भारत के लिए रूस ने कब-कब किया वीटो का इस्तेमाल, धरी रह गई चीन और अमेरिका की चाल
Russia Use Veto For India: संयुक्त राष्ट्र की बहसों के बीच जब-जब दुनिया भारत के खिलाफ खड़ी दिखी, तभी रूस ने अपनी कुर्सी से उठकर वो फैसला लिया जिसने कई शक्तिशाली देशों की चालें धरी की धरी छोड़ दीं.

राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जब इस बार भारत की जमीन पर उतरे, तो उनकी हर बात में एक पुरानी लेकिन अटूट साझेदारी की गूंज साफ सुनाई दी. उन्होंने साफ कहा कि आज रूस और भारत दोनों किसी भी वैश्विक दबाव से ऊपर उठकर अपने फैसले लेते हैं. यूक्रेन युद्ध की आग में रूस घिरा हुआ है, नाटो पूरी ताकत के साथ उसके खिलाफ खड़ा है, लेकिन इसके बावजूद भारत ने अमेरिकी नाराजगी की परवाह किए बिना रूस के साथ अपने रिश्तों को कमजोर नहीं पड़ने दिया. ऐसे हालात में एक सवाल फिर से चर्चा में है कि आखिर रूस ने संयुक्त राष्ट्र में कब-कब भारत के पक्ष में अपना वीटो हथियार चलाया जो कई बार चीन और अमेरिका की चालों पर पानी फेर देता है?
1957: जब कश्मीर पर रूस बना भारत का एकमात्र सहारा
आज कश्मीर का मसला चाहे जितना संवेदनशील क्यों न हो, संयुक्त राष्ट्र के गलियारों में इस पर पहली बड़ी लड़ाई 20 फरवरी 1957 को लड़ी गई थी. ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों ने प्रस्ताव लाकर भारत व पाकिस्तान दोनों को कश्मीर से सेनाएं हटाने और यूएन फोर्स तैनात करने की सलाह दी. चीन भी इसी लाइन पर खड़ा था. ऐसे वक्त में सोवियत संघ ने अपने वीटो का हथियार निकालकर पूरी बहस की दिशा बदल दी. यह वही पल था जिसने दुनिया को बताया कि भारत को कश्मीर पर किसी बाहरी ताकत की शर्तें मंजूर नहीं.
1961: गोवा की आजादी पर पश्चिमी देशों की नाराजगी और रूस की ढाल
जब भारत ने गोवा, दमन और दीव को पुर्तगाल के कब्जे से मुक्त कराया, अमेरिका और ब्रिटेन सहित कई पश्चिमी देशों ने इसे सैन्य आक्रामकता बताते हुए भारत के खिलाफ संयुक्त प्रस्ताव रख दिया. भारत को पीछे धकेलने की इस कोशिश को सोवियत संघ ने दो टूक वीटो कर दिया. संयुक्त राष्ट्र में सोवियत प्रतिनिधि वेलेरियन जोरिन ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि उपनिवेशवाद का बचाव करना आधुनिक दुनिया के मूल विचारों के खिलाफ है. रूस का यह रुख भारत के लिए एक बड़ी रणनीतिक जीत थी.
1962: एक बार फिर उठी कश्मीर की गूंज और रूस फिर बना ढाल
1962 का साल सीमा तनाव का था, युद्ध का और कूटनीतिक दबावों का था. आयरलैंड द्वारा लाया गया प्रस्ताव फिर से कश्मीर पर बातचीत का माहौल बनाने की आड़ में भारत को घेरने की कोशिश था. चीन की भी यही इच्छा थी कि कश्मीर बहस का मुद्दा बना रहे, लेकिन सोवियत संघ ने एक बार फिर वीटो लगाकर साफ कर दिया कि कश्मीर भारत-पाकिस्तान की दो तरफा बातचीत का विषय है, अंतरराष्ट्रीय दबाव का नहीं.
1971: जब बांग्लादेश युद्ध
1971 की जंग शायद भारत के इतिहास का सबसे निर्णायक मोड़ थी. पाकिस्तान के खिलाफ भारत की सैन्य कार्रवाई को रोकने के लिए अमेरिका और चीन ने संयुक्त राष्ट्र में लगातार प्रस्ताव लाना शुरू कर दिया. 4 दिसंबर को आए पहले प्रस्ताव में युद्धविराम की मांग की गई, तब रूस ने वीटो कर दिया. अगले ही दिन 5 दिसंबर को शरणार्थियों की वापसी के बहाने नया प्रस्ताव लाया गया रूस ने फिर वीटो किया. और 14 दिसंबर को सेनाएं पीछे हटाने का तीसरा प्रस्ताव आया और उसे भी सोवियत संघ ने रोक दिया.
इन तीनों वीटो ने भारत को युद्ध जीतने का वह समय दिया जिसने आखिरकार बांग्लादेश के जन्म का रास्ता खोला. यह वही समय था जब अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, जो वक्त पर साथ दे, वही सच्चा दोस्त है.
यह भी पढ़ें: रूस के कौन-कौन से हथियार इस्तेमाल करती है इंडियन आर्मी, देख लीजिए पूरी लिस्ट
Source: IOCL






















