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Vande Mataram Debate: वंदे मातरम् पर क्या थी जिन्ना की राय, क्या वाकई मुस्लिम विरोधी है यह गीत?

Vande Mataram Debate: संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम पर चर्चा शुरू की. इसी बीच आइए जानते हैं कि वंदे मातरम पर जिन्ना की क्या राय थी.

Vande Mataram Debate: संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर मोहम्मद अली जिन्ना के दबाव में वंदे मातरम पर समझौता करने का आरोप लगाया. इस ऐतिहासिक बहस के बीच एक सवाल फिर से उठ रहा है कि आखिर वंदे मातरम पर जिन्ना का क्या रुख था और क्या यह गाना सच में मुस्लिम विरोधी है? 

वंदे मातरम पर जिन्ना का कड़ा विरोध 

मोहम्मद अली जिन्ना का वंदे मातरम का विरोध 1930 के दशक के आखिर से शुरू हुआ था. 15 अक्टूबर 1937 को लखनऊ में मुस्लिम लीग के बैठक में जिन्ना ने सार्वजनिक रूप से वंदेमातरम की निंदा की थी. मोहम्मद अली जिन्ना ने इसे मूर्ति पूजा वाला, इस्लाम विरोधी और मुस्लिम नागरिकों की भावनाओं के साथ बेमेल बताया. दरअसल वंदे मातरम में भारत माता को दुर्गा और लक्ष्मी जैसी हिंदू देवियों के रूप में बताया गया था और यही विरोध की वजह बनी. 

जिन्ना का विरोध 1938 में कराची में सिंध मुस्लिम लीग सम्मेलन के दौरान भी जारी रहा. उन्होंने वंदे मातरम को मुसलमानों के लिए नफरत का भजन बताया और इसे राष्ट्रवाद के समावेशी दृष्टिकोण के साथ बेमेल बताया. जिन्ना का मानना था कि एक राष्ट्र गीत सभी समुदायों को स्वीकार्य होना चाहिए बिना किसी ऐसी धार्मिक छवि का इस्तेमाल किए जो इस्लामी सिद्धांत के खिलाफ हो.

क्यों हुआ वंदे मातरम पर विवाद 

वंदे मातरम के आसपास ज्यादातर विवाद भारत को हिंदू देवी के रूप में चित्रित करने से पैदा हुआ. इस्लाम में मूर्ति पूजा को नहीं माना जाता. वंदे मातरम के बाद के छंदों में हिंदू देवियों के बारे में जिक्र है जिन्हें कई मुसलमानों ने धार्मिक पूजा के दायरे में आने वाला माना. इसी वजह से यह विवाद शुरू हुआ. जिन्ना और मुस्लिम लीग के विरोध के बावजूद कई स्वतंत्रता सेनानियों ने वंदे मातरम का समर्थन किया. महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ टैगोर और बाकी नेताओं ने इसे धार्मिक प्रार्थना के बजाय एकजुट करने वाले देशभक्ति गीत के रूप में माना. वहीं टैगोर ने कहा कि पहले दो छंद धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाए बिना भारत की भावना को दर्शाते हैं. उन्होंने बाद के विवादित हिस्सों को हटाने की सलाह दी.

संविधान सभा का आखिरी फैसला 

जब राष्ट्रीय प्रतीकों को औपचारिक रूप देने का समय आया तो संविधान सभा ने 24 जनवरी 1950 को गैर धार्मिक और समावेशी स्वर की वजह से जन गण मन को राष्ट्रीय गान घोषित कर दिया. इसी के साथ वंदे मातरम को राष्ट्रीय गीत का मानक दर्जा दिया गया, लेकिन आधिकारिक तौर पर सिर्फ इसके पहले दो छंदों को ही मान्यता दी गई और आगे की पंक्तियों को हटा दिया गया.

ये भी पढ़ें: आजादी की लड़ाई में किसने शुरू किया था 'वंदे मातरम' नाम का अखबार? पीएम मोदी ने संसद में सुनाया किस्सा

स्पर्श गोयल को कंटेंट राइटिंग और स्क्रीनराइटिंग में चार साल का अनुभव है.  इन्होंने अपने करियर की शुरुआत नमस्कार भारत से की थी, जहां पर लिखने की बारीकियां सीखते हुए पत्रकारिता और लेखन की दुनिया में कदम रखा. इसके बाद ये डीएनपी न्यूज नेटवर्क, गाजियाबाद से जुड़े और यहां करीब दो साल तक काम किया.  इस दौरान इन्होंने न्यूज राइटिंग और स्क्रीनराइटिंग दोनों में अपनी पकड़ मजबूत की.

अब स्पर्श एबीपी के साथ अपनी लेखनी को निखार रहे हैं. इनकी खास रुचि जनरल नॉलेज (GK) बीट में है, जहां ये रोज़ नए विषयों पर रिसर्च करके अपने पाठकों को सरल, रोचक और तथ्यपूर्ण ढंग से जानकारी देते हैं.  

लेखन के अलावा स्पर्श को किताबें पढ़ना और सिनेमा देखना बेहद पसंद है.  स्क्रीनराइटिंग के अनुभव की वजह से ये कहानियों को दिलचस्प अंदाज़ में पेश करने में भी माहिर हैं.  खाली समय में वे नए विषयों पर रिसर्च करना और सोशल मीडिया पर अपडेट रहना पसंद करते हैं.

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