Vande Mataram Debate: जन गण मन से कई साल पहले लिखा गया था वंदे मातरम, फिर क्यों नहीं बन पाया यह नेशनल एंथम?
Vande Mataram Debate: आज लोकसभा में राष्ट्रगीत वंदे मातरम को लेकर 10 घंटे की चर्चा होने वाली है. इसी बीच आइए जानते हैं कि वंदे मातरम नेशनल एंथम क्यों नहीं बन पाया.

Vande Mataram Debate: आज लोकसभा में राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम को लेकर 10 घंटे की बड़ी चर्चा होने जा रही है. इस चर्चा की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे और इसी के साथ कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और सदन में उपनेता गौरव गोगोई जैसे विपक्षी नेता भी इसमें भाग लेंगे. इसी बीच आइए जानते हैं कि जब जन गण मन से कई साल पहले वंदे मातरम लिखा गया था तब भी यह नेशनल एंथम क्यों नहीं बन पाया.
राष्ट्रगान से पुराना एक गीत
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने लगभग 1870 में वंदे मातरम लिखा था. यह स्वतंत्रता संग्राम का एक नारा बन चुका था जिसे ब्रिटिशों ने बहुत ज्यादा क्रांतिकारी होने की वजह से बैन कर दिया था. हालांकि इसकी भावनात्मक और सांस्कृतिक शक्ति के बावजूद भी इस गीत में कुछ ऐसी बातें थी जिन्होंने शुरू से ही विवादों को जन्म दिया. इनमें से एक था भारत को देवी दुर्गा के रूप में चित्रित करना. इस वजह से कुछ समुदायों ने धार्मिक रूप से इसका बहिष्कार किया.
वंदे मातरम राष्ट्रगान क्यों नहीं बन पाया
वंदे मातरम को राष्ट्रगान के रूप में न चुने जाने की मुख्य वजह इसका धार्मिक प्रतीकवाद था. इस गीत के कुछ हिस्से भारत को एक हिंदू देवी के रूप में दर्शाते हैं. कई मुस्लिम और कुछ अन्य समुदायों के लिए यह उनके धार्मिक विश्वास के अनुरूप नहीं था.
1990 के दशक की शुरुआत में ही मुस्लिम नेताओं ने उन छंदों पर आपत्ति जतानी शुरू कर दी थी जो मातृभूमि को एक देवी के बराबर मानते थे. इस गीत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रीय प्रतीक के बजाय एक धार्मिक भजन के रूप में चित्रित किए जाने की वजह से आम सहमति असंभव हो गई. गीत पर ब्रिटिश प्रतिबंध ने इसके क्रांतिकारी महत्व को और भी ज्यादा बढ़ा दिया. लेकिन यह एक और कारण बना कि अब यह गीत राष्ट्रीय प्रतीक के बजाय एक राजनीतिक और धार्मिक गाने के रूप में स्थापित हो गया.
वंदे मातरम के बजाय जन गण मन को क्यों चुना गया
जब संविधान सभा भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों को अंतिम रूप देने के लिए मिली तब समावेशिता पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया गया. रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखा गया जन गण मन भारत की नियति के विधाता यानी एक गैर सांप्रदायिक दिव्य शक्ति के प्रशंसा करता है. जन गण मन किसी भी धर्म के देवी देवता से जुड़ा नहीं था बल्कि पूरे राष्ट्र के उत्साह और विजय का प्रतीक था. इसी वजह से यह सुनिश्चित किया गया कि सभी धर्म के लोग बिना किसी परेशानी के राष्ट्रगान से जुड़ सके.
1950 का आखिरी फैसला
24 जनवरी 1950 को काफी ज्यादा विचार विमर्श के बाद संविधान सभा ने यह घोषणा की कि जन गण मन भारत का राष्ट्रगान होगा और वंदे मातरम भारत का राष्ट्रीय गीत होगा. इससे वंदे मातरम को समान सम्मान और औपचारिक महत्व मिला.
ये भी पढ़ें: जापान में लोग झुक कर क्यों करते हैं अभिवादन, कहां से शुरू हुई यह परंपरा
Source: IOCL






















