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भारत में पिछले 10 साल में दोगुना हुई विचाराधीन कैदियों की संख्या, महज 22 फीसदी ही दोषी करार

India Prisons Data: महिला कर्मचारियों को लेकर भी जेल में बेंचमार्क बनाया गया है, जिसमें कुल 33 फीसदी महिला कर्मचारी होना जरूरी है. हालांकि इस बेंचमार्क को कोई भी राज्य पूरा नहीं कर पाया है.

India Prisons Data: चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने हाल ही में कोर्ट में लंबित मामलों के आंकड़े की जानकारी साझा की थी, जिसमें उन्होंने बताया कि देश में वकीलों की कमी के चलते करीब 63 लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं. इस बयान के बाद लोगों ने इस पर चिंता जताई थी और कुछ दिनों तक इसकी खूब चर्चा भी हुई. हालांकि भारत में ये समस्या पिछले कई दशकों से चली आ रही है, इसे लेकर अब एक रिपोर्ट जारी हुई है. जिसमें जेल में सजा काट रहे कैदियों का आंकड़ा दिया गया है. इस चौंकाने वाली रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले 10 सालों में जेल में मौजूद कैदियों की संख्या करीब दोगुनी हो गई. 

इंडिया जस्टिस की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे अलग-अलग राज्यों में लगातार कैदियों की संख्या बढ़ती जा रही है और तमाम जेलें खचाखच भरी हुई हैं. देश की जेलों में महज 22 फीसदी कैदी ही ऐसे हैं जिन्हें दोषी करार दिया गया है, यानी जिनका ट्रायल पूरो हो चुका है. वहीं 77 फीसदी ऐसे कैदी हैं, जिनके केस का ट्रायल चल रहा है या फिर अब तक शुरू भी नहीं हुआ है. रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत की 54 फीसदी जेलें ओवरक्राउडेड हैं.  

इन राज्यों की जेलों में सबसे ज्यादा भीड़ 
जेलों को लेकर जारी हुई इस रिपोर्ट में अलग-अलग राज्यों के आंकड़े भी दिए गए हैं. जिसमें बताया गया है कि कैदियों की सबसे ज्यादा भीड़ कौन से राज्य में है. रिपोर्ट में बताया गया है कि कुल 17 ऐसे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं जहां की जेलों में 100 फीसदी ऑक्यूपेंसी है. इनमें अंडमान निकोबार, आंध्र प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, ओडिशा, पुडुचेरी, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, चंडीगढ़, गोवा, लद्दाख, केरल और लक्षद्वीप शामिल हैं.  सात राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ऐसे हैं जहां पर ऑक्यूपेंसी 100 से 120 परसेंट तक है. इनमें दादर एंड नागर हवेली, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य शामिल हैं.

भारत में पिछले 10 साल में दोगुना हुई विचाराधीन कैदियों की संख्या, महज 22 फीसदी ही दोषी करार

अब कुल 6 ऐसे राज्य भी हैं जहां ऑक्यूपेंसी रेट 120 से लेकर 150 तक पहुंच गया है. यानी जेलों में तय सीमा से 50 फीसदी अधिक कैदी भरे हुए हैं. इन राज्यों में बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, झारखंड और महाराष्ट्र हैं. इसके अलावा 6 ऐसे राज्य/केंद्र शासित प्रदेश हैं जहां पर ऑक्यूपेंसी रेट 150 से 185 परसेंट तक हो चुका है. इनमें राजधानी दिल्ली, मध्य प्रदेश, मेघालय, सिक्किम, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्य शामिल हैं. यानी इन राज्यों की जेलों में लगभग दोगुने कैदी रखे गए हैं. 

पिछले 10 साल में कैसे दोगुने हुए कैदी
जेलों को लेकर जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे पिछले 10 साल में कैदियों की संख्या में काफी बड़ा इजाफा हुआ है. जहां साल 2010 में अंडरट्रायल मामलों की संख्या 2.4 लाख थी, वहीं 2021 में ये बढ़कर 4.3 लाख हो गई. जिसका मतलब 10 साल में कुल 78 फीसदी का इजाफा हुआ है. नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में अंडरट्रायल कैदियों की संख्या में काफी ज्यादा इजाफा देखने को मिला है. 


भारत में पिछले 10 साल में दोगुना हुई विचाराधीन कैदियों की संख्या, महज 22 फीसदी ही दोषी करार

कितने साल से जेल में हैं अंडरट्रायल कैदी?
अब रिपोर्ट में ये भी आंकड़ा दिया गया है कि अंडरट्रायल कैदी कितने साल से जेल में हैं. करीब 88,725 कैदियों ने 1 से 3 साल जेल में बिताए. जो कुल 20.8 फीसदी हैं. इसमें यूपी सबसे आगे है, जहां 21,244 कैदियों को एक से तीन साल तक जेल में रखा गया है. वहीं इसके बाद बिहार (8,365), महाराष्ट्र (7,599) और मध्य प्रदेश (6,778) शामिल हैं. 

