धरती के किस हिस्से में आने वाला है भूकंप? पृथ्वी डोलने से पहले ही बता देगा ISRO; क्या है पूरा मिशन
What Is Mission Nisar: इसरो और नासा मिलकर एक मिशन की तैयारी में हैं. यह भूकंप और सुनामी जैसी आपदाओं के आने के पहले ही लोगों को अलर्ट कर देगा. चलिए जानें कि यह क्या है.

अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा और भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो ने कई मिशन को बेहतरीन और सफल तरीके से अंजाम दिया है. अब नासा और इसरो मिलकर एक ऐसे मिशन पर काम कर रहे हैं जो कि धरती की बदलती हुई स्थिति के बारे में विस्तार से अध्ययन करेगा. यह धरती की निगरानी करके पर्यावरण में होने वाले बदलाव का अध्ययन करेगा और भूकंप व अन्य आपदाओं की जानकारी देगा. दोनों स्पेस एजेंसी का यह अभियान क्या है, इसमें इनकी भूमिका होगी? चलिए इस बारे में विस्तार से जानें.
क्या है इसरो और नासा का मिशन
इस मिशन का नाम है निसार यानि नासा इसरो सिंथेटिक एपर्चर राडार. यह एक लो अर्थ ऑर्बिट वाली सैटेलाइट है, जिसको पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जाना है. यह एक उपग्रह होगा जो कि पूरी धरती का नक्शा तैयार करेगा और हर 12 दिन में धरती पर होने वाले भौगोलिक बदलाव को रिकॉर्ड करेगा. धरती की सतह पर जमी बर्फ से लेकर उसके जमीनी हिस्से, समुद्र के जलस्तर में बदलाव, इकोसिस्टम में बदलाव, भूजल स्तर से जुड़े आंकड़े जमा करने जैसे कई जरूरी काम करेगा. यह एक खास तकनीक एसएआर (सिंथेटिक एपर्चर रडार) का इस्तेमाल करेगा. इसके राडार सिस्टम की मदद से अच्छी क्वालिटी की फोटोज निकाली जा सकती हैं.
क्या काम करेगा निसार
निसार मिशन के लिए नासा और इसरो ने 30 सितंबर 2014 को मिशन समझौता साइन किया था. वैसे तो इसे साल 2024 में ही लॉन्च कर दिया जाना था, लेकिन उपग्रह को बनाने में समस्याएं आ रही हैं, जिस वजह से ऐसा नहीं हो सका. लेकिन इसके सफल लॉन्च हो जाने के बाद भारत और अमेरिका की एजेंसियां यह समझ पाएंगी कि आखिर पर्यावरण कैसे बदल रहा है. समुद्र तटों पर मैंग्रोव पर्यावरण कैसे बदल रहा है. दुनिया में भूकंप और ज्वालामुखी कैसे काम कर रहा है. यह दुनियाभर के मौसम की भविष्यवाणी करेगा और पहले ही बता देगा कि किस एरिया में भूकंप, भूस्खलन या फिर सुनामी आने वाली है.
कैसे काम करेगा निसार
निसार में दो तरीके के बैंड होंगे एल और एस. ये दोनों बैंड धरती के पेड़-पौधों की संख्या पर नजर रखेंगे कि कितने घटे और कितने बढ़े. इसके साथ साथ प्रकाश के ज्यादा होने और कम होने की भी स्टडी करेंगे. इसके एस बैंड ट्रांसमीटर को भारत ने बनाया है और एल ट्रांसपोंडर को नासा ने बनाया है. यह धरती के अलग-अलग हिस्सों की रैपिड सैंपलिंग करते हुए फोटोज और आंकड़े साइंटिस्ट को मुहैया कराता रहेगा. इस मिशन की लाइफ पांच साल बताई जा रही है.
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