Gulf Countries Against Israel: नाटो की तरह सभी मुस्लिम देश बना लें अपनी आर्मी, क्या तब कर पाएंगे इजराइल का मुकाबला?
Gulf Countries Against Israel: कतर पर इजराइल के हमले के बाद उठी एकजुटता की लहर ने मुस्लिम देशों को संगठन बनाने के विचार पर मजबूर कर दिया है. ऐसे में क्या मुस्लिम देश इजराइल का मुकाबला कर सकते हैं.

Gulf Countries Against Israel: मध्य पूर्व की हालिया उथल-पुथल ने अरब और इस्लामी देशों को गहराई से झकझोर दिया है. कतर पर हुए इजराइली हवाई हमले के बाद पूरे मुस्लिम जगत में चिंता की लहर दौड़ गई है कि अगला निशाना कौन होगा. लगभग 57 इस्लामी देश इस समय कतर के समर्थन में खड़े हैं, जिनमें पाकिस्तान भी शामिल है. यह हमला केवल एक देश पर नहीं, बल्कि मुस्लिम देशों की सामूहिक सुरक्षा और संप्रभुता पर खतरे के रूप में देखा जा रहा है.
इन हालातों ने मुस्लिम देशों में एकजुटता की नई सोच को जन्म दिया है, जिसमें इजराइल का मुकाबला करने के लिए नाटो की तर्ज पर एक साझा इस्लामी सैन्य गठबंधन बनाने की चर्चा तेज हो गई है. यह विचार भविष्य के भू-राजनीतिक समीकरणों को बड़े पैमाने पर बदल सकता है. चलिए जानें कि अगर सभी मुस्लिम देश अपना गठबंधन बना लें तो क्या इजराइल का मुकाबला कर सकते हैं.
इजराइल की सैन्य ताकत
किसी भी देश के द्वारा इजराइल पर हमला करने से पहले उसकी सैन्य ताकत को जान लेना बहुत जरूरी है. हाल ही में जब ईरान के साथ युद्ध हुआ था तो इजराइल ने ईरान की हालत खराब कर दी थी. इजराइल अपने आकार से कहीं अधिक मजबूत सैन्य क्षमता रखता है. इसकी सेना बेहतरीन वायुसेना, अत्याधुनिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम आयरन डोम, साइबर वारफेयर और अमेरिकी समर्थन जैसी क्षमताओं से लैस है. परमाणु हथियारों की संभावना भी इसकी शक्ति को और बढ़ा देती है. अकेलेपन में भी इजराइल का सैन्य ढांचा किसी बड़े गठबंधन के बराबर माना जाता है.
मुस्लिम देशों की सामूहिक क्षमता
मुस्लिम दुनिया में सऊदी अरब, तुर्किए, ईरान, पाकिस्तान और मिस्र जैसे देश बड़ी सेनाओं और संसाधनों के साथ मौजूद हैं. पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं, तुर्किए नाटो का सदस्य है और सऊदी अरब ऊर्जा संसाधनों में दुनिया का बड़ा केंद्र माना जाता हैय अगर सभी 57 मुस्लिम देश वास्तव में एकजुट होकर सैन्य गठबंधन बनाते हैं, तो जनशक्ति, संसाधन और भौगोलिक विस्तार के लिहाज से यह दुनिया का सबसे बड़ा ब्लॉक बन सकता है.
चुनौतियां और हकीकत
अब इस दौरान क्या चुनौतियां आएंगी इस पर भी बात कर लेते हैं. दरअसल एक साझा इस्लामी आर्मी बनाने का विचार आसान नहीं है. मुस्लिम देशों के बीच आपसी मतभेद, राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और क्षेत्रीय हित अलग-अलग हैं. सऊदी अरब और ईरान के रिश्ते तनावपूर्ण हैं, तुर्किए और अरब देशों के बीच भी अविश्वास की दीवारें हैं. इसके अलावा विभिन्न देशों की सेनाओं की भाषा, ट्रेनिंग, हथियार प्रणालियां और रणनीतिक प्राथमिकताएं अलग-अलग हैं. इस वजह से फिलहाल तो NATO जैसी एकजुटता बनाना बहुत कठिन है.
चूंकि इस तरह का गठबंधन बनाने की मांग आज से 10 साल पहले 2015 में यमन संघर्ष और आईएसआईएस के उदय के बीच भी उठ चुकी है. ऐसे में हो सकता है कि ये देश मिलकर संगठन बना लें.
मुकाबला कर सकते हैं या नहीं?
कतर पर हमला मुस्लिम देशों के लिए चेतावनी है, जिसने उन्हें एकजुटता की दिशा में सोचने पर मजबूर किया है. अगर सभी मुस्लिम देश एक साथ संगठन बना भी लें, तो संख्यात्मक और संसाधन के स्तर पर वे इजराइल का मुकाबला कर सकते हैं. लेकिन व्यवहारिक चुनौतियां, आंतरिक मतभेद और वैश्विक शक्तियों का प्रभाव इस विचार को साकार करना मुश्किल बना देता है. ऐसे में सैन्य विकल्प से ज्यादा कूटनीतिक एकता और रणनीतिक सहयोग ही मुस्लिम देशों के लिए व्यवहारिक रास्ता साबित हो सकता है.
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Source: IOCL






















