Bharat Mata Ki Jai Slogan: किस मुस्लिम ने दिया था भारत माता की जय का नारा? हकीकत जानकर उड़ जाएंगे होश
Bharat Mata Ki Jai Slogan: संसद में राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चर्चा की शुरुआत की. इसी बीच आइए जानते हैं कि भारत माता की जय का नारा किस मुस्लिम ने दिया था.

Bharat Mata Ki Jai Slogan: हाल ही में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम पर चर्चा हुई. इस चर्चा की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी. लेकिन इसी बीच एक सवाल और उठ रहा है कि भारत माता की जय का नारा किस मुस्लिम ने दिया था. आइए जानते हैं क्या है इस सवाल का जवाब.
किसने दिया था भारत माता की जय का नारा
इस जोश भरे नारे को 165 साल से भी पहले एक मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी अजीमुल्ला खान ने दिया था. अजीमुल्ला खान 1857 के विद्रोह के मास्टरमाइंड में से एक थे. ऐसा माना जाता है कि अजीमुल्ला खान स्वतंत्रता के पहले युद्ध के एक बड़े रणनीतिकार थे. उन्होंने सबसे पहले 'भारत माता की जय' वाक्य का इस्तेमाल एक देशभक्ति नारे के तौर पर किया था. 2024 में केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने भी इस बात का जिक्र किया था.
आपको बता दें कि अजीमुल्ला खान बिठूर में नाना साहब पेशवा द्वितीय के दीवान और करीबी सलाहकार थे. इंग्लैंड में एक राजनीतिक मिशन के दौरान यूरोपीय राजनीतिक संस्कृति के संपर्क में आने के बाद राष्ट्रवाद के बारे में उनकी समझ बनी. भारत लौटने पर अजीमुल्ला खान ने एक एकजुट विद्रोह की भावनात्मक और वैचारिक नींव तैयार करनी शुरू की और भारत माता की जय का नारा उसी भावना में से निकला. कुछ इतिहासकारों का ऐसा कहना है कि उनका नारा उर्दू वाक्यांश 'मादरे वतन हिंदुस्तान जिंदाबाद' से प्रेरित था.
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका
1857 के विद्रोह के पीछे अजीमुल्ला खान एक बड़े विचारक और योजनाकारों में से एक थे. उनका योगदान राजनीतिक, रणनीतिक और मनोवैज्ञानिक था. जब अंग्रेजों ने लंदन में पेशवा की पेंशन की अपील खारिज कर दी तो अजीमुल्ला खान साम्राज्य के अन्याय से नाराज होकर भारत लौट आए. उन्होंने पूरे उत्तरी भारत की यात्रा की और राजनीतिक माहौल का जायजा लिया. इसी के साथ उन्होंने गठबंधन बनाए और उपनिवेशवाद विरोधी भावनाओं को फैलाकर विद्रोही प्रयासों को कोऑर्डिनेटर किया.
इसी के साथ उन्होंने हिंदी और उर्दू में प्रकाशित होने वाला एक क्रांतिकारी अखबार पयाम ए आजादी भी शुरू किया. यह अखबार ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक शक्तिशाली प्रोपेगेंडा हथियार बन गया था. तात्या टोपे या फिर रानी लक्ष्मी बाई के विपरीत अजीमुल्ला खान फ्रंटलाइन में नहीं रहते थे. उनकी ताकत प्लानिंग में थी. कानपुर की घेराबंदी के दौरान उनकी एक बड़ी भूमिका थी. उन्होंने ब्रिटिश कमांडर सर ह्यू व्हीलर के साथ आत्मसमर्पण के शर्तों पर बातचीत करने में मदद की और 1857 की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक में विद्रोही नेतृत्व का मार्गदर्शन किया.
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Source: IOCL






















