अगर चांद पर रहना शुरू कर दे इंसान तो शरीर में क्या-क्या होंगे बदलाव?
Human On Moon: चांद पर रहना इंसान के लिए एक नया युग होगा, लेकिन इसके साथ कई शारीरिक और मानसिक चुनौतियां जुड़ी हैं. चलिए जानें कि इंसान अगर चांद पर रहे तो उसके शरीर में क्या बदलाव होंगे.

इंसान अब अंतरिक्ष में बसने के सपने के तेजी से करीब पहुंचने की कोशिश कर रहा है. नासा और स्पेसएक्स जैसी स्पेस कंपनियां चांद और मंगल पर स्थायी कॉलोनी बनाने की दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं. लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि अगर इंसान वाकई चांद पर रहने लगे तो उसके शरीर पर क्या असर पड़ेगा? पृथ्वी की तुलना में चांद की गुरुत्वाकर्षण शक्ति सिर्फ 1/6 है और वहां का वातावरण बेहद खतरनाक रेडिएशन से भरा हुआ है. ऐसे में इंसानी शरीर को जिन शारीरिक और मानसिक बदलावों से गुजरना पड़ेगा, वो हैरान कर देने वाले हैं.
कम गुरुत्वाकर्षण का असर
पृथ्वी पर हमारा शरीर 1G ग्रैविटी का आदी है, लेकिन चांद पर यह सिर्फ 0.16G है. इस वजह से मांसपेशियां और हड्डियां धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगेंगी. अंतरिक्ष यात्रियों पर हुए प्रयोगों में पाया गया कि हड्डियों की डेंसिटी हर महीने लगभग 1% तक घट सकती है. लंबे समय तक चांद पर रहना ऑस्टियोपोरोसिस जैसी स्थिति पैदा कर सकता है.
दिल और ब्लड सर्कुलेशन में बदलाव
लो-ग्रैविटी की वजह से शरीर में खून का बहाव बदल जाता है. सिर में ब्लड प्रेशर बढ़ता है, जिससे चेहरे पर सूजन, सिरदर्द और आंखों पर दबाव बढ़ सकता है. लंबे समय में यह विजन प्रॉब्लम और हार्ट मसल्स के सिकुड़ने जैसी दिक्कतें पैदा कर सकता है.
रेडिएशन का खतरा
चांद पर पृथ्वी जैसी ओजोन परत या चुंबकीय सुरक्षा नहीं है. वहां कॉस्मिक रेडिएशन और सोलर फ्लेयर्स का सीधा असर शरीर पर पड़ता है. इससे कैंसर, DNA डैमेज और इम्यून सिस्टम कमजोर होने का खतरा रहता है. वैज्ञानिकों की मानें तो अगर कोई व्यक्ति सालभर तक चांद की सतह पर रहे, तो उसे करीब 60 से 70 rems रेडिएशन मिल सकता है, जो पृथ्वी की तुलना में सैकड़ों गुना ज्यादा है.
ब्रेन और मानसिक स्थिति
अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहना मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालता है. अलग माहौल, नींद का असंतुलन और सूर्य की रोशनी की कमी से डिप्रेशन, एंग्जायटी और फोकस की दिक्कतें हो सकती हैं. इन्हीं खतरों से निपटने के लिए वैज्ञानिक लूनर हैबिटैट्स यानी चांद पर बने रहने योग्य बेस तैयार कर रहे हैं, जिनमें आर्टिफिशियल ग्रैविटी, रेडिएशन शील्डिंग और क्लोज्ड इकोसिस्टम जैसी तकनीकें इस्तेमाल की जाएंगी.
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Source: IOCL
























