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'ये इंडिया का क्रिकेट है बीडू'

ये इंडिया का क्रिकेट है बीडू,
जीते तो ताली बीडू-हारे तो गाली बीडू,
विकेट मिले तो ताली बीडू
बॉलर पिटे तो गाली बीडू.
लपकेगा कैच तो झक्कास,
टपकेगा कैच तो सत्यानाश
ये इंडिया का क्रिकेट है बीडू
जीते तो ठाठ-हारे तो वाट है.
कई साल पहले ये विज्ञापन आया था. नागपुर में इंग्लैंड के खिलाफ दूसरे टी-20 मैच के नतीजे की कहानी इसी विज्ञापन पर आधारित है. जिस आखिरी ओवर ने जसप्रीत बुमराह को ‘हीरो’ बनाया वही आखिरी ओवर उन्हें ‘जीरो’ बना सकता था. उसी एक ओवर की बदौलत जसप्रीत बुमराह को मैन ऑफ द मैच चुना गया. केएल राहुल के 71 रन और आशीष नेहरा के तीन विकेट के प्रदर्शन पर वो करिश्माई ओवर भारी पड़ गया. जो स्वाभाविक भी है क्योंकि उस ओवर ने ही भारत को मैच जिताया. आइए ये समझते हैं कि 23 साल के बुमराह ने खुद को हीरो बनाने के लिए कैसे खुद पर संयम रखा, कैसे अपनी गेंदबाजी में ‘वेरिएशन’ किए और कैसे पलटी बाजी.
ओवर की 6 गेंद का ब्यौरा समझिए
पहली गेंद- बुमराह को पहली ही गेंद पर विकेट मिल गया. रूट ‘एक्रॉल द लाइन’ खेलने की गलती कर गए और नतीजा मैच में भारत की वापसी हुई.
दूसरी गेंद-बुमराह ने बड़ी चतुराई दिखाते हुए गेंद की रफ्तार में वेरिएशन किया. उन्होंने इस बार ‘स्लोवर’ डाली. उन्हें अंदाजा था कि बड़े शॉट्स को खेलने की तैयारी कर चुके बल्लेबाज को स्लोवर से परेशान किया जा सकता है.
तीसरी गेंद-इस बार बुमराह ने फुल लेंथ की ‘कटर’ फेंकी. ये पहली दोनों गेंदों से बिल्कुल अलग गेंद थी. नतीजा बटलर एक भी रन नहीं बना पाए.
चौथी गेंद- चौथी गेंद पर बुमराह ने क्रीज का शानदार इस्तेमाल किया जिसका नतीजा भी शानदार रहा. बटलर आउट हो गए और मैच में भारत की पकड़ और मजबूत हो गई.
पांचवीं गेंद- पांचवी गेंद अपेक्षाकृत नीची रह गई और बल्ले का आखिरी किनारा लगने से बल्लेबाज को एक रन लेने का मौका मिल गया. अब आखिरी गेंद पर इंग्लैंड को जीत के लिए 6 रन चाहिए थे. अब भी मैच इंग्लैंड के पलड़े में जा सकता था. खास तौर पर टी-20 का फ़ॉर्मेट ऐसे तमाम मैचों के नतीजों से भरा हुआ है जहां आखिरी गेंद पर छक्का मारकर जीत मिली हो.
छठी गेंद- ओवर की आखिरी और हीरो-जीरो बनाने वाली ये गेंद विकेट के बाहर फेंकी गई. मोईन अली ने भरसक कोशिश की कि वो गेंद को हवा में खेल सकें लेकिन वो चूक गए और एक ओवर लंबे समय के लिए जसप्रीत बुमराह को हीरो बना गया.
चेतन शर्मा से पूछिए आखिरी गेंद का दर्द
आखिरी गेंद पर चौका या छक्का मारकर दर्जनों मैच जीते गए हैं. भारत ने भी जीते हैं लेकिन हीरो या जीरो बनने का फर्क समझना है तो चेतन शर्मा की वो आखिरी गेंद याद कीजिए. चेतन शर्मा की उम्र 21-22 साल थी वो जसप्रीत बुमराह से भी छोटे थे. 1986 में एशिया कप के फाइनल में पाकिस्तान को जीत के लिए आखिरी गेंद पर चार रनों की जरूरत थी और जावेद मियांदाद ने छक्का लगाकर पाकिस्तान को जीता दिया था. उन 6 रनों की टीस चेतन शर्मा के पूरे करियर में रही. वो ‘फुलटॉस’ गेंद हमेशा के लिए चेतन शर्मा को जीरो बना गई. ये अलग बात है कि अगले ही साल विश्व कप में न्यूजीलैंड के खिलाफ चेतन शर्मा ने हैट्रिक ली. वो विश्व कप की पहली हैट्रिक थी. बावजूद इसके चेतन शर्मा की पहचान हमेशा उस छक्के से ही हुई. यही फर्क है मुश्किल हालात में गेंदबाजी के दौरान खुद को काबू में रखने का जो काम नागपुर में जसप्रीत बुमरा ने किया.
