किसी राज्य का नाम बदलने के लिए कहां से लेनी होती है इजाजत? ये है नियम
How Can Change Name Of State: शहरों के नाम बदलने की बातें तो आपने सुनी होंगी, लेकिन राज्यों के भी नाम बदले जाते हैं. चलिए आपको बताते हैं कि आखिर यह अधिकार किसके पास होता है और कैसे बदलता है नाम.

देश में कई शहरों के नाम बदले जा चुके हैं, खासतौर से उत्तर प्रदेश में तो बहुत सारे शहरों के नाम बदल गए हैं. इलाहाबाद का प्रयागराज हो गया, फैजाबाद का अयोध्या कर दिया गया. वहीं मुगलसराय स्टेशन का नाम बदलकर पंडित दीन दयाल उपाध्याय जंक्शन कर दिया गया, झांसी का नाम बदलकर वीरांगना लक्ष्मीबाई स्टेशन हो गया है. ऐसे ही कुछ राज्यों का भी नाम बदला जैसे कि उत्तरांचल का उत्तराखंड, उड़ीसा का ओडिशा और बॉम्बे का मुंबई, मद्रास का चेन्नई हो चुका है. लेकिन क्या आपको पता है कि राज्य का नाम बदलने का अधिकार किसके पास होता है और यह कैसे होता है.
किसके पास है नाम बदलने का अधिकार
भारत के संविधान के अनुसार देश की संसद को किसी भी राज्य का नाम बदलने का अधिकार है. संविधान के अनुच्छेद 3 की मानें तो संसद के पास किसी भी राज्य का नाम बदलने की ताकत है. वहीं संविधान का अनुच्छेद 3 किसी राज्य के क्षेत्र या फिर सीमाओं के नाम बदलने की प्रक्रिया को निर्धारित करता है.
कैसे बदला जा सकता है नाम
किसी राज्य का नाम बदलने के लिए एक लंबी प्रक्रिया होती है. केंद्र सरकार अगर किसी राज्य के नाम को बदलना चाहती है तो उसे संविधान के नियम का पालन करना होगा. यह प्रक्रिया विधानसभा या फिर संसद से शुरू होती है. अगर किसी राज्य की सरकार अपने राज्य का नाम बदलकर कुछ और करना चाहती है तो इसके लिए उसे सबसे पहला प्रस्ताव विधानसभा में पारित करना पड़ता है. इसके बाद यह प्रस्ताव केंद्र सरकारके पास जाता है. जब केंद्र सरकार इस पर मुहर लगा देती है कि हां राज्य का नाम बदला जा सकता है, तब यह गृह मंत्रालय, भारतीय सर्वेक्षण, इंटेलिजेंस ब्यूरो, रजिस्ट्रार जनरल और डाक विभाग समेत कई एजेंसियों से एनओसी लेनी पड़ती है.
नाम बदलने के लिए कौन देता है इजाजत
जिस राज्य का नाम बदला जाना है, उसके पीछे की ठोस वजह बतानी होती है. नाम बदलने की प्रक्रिया में अंतिम बार बड़ा बदलाव 1953 में हुआ था. अगर केंद्र सरकार किसी राज्य के प्रस्ताव को मंजूरी देती है, तभी प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सकता है. इसके बाद नाम बदलने के लिए बिल को दोनों सदनों में पास कराना पड़ता है. जब बिल संसद में पास हो जाता है, तब इस पर अंतिम मुहर राष्ट्रपति की लगती है. राष्ट्रपति से सहमति मिल जाने के बाद ही राज्य के बदले हुए नाम का नोटिफिकेशन जानी हो सकता है. हालांकि यह जितना पढ़ने में आसान है, असल में उतना है नहीं. इस प्रक्रिया में महीने या साल भी लग जाते हैं.
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