भारत से 7 साल पहले PAK ने भेज दिया था रॉकेट फिर कैसे गया पिछड़, जानें अब ISRO के मुकाबले कहां टिकती है उसकी स्पेस एजेंसी
चीनी स्पेस स्टेशन में पाकिस्तान अपना पहला एस्ट्रोनॉट साल 2026 में भेजने की तैयारी कर रहा है. बता दें कि पाक एजेंसी सुपारको की स्थापना भारत से पहले हुई थी लेकिन ये कैसे पीछे रह गई आइये जानते हैं.

पाकिस्तान चीन के सहयोग से 2026 में अपना पहला एसट्रोनॉट भेजेगा. 2026 में पहली बार एक पाकिस्तानी एस्ट्रोनॉट को चीन के तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन पर भेजा जाएगा. बता दें कि पाकिस्तान की स्पेस एजेंसी 'सुपारको' 1961 में बनी थी जबकि भारत की स्पेस एजेंसी 'इसरो' की स्थापना 1969 में हुई थी. मतलब भारत के अंतरिक्ष एजेंसी से करीब आठ साल पहले लेकिन इसने उतनी सफलता हासिल नहीं की जितना इसरो ने की जानें कैसे ये रह गई पीछे.
'सुपारको' का इतिहास
1961 में जब पाकिस्तान ने 'सुपारको' की स्थापना की तो नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक अब्दुस सलाम के नेतृत्व में इसे मजबूत करने की कोशिश की गई. 1962 में सुपारको ने नासा की मदद से रेहबर-1 रॉकेट लॉन्च किया. वह ऐसा करने वाला दुनिया का 10वां देश बना. 'रेहबर-1' एक टू-स्टेज वाला रॉकेट था जिसका उद्देश्य पृथ्वी के ऊपरी वातावरण की स्टडी करना था. उस समय भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम, जो 1969 में इसरो के रूप में औपचारिक हुआ शुरुआती चरण में था. इसके बाद 1990 में पहला सैटेलाइट 'बदर-1' चीन की मदद से लॉन्च हुआ. लेकिन इसके बाद सुपारको का प्रदर्शन बेहद सीमित रहा है. आइये जानते हैं इसके क्या कारण थे.
सुपारको के पीछे रहने का कारण
सबसे बड़ा कारण राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता है. सुपारको की शुरुआत भले ही उत्साहजनक थी, लेकिन 1970 के दशक में पाकिस्तान की सरकार ने अंतरिक्ष अनुसंधान के बजाय परमाणु हथियारों पर ध्यान केंद्रित किया. जिसके कारण सुपारको को निधि और संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ा. सुपारको की विफलता का एक अन्य कारण है शिक्षा और प्रतिभा का अभाव. सुपारको के पास स्वदेशी लॉन्च वाहन की कमी है. वैज्ञानिकों की जगह सैन्य अधिकारियों को एजेंसी का नेतृत्व सौंपा गया, जिससे वैज्ञानिक दिशा कमजोर हुई है. इतना ही नहीं पाकिस्तान ज्यादातर चीन पर निर्भर है. हाल के सालों में तीन सैटेलाइट चीन की मदद से लॉन्च किए. अब 2026 में भी पहला एस्ट्रोनॉट भेजने के लिए पाकिस्तान चीन के स्पेस स्टेशन पर निर्भर है. सुपारको ने अब तक केवल 6 सैटेलाइट्स लॉन्च किए हैं, जिनमें से अधिकांश चीन की मदद से थे. जबकि भारत ने स्वतंत्र रूप से कई मिशन पूरे किए हैं.
इसरो की सफलता
आज इसरो न केवल वैज्ञानिक उपलब्धियों में बल्कि आर्थिक और रणनीतिक दृष्टिकोण से भी पाकिस्तान से कहीं आगे है. इसरो की सफलता भारत के लिए गर्व का विषय है, जबकि सुपारको को पुनर्जनन के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और निवेश की जरूरत है. इसरो ने वैज्ञानिक नेतृत्व और दीर्घकालिक दृष्टिकोण पर जोर दिया. इसरो ने 1975 में अपनी पहली सैटेलाइट आर्यभट्ट लॉन्च की. इतना ही नहीं इसरो ने 34 देशों के लिए 424 सैटेलाइट्स लॉन्च किए हैं. 2023 में चंद्रयान-3 की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग और 2025 में निसार मिशन की सफलता इसरो की तकनीकी श्रेष्ठता को दर्शाती है.
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