कितना बदल गया है भारत का क्रिकेट
कल मैच के दौरान इंग्लैंड के पूर्व कप्तान और जबरदस्त खिलाड़ी रहे नासिर हुसैन ने बड़ी पते की बात कही. उन्होंने कहाकि पिछले कुछ साल में भारतीय टीम की बल्लेबाजी के स्तर के बदलने के पीछे की सबसे बड़ी वजह रही कि उन्होंने ‘बेसिक्स’ पर काम किया. उन्होंने उस ‘प्रॉसेस’ को अपनाया जिसमें फॉर्मेट कोई भी हो ‘बेसिक’ ठीक होना चाहिए. बल्लेबाजों ने क्रिकेटिंग शॉट्स लगाए. दूसरी तरफ इंग्लैंड की टीम अपने खेल में जरूरत से ज्यादा ‘इंप्रोवाइजेशन’ करने में लगी रही. खेल के तरीके में जरूरत से ज्यादा बदलाव या एक्सपेरीमेंट का फर्क दोनों टीमों के प्रदर्शन में साफ दिखाई दिया. इस ‘प्रॉसेस’ का असर ऐसे भी समझा जा सकता है कि अब भारतीय टीम एकतरफा मुकाबले कम ही हारती है. बिल्कुल ना के बराबर. हर खिलाड़ी को टीम में अपने रोल का पता है. उसे इस बात का पता है कि उसे टीम के लिए क्या करना है. वो इस बात की परवाह नहीं करता कि उसके पहले वाले बल्लेबाज क्या करके गए हैं. यही वजह है कि 3-4 विकेट गिरने के बाद भी इस सीरीज में भारतीय बल्लेबाजों ने शानदार खेल दिखाया.
खैर, सीरीज अब रोमांचक हो गई है. तीसरे मैच में फिर रोमांच चरम पर होगा. लेकिन भूलिएगा नहीं वहां भी नियम वही लागू होगा- ये इंडिया का क्रिकेट है बीडू...जीते तो ताली बीडू-हारे तो गाली बीडू.
चेतन शर्मा से पूछिए आखिरी गेंद का दर्द
आखिरी गेंद पर चौका या छक्का मारकर दर्जनों मैच जीते गए हैं. भारत ने भी जीते हैं लेकिन हीरो या जीरो बनने का फर्क समझना है तो चेतन शर्मा की वो आखिरी गेंद याद कीजिए. चेतन शर्मा की उम्र 21-22 साल थी वो जसप्रीत बुमराह से भी छोटे थे. 1986 में एशिया कप के फाइनल में पाकिस्तान को जीत के लिए आखिरी गेंद पर चार रनों की जरूरत थी और जावेद मियांदाद ने छक्का लगाकर पाकिस्तान को जीता दिया था. उन 6 रनों की टीस चेतन शर्मा के पूरे करियर में रही. वो ‘फुलटॉस’ गेंद हमेशा के लिए चेतन शर्मा को जीरो बना गई. ये अलग बात है कि अगले ही साल विश्व कप में न्यूजीलैंड के खिलाफ चेतन शर्मा ने हैट्रिक ली. वो विश्व कप की पहली हैट्रिक थी. बावजूद इसके चेतन शर्मा की पहचान हमेशा उस छक्के से ही हुई. यही फर्क है मुश्किल हालात में गेंदबाजी के दौरान खुद को काबू में रखने का जो काम नागपुर में जसप्रीत बुमरा ने किया.
कितना बदल गया है भारत का क्रिकेट
कल मैच के दौरान इंग्लैंड के पूर्व कप्तान और जबरदस्त खिलाड़ी रहे नासिर हुसैन ने बड़ी पते की बात कही. उन्होंने कहाकि पिछले कुछ साल में भारतीय टीम की बल्लेबाजी के स्तर के बदलने के पीछे की सबसे बड़ी वजह रही कि उन्होंने ‘बेसिक्स’ पर काम किया. उन्होंने उस ‘प्रॉसेस’ को अपनाया जिसमें फॉर्मेट कोई भी हो ‘बेसिक’ ठीक होना चाहिए. बल्लेबाजों ने क्रिकेटिंग शॉट्स लगाए. दूसरी तरफ इंग्लैंड की टीम अपने खेल में जरूरत से ज्यादा ‘इंप्रोवाइजेशन’ करने में लगी रही. खेल के तरीके में जरूरत से ज्यादा बदलाव या एक्सपेरीमेंट का फर्क दोनों टीमों के प्रदर्शन में साफ दिखाई दिया. इस ‘प्रॉसेस’ का असर ऐसे भी समझा जा सकता है कि अब भारतीय टीम एकतरफा मुकाबले कम ही हारती है. बिल्कुल ना के बराबर. हर खिलाड़ी को टीम में अपने रोल का पता है. उसे इस बात का पता है कि उसे टीम के लिए क्या करना है. वो इस बात की परवाह नहीं करता कि उसके पहले वाले बल्लेबाज क्या करके गए हैं. यही वजह है कि 3-4 विकेट गिरने के बाद भी इस सीरीज में भारतीय बल्लेबाजों ने शानदार खेल दिखाया.
खैर, सीरीज अब रोमांचक हो गई है. तीसरे मैच में फिर रोमांच चरम पर होगा. लेकिन भूलिएगा नहीं वहां भी नियम वही लागू होगा- ये इंडिया का क्रिकेट है बीडू...जीते तो ताली बीडू-हारे तो गाली बीडू.
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