OBC List Decision India: कैसे तय होती है ओबीसी लिस्ट, जानें पश्चिम बंगाल में 35 जातियां क्यों हैं निशाने पर
OBC List Decision India: पश्चिम बंगाल में ओबीसी लिस्ट से 35 कम्युनिटी को हटाने की सिफारिश के बाद बवाल खड़ा हो गया है. आइए जानते हैं कि भारत में कैसे तैयार की जाती है ओबीसी लिस्ट.

OBC List Decision India: नेशनल कमिशन फॉर बैकवर्ड क्लासेस के सेंट्रल ओबीसी लिस्ट से 35 कम्युनिटी को हटाने की सिफारिश के बाद पश्चिम बंगाल में विवाद खड़ा हो चुका है. आपको बता दें कि इसमें से ज्यादातर मुस्लिम ग्रुप हैं जिन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ओबीसी लिस्ट में शामिल किया गया था. ऐसे 37 कम्युनिटी के हालात और एलिजिबिलिटी को रिव्यू करने के बाद नेशनल कमिशन फॉर बैकवर्ड क्लासेस इस नतीजे पर पहुंचा है कि उनमें से 35 शामिल होने के लिए जरूरी क्राइटेरिया को पूरा नहीं करते. अब इसके बाद पॉलिटिकल और सोशल सर्कल में गर्मा गर्मी बन चुकी है. इसी बीच आइए जानते हैं कि भारत में ओबीसी लिस्ट कैसे तैयार की जाती है.
ओबीसी की पहचान के पीछे संवैधानिक आधार
ओबीसी की लिस्ट ऐसे ही नहीं बनाई जाती बल्कि यह संवैधानिक प्रोविजन में गहराई से जुड़ी हुई है. आर्टिकल 15 (4), 15 (5) और 16 (4) सरकार को सामाजिक और एजुकेशनल रूप से पिछड़े क्लास की पहचान करने और उन्हें ऊपर उठाने के लिए रिजर्वेशन के साथ पॉलिसी बनाने का अधिकार देते हैं. इन संवैधानिक क्लॉज से यह पक्का होता है कि पीढ़ियों से पिछड़े समुदायों को एजुकेशन और नौकरी में सही मौके मिले.
पिछड़ा वर्ग कैसे तय होता है
यह तय करने के लिए कि कोई समुदाय पिछड़ा है या फिर नहीं समाज में उनकी जगह तय करने वाले कई पहलुओं को समझा जाता है. सामाजिक पिछड़ापन सबसे जरूरी फैक्टर बना हुआ है. इसमें यह भी शामिल है कि क्या कोई समुदाय ऐतिहासिक रूप से जाति के क्रम में निचले स्थान पर रहा है या फिर उसे अभी भी बाहर रखा जाता है या उसे भेदभाव का सामना करना पड़ता है. एजुकेशनल पिछड़ापन एक और कारण है जहां लिटरेसी रेट, स्कूल छोड़ने वालों की संख्या और हायर एजुकेशन में रिप्रेजेंटेशन की जांच की जाती है. लक्ष्य उन समुदाय की पहचान करना है जो सिर्फ उस समय की आर्थिक मुश्किलों का सामना नहीं कर रहे बल्कि एक स्ट्रक्चरल नुकसान का सामना कर रहे हैं.
ओबीसी की पहचान करने में कमीशन की भूमिका
भारत का ओबीसी क्लासिफिकेशन सिस्टम कमीशन बनाते हैं जो लंबे समय तक रिसर्च करते हैं. 1979 में बने मंडल कमीशन ने पिछड़े वर्गों की पहचान के लिए पूरे देश में सर्वे किया और आखिरकार केंद्र की नौकरियों और संस्थान में ओबीसी के लिए 27% रिजर्वेशन लागू किया. एनसीबीसी जो अब आर्टिकल 338बी के तहत एक संवैधानिक संस्था है, ओबीसी स्टेटस चाहने वाले समुदायों के एप्लीकेशन को रिव्यू करता है. इसी के साथ वह राज्यों से सलाह लेता है, स्टडी करता है और रिकमेंड करता है कि किन ग्रुप को जोड़ा या फिर हटाया जाना चाहिए.
कम्युनिटी को लिस्ट में कैसे जोड़ा या फिर हटाया जाता है
ओबीसी को शामिल करने या फिर बाहर करने के पीछे एक टेक्निकल प्रोसेस होता है. किसी भी समुदाय या फिर राज्य सरकार को पहले जरूरी डेटा के साथ एक ऑफिशियल रिक्वेस्ट जमा करनी होती है. इसके बाद एनसीबीसी एक डिटेल जांच करता है. सर्वे टीम फील्ड स्टडी कर सकती है या फिर ऐतिहासिक और स्टैटिस्टिक्ल सबूत इकट्ठा कर सकती है. जैसे ही जांच पूरी हो जाती है कमीशन अपनी रिकमेंडेशन केंद्र सरकार को भेजता है. सरकार के इस रिकमेंडेशन को मानने और पार्लियामेंट में नोटिफिकेशन पब्लिश करने के बाद ही कोई कम्युनिटी ऑफीशियली सेंट्रल ओबीसी लिस्ट में शामिल होती है या फिर बाहर होती है.
केंद्रीय और स्टेट ओबीसी लिस्ट में अंतर क्यों
भारत में दो ओबीसी लिस्ट हैं, एक केंद्र के लिए और एक स्टेटस के लिए. सेंट्रल लिस्ट सेंट्रल गवर्नमेंट की नौकरियों जैसे आईआईटी, आईआईएम, एआईआईएमएस और दूसरे नेशनल इंस्टिट्यूट में रिजर्वेशन पर लागू होती हैं. इसके अलावा स्टेट लिस्ट सिर्फ स्टेट की नौकरियों और इंस्टीट्यूशन पर लागू होती हैं.
ये भी पढ़ें: सबसे कर्जदार देशों में अमेरिका भी शुमार, जानें कौन देता है उसे उधार?
Source: IOCL






















