शादी के कितने दिन बाद तलाक ले सकता है कपल? इतने साल तो साथ रहना ही होगा
Divorce Law In India: भारत में तलाक को लेकर कई नियम हैं, जिनका पालन करने के बाद ही एक कपल अलग अलग हो सकता है. तो जानते हैं शादी के कितने दिन बाद कपल अलग हो सकते हैं?

जब शादी के बाद एक कपल के रिलेशन में दिक्कत आती है और अलग होना ही एकमात्र उपाय बचता है तो लोग तलाक का सहारा लेते हैं. कई केस में कपल लंबे वक्त तक साथ में रहते हैं और फिर अलग होना चाहते हैं. जबकि कई केस में शादी के कुछ वक्त बाद ही कपल्स के अलग होने की डिमांड आने लगती है. कई कपल्स तो 2-3 महीने भी साथ नहीं रह पाते हैं, लेकिन शादी के बाद तलाक लेने को लेकर एक समय सीमा है, जिसके बाद ही कोई व्यक्ति तलाक ले सकता है. ऐसे में सवाल है कि आखिर वो समय सीमा क्या है और कितने वक्त बाद कानूनी तलाक के जरिए अलग हो सकते हैं.
दरअसल, कई लोग इस सीमा को एक साल बताते हैं, तो जानते हैं कि आखिर क्या सही में शादी के बाद एक साल तक तलाक नहीं लिया जा सकता है. तो समझते हैं भारत में तलाक को लेकर क्या नियम है?
कब लिया जा सकता है तलाक?
दरअसल, तलाक में दो स्थितियां होती हैं. एक तलाक तो वो होता है, जिसमें पति और पत्नी दोनों तलाक के लिए राजी हो और एक साथ नहीं रहना चाहती हों. इसके अलावा एक स्थिति ये है जिसमें पति-पत्नी में से कोई एक तलाक की अर्जी फाइल करता है. ऐसे में दोनों स्थितियों में तलाक के अलग अलग नियम है.
दिल्ली हाईकोर्ट के वकील प्रेम जोशी इस बारे में कहते हैं कि अगर कंटेस्टेड डाइवोर्स (एक तरफा तलाक) फाइल किया जाता है तो शादी के एक दिन बाद भी ये फाइल कर सकता है. इस स्थिति में कोई भी समय-सीमा नहीं होती है और कपल में से कोई एक व्यक्ति चाहे जब फाइल कर सकता है.
वहीं, अगर म्यूचुअल तलाक फाइल होता है तो इसके लिए समय सीमा है. यानी जब पति और पत्नी दोनों आपसी सहमति से अलग होना चाहते हैं तो इस स्थिति में शादी को एक साल होना जरूरी है. एक साल तक साथ रहने के बाद म्युचुअल डाइवोर्स फाइल किया जा सकता है. जिसके बाद भी कोर्ट की ओर से 6 महीने का वक्त सुलह के लिए दिया जाता है. एक बार 6 महीने के वक्त मिलने के बाद सेक्शन 13बी में फिर से टाइम दिया जाता है.
हालांकि, इस दौरान कुछ परिस्थितियों में बिना टाइम दिए भी तलाक मिल सकता है. ये कोर्ट पर निर्भर करता है और कोर्ट कपल की परिस्थिति देखने के बाद ये डिसाइड कर सकती है कि कपल का कब तलाक के लिए अप्रूवल दिया जाए. ऐसे में कहा जा सकता है कि कुछ स्थितियां अलग होती हैं और कोर्ट उन परिस्थितियों के हासिब से फैसला ले सकती है.
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