Bihar Election Result 2025: किस फोर्स के पास होती है काउंटिंग सेंटर की सिक्योरिटी की जानकारी, कैसे मिलती है जिम्मेदारी?
Bihar Election Result 2025: जहां लोकतंत्र की किस्मत तय होती है, वहां भरोसे की चौकसी सबसे कड़ी होती है. आइए जानें कि मतगणना केंद्रों पर सुरक्षा कैसे तय होती है.

Bihar Election Result 2025: बिहार चुनाव की मतगणना से आज पूरे राज्य का माहौल गर्म है. सुबह से ही स्ट्रॉन्ग रूम खोले जाने लगे, काउंटिंग हॉल में अफसरों की चहल-पहल बढ़ी है और प्रत्याशियों के समर्थक बाहर की सड़कों पर नारे लगाते नजर आ रहे हैं. लेकिन इस पूरी हलचल के बीच एक चीज पर सबकी निगाह टिकी रहती है और वह है मतगणना केंद्र की सुरक्षा. जहां लाखों वोटों की किस्मत सीलबंद होती है, वहां एक सुई तक बिना अनुमति हिल नहीं सकती है, ऐसे में सवाल है कि आखिर इन काउंटिंग सेंटर्स की सुरक्षा की कमान किस फोर्स के पास होती है, और यह जिम्मेदारी तय कैसे होती है?
कैसे होती है मतदान केंद्रों की सुरक्षा?
दरअसल, मतगणना केंद्रों की सुरक्षा तीन परतों में बंटी होती है और हर परत में अलग-अलग एजेंसियों की भूमिका होती है. सबसे बाहरी परत यानी पहली रिंग की सुरक्षा आम तौर पर राज्य पुलिस या जिला पुलिस संभालती है. इनका काम काउंटिंग सेंटर के बाहरी इलाकों में कानून-व्यवस्था बनाए रखना होता है, ताकि कोई भीड़ या प्रदर्शन स्थल के पास न पहुंचे.
दूसरी परत में आते हैं सशस्त्र बल, यानी अर्धसैनिक बल (Central Armed Police Forces) जैसे कि CRPF, CISF, BSF या ITBP की टुकड़ियां. ये फोर्स सीधे चुनाव आयोग के निर्देशों पर काम करती हैं और इन्हें केंद्र सरकार द्वारा तैनात किया जाता है. इनकी जिम्मेदारी स्ट्रॉन्ग रूम और काउंटिंग हॉल के आसपास सुरक्षा घेरा बनाए रखना है. यहीं वोटिंग मशीनें (EVM) और पोस्टल बैलेट रखे होते हैं, जिनकी निगरानी 24 घंटे CCTV से होती है.
तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण परत अंदर की होती है, जहां सिर्फ प्रमाणित चुनाव कर्मी, पर्यवेक्षक और सुरक्षा अधिकारी ही प्रवेश कर सकते हैं. यहां पर सुरक्षा की जिम्मेदारी CISF या CRPF जैसी केंद्रीय फोर्स को दी जाती है. किसी भी व्यक्ति के आने-जाने पर बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन, पास एंट्री और सिग्नेचर मैचिंग जैसी प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं.
कैसे तय होती है जिम्मेदारी?
इन फोर्स की तैनाती की जिम्मेदारी चुनाव आयोग और गृह मंत्रालय (MHA) मिलकर तय करते हैं. पहले चरण में आयोग राज्यों से संवेदनशील जिलों की रिपोर्ट मांगता है, फिर केंद्र सरकार से पैरामिलिट्री फोर्स की संख्या तय होती है. जिस जिले में हिंसा या राजनीतिक तनाव की संभावना अधिक होती है, वहां ज्यादा कंपनियां तैनात की जाती हैं.
48 घंटे पहले से तय होती है सुरक्षा
बिहार जैसे राज्यों में, जहां राजनीतिक प्रतिस्पर्धा हमेशा तीखी रहती है, वहां चुनावी सुरक्षा सबसे अहम होती है. यही वजह है कि काउंटिंग शुरू होने से 48 घंटे पहले ही हर स्ट्रॉन्ग रूम के बाहर तीनों परतों की फोर्स तैनात कर दी जाती है. मतदान से लेकर मतगणना तक, सुरक्षा बलों के कैमरे हर मिनट की रिकॉर्डिंग करते हैं.
सिर्फ यही नहीं, काउंटिंग सेंटर के अंदर मोबाइल, कैमरा या किसी भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस पर रोक होती है. किसी भी फोर्स या अधिकारी को वहां प्रवेश से पहले सर्च और रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है.
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