इसके अलावा 2021 के अंत तक के आंकड़ों के मुताबिक कुल 11,490 कैदियों को पांच साल से ज्यादा वक्त तक जेल में रखा गया. इस आंकड़े में काफी ज्यादा इजाफा देखने को मिला है. क्योंकि साल 2020 में कुल 7,128 और इससे एक साल पहले 2019 में 5,011 कैदियों को 5 साल से अधिक वक्त तक जेल में रखा गया. ये सभी कैदी अंडरट्रायल थे. कुल रिहा हुए अंडरट्रायल कैदियों में से 96.7 फीसदी ऐसे कैदी भी थे जिन्हें एक साल के भीतर ही जमानत मिल गई या उन्हें बरी कर दिया गया.

जेल कर्मचारियों की संख्या में भारी कमी
अब तक हमने आपको बताया कि कैसे जेलों में कैदियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और एक जेल में तय संख्या से काफी अधिक कैदियों को रखा जा रहा है. इसके विपरीत जेल में कर्मचारियों की संख्या में इजाफा नहीं हो रहा है. यानी कर्मचारियों की कमी लगातार बढ़ रही है. हर जेल में 200 कैदियों पर एक जेल अधिकारी होना जरूरी है, लेकिन चंडीगढ़ और तमिलनाडु के अलावा कोई भी राज्य इस मापदंड को पूरा नहीं करता है. 

महिला कर्मचारियों की भारी कमी
महिला कर्मचारियों को लेकर भी जेल में एक बेंचमार्क बनाया गया है, जिसमें कहा गया है कि कुल 33 फीसदी महिला कर्मचारी होना जरूरी है. हालांकि इस बेंचमार्क को कोई भी राज्य पूरा नहीं कर पाया है. राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं की संख्या कुल 13.7 फीसदी है. कर्नाटक अकेला ऐसा राज्य है जहां पर महिलाओं की संख्या में काफी इजाफा हुआ था. यहां महिला कर्मचारियों की कुल संख्या 32 फीसदी है.

ठीक यही हाल महिला मेडिकल ऑफिसर की नियुक्ति का भी है. हर जेल में महिला कैदियों के लिए एक महिला मेडिकल ऑफिसर की नियुक्ति करने का प्रावधान है, लेकिन कहीं भी ऐसा नहीं होता है. देश के 17 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ऐसे हैं जहां कोई भी महिला मेडिकल ऑफिसर नहीं है. उत्तर प्रदेश जहां कि सबसे ज्यादा महिला कैदी (4,995) हैं, वहां पूरे राज्य में महज 3 महिला मेडिकल ऑफिसर तैनात हैं. 

जेल को लेकर सीजेआई ने की थी टिप्पणी
बता दें कि देश में लंबित मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भी चिंता जाहिर कर चुके हैं. कुछ महीने पहले एक इवेंट के दौरान उन्होंने कहा था कि वकीलों की कमी के चलते देशभर में 63 लाख से ज्यादा केस लंबित हैं, वहीं 14 लाख ऐसे मामले हैं जो दस्तावेजों या फिर रिकॉर्ड के इंतजार में लंबित पड़े हैं. इस दौरान सीजेआई ने कहा था कि लोगों को डिस्ट्रिक्ट कोर्ट्स को अधीनस्त न्यायपालिका के तौर पर मानने की मानसिकता से छुटकारा पाना चाहिए. इस दौरान सीजेआई चंद्रचूड़ ने इस बात पर भी जोर दिया था कि जेल की बजाय जमानत न्याय प्रणाली के सबसे मौलिक नियमों में से एक है. सीजेआई ने तब अंडरट्रायल कैदियों की बढ़ती संख्या पर भी चिंता जताई थी. 

ये भी पढ़ें - आखिर कैसे काम करती है CBI, कब हुई थी शुरुआत और क्यों जांच एजेंसी पर लगातार उठते रहे सवाल?

मुकेश बौड़ाई पिछले 7 साल से पत्रकारिता में काम कर रहे हैं. जिसमें रिपोर्टिंग और डेस्क वर्क शामिल है. नवभारत टाइम्स, एनडीटीवी, दैनिक भास्कर और द क्विंट जैसे संस्थानों में काम कर चुके हैं. फिलहाल एबीपी न्यूज़ वेबसाइट में बतौर चीफ कॉपी एडिटर काम कर रहे हैं.
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