवर को भी यह मात्रा संभालना आसान लगता है, इसलिए छोटे पेग को स्टैंडर्ड माना गया. यही वजह है कि डॉक्टर भी कभी-कभार 30 एमएल को एक तरह से कंट्रोल्ड सर्विंग बताते हैं, हालांकि शराब स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है, यह तथ्य हमेशा ही सही है.
क्या है इसके पीछे का गणित?
दूसरी वजह है गणित की. ज्यादातर शराब की बोतलें 750 एमएल की होती हैं. ऐसे में 30-60 एमएल में नापना बारटेंडर के लिए बेहद सुविधाजनक होता है. इससे उन्हें यह भी पता रहता है कि एक बोतल से कितने पेग निकलेंगे और कितनी सर्विंग बची है. यही वजह है कि बार में पेग की यह नाप एक तरह से आसान बिजनेस मॉडल बन गई.
इसके अलावा एक अंतरराष्ट्रीय संबंध भी है. दुनिया में शराब की इंटरनेशनल यूनिट 1 औंस यानी लगभग 29.57 एमएल मानी जाती है, जो लगभग 30 एमएल के बराबर ही है. यानी भारतीय ‘स्मॉल पेग’ दुनिया की इंटरनेशनल यूनिट के करीब बैठता है. इसका मतलब यह कि पेग भले ही एक देसी शब्द हो, लेकिन नाप काफी हद तक ग्लोबल स्टैंडर्ड से मेल खाती है.
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