यहां पहली बार पीरियड्स आने पर पेड़ों से ब्याही जाती हैं बेटियां! जानिए कहां निभाई जाती है ये परंपरा
कुछ परंपराएं समय के साथ बदल जाती हैं, तो कुछ आज भी वैसी ही निभाई जाती हैं जैसी सदियों पहले निभाई जाती थी. खास बात यह है कि इन परंपराओं में कई बार कुछ अजीब रिवाज भी देखने को मिलते हैं

भारत एक ऐसा देश है जो विविधताओं से भरा हुआ है. यहां हर राज्य, हर गांव में अलग-अलग रीति-रिवाज और परंपराएं देखने को मिलती हैं. कुछ परंपराएं समय के साथ बदल जाती हैं, तो कुछ आज भी वैसी ही निभाई जाती हैं जैसी सदियों पहले निभाई जाती थी. खास बात यह है कि इन परंपराओं में कई बार कुछ ऐसे रिवाज भी देखने को मिलते हैं जो सुनने में थोड़े अजीब लगते हैं, लेकिन उनके पीछे समाज और संस्कृति से जुड़ी मान्यताएं होती हैं. इन्हीं परंपराओं में से एक परंपरा असम के कुछ हिस्सों में आज भी निभाई जाती है, जहां जब किसी लड़की को पहली बार पीरियड्स आते हैं, तो उसकी शादी एक पेड़ से करवा दी जाती है. यह कोई कहानी नहीं बल्कि एक सच है जो पीढ़ियों से चलता आ रहा है.
कहां निभाई जाती है यह परंपरा?
यह अनोखी परंपरा असम राज्य के बोगांइगांव, जिले के सोलमारी गांव में निभाई जाती है. इस परंपरा को स्थानीय भाषा में तोलिनी ब्याह कहा जाता है. यह एक सांस्कृतिक और पारंपरिक रिवाज है, जिसे वहां के लोग आज भी बड़े विश्वास और सम्मान के साथ निभाते हैं. इस शादी को एक रस्म के तौर पर देखा जाता है, जिसमें लड़की को सामाजिक और मानसिक रूप से बदलाव के लिए तैयार किया जाता है.
जब किसी लड़की को पहली बार पीरियड्स आते हैं, तो उस समय को वहां के लोग उसकी लाइफ की नई शुरुआत मानते हैं. यह एक बड़ा बदलाव होता है, और माना जात है कि इसी बदलाव को पवित्रता के रूप में देखने के लिए यह रस्म की जाती है. इस समय लड़की को कुछ दिनों के लिए घर से अलग रखा जाता है. उसे न धूप में निकलने दिया जाता है, न ही परिवार के बाकी सदस्यों के साथ रहने दिया जाता है. यह आमतौर पर 3 से 5 दिन तक चलता है.
किस पेड़ से शादी होती है?
पीरियड्स आने के कुछ दिन बाद लड़की की एक शादी केले के पेड़ से करवाई जाती है. यह शादी एकदम आम शादी की तरह होती है. जिसमें घर को सजाया जाता है, गीत-संगीत होते हैं, रिश्तेदार और गांव वाले जमा होते हैं,लड़की को सजाया जाता है और केले के पेड़ को दूल्हे के रूप में तैयार किया जाता है. यह रस्म सांकेतिक होती है और इसे लड़की की पहली शादी माना जाता है. इस शादी में परिवार वाले पूरी तरह शामिल होते हैं और इसे एक बड़े उत्सव की तरह मनाते हैं.इस दौरान खास बात यह होती है कि लड़की को कुछ खास नियमों का पालन करना होता है, जैसे सिर्फ फल खाना और धूप से दूर रहना. हालांकि केले के पेड़ से हुई यह शादी असली शादी नहीं होती, बल्कि एक परंपरागत रस्म होती है.
इस परंपरा के पीछे का कारण क्या है
इस परंपरा के पीछे एक धारणा यह भी है कि यह शादी लड़की को बुरी नजर से बचाने और उसके फ्यूचर के पति की लंबी उम्र के लिए की जाती है. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इस तरह की रस्में नारी शरीर में होने वाले बदलावों को सम्मान देने का तरीका हैं. हालांकि, आज के दौर में बहुत से लोग इस परंपरा पर सवाल भी उठाते हैं, लेकिन गांव के बहुत से परिवार आज भी इसे अपनी संस्कृति का हिस्सा मानते हुए निभाते हैं.
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