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बिलकिस बानो केस: आज़ादी का अमृत महोत्सव और सामूहिक बलात्कार के दोषी भी हो गये आज़ाद !

कितना अजीब संयोग है कि 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को ये संदेश देते हैं कि समाज में महिलाओं का अपमान जरा भी बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए और कुछ घंटों बाद ही गुजरात सरकार एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार करने वाले 11 दोषियों की बाकी की सजा माफ करते हुए उन्हें रिहा कर देती है.

अब आप इसे देश के कानून की खामी कहें या सियासत का कोई दूसरा रंग लेकिन हकीकत ये है कि इस मिसाल से हमारे देश में बलात्कार जैसा घृणित व संगीन जुर्म करने वालों में कभी कोई खौफ़ पैदा हो ही नहीं सकता. हालांकि हमारे देश के कानून में उम्र कैद की सजा पाये दोषियों को 14 साल की सजा काटने के बाद माफ़ी देने का अधिकार राज्यों को दिया गया है. लेकिन सवाल ये है कि जिस दिन देश के प्रधानमंत्री नारी शक्ति के सम्मान के लिए समूचे देश को नसीहत दे रहे थे, उसी दिन इन 11 दोषियों को गुजरात की जेल से रिहा करना क्या ज़रूरी था या फिर इसके जरिये कोई और संदेश देने की भी कोशिश की गई है?

सवाल ये नहीं है कि सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई बिलकिस बानो एक मुस्लिम महिला थी लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आजादी के अमृत महोत्सव पर केंद्र सरकार ने जो नीति बनाई थी, उसकी धज्जियां उड़ाने की हिम्मत एक राज्य सरकार भला कैसे कर सकती है? बता दें कि अभी दो महीने पहले ही केंद्र सरकार ने सजायाफ्ता कैदियों की रिहाई के लिए एक नीति बनाई थी, जिसमें सभी राज्यों को दिशा-निर्देश दिए गए थे. इसमें यह स्पष्ट किया गया था कि बलात्कार के दोषियों को इस नीति के तहत रिहाई नहीं मिलेगी. लेकिन बिलकिस बानो के मामले में ऐसा नहीं हुआ और सभी लोगों को रिहा कर दिया गया.

आखिर ऐसा क्यों हुआ? इसका जवाब देने के लिये गुजरात सरकार के पास अपनी क्षमा नीति की दलील है लेकिन केंद्र के दिशा-निर्देश को ठुकराने की ताकत उसने किसे दी, क्या वो इसका जवाब देश को दे पायेगी? शायद बिल्कुल भी नहीं.

गौरतलब है कि तीन मार्च 2002 को गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के दौरान दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका के रंधिकपुर गांव में भीड़ ने बिलकिस बानो के परिवार पर हमला किया था. अभियोजन के अनुसार, ‘‘बिलकिस उस समय पांच महीने की गर्भवती थीं. उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था. इतना ही नहीं, उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी.’’ अदालत को बताया गया था कि छह अन्य सदस्य मौके से फरार हो गये थे. इस मामले के आरोपियों को 2004 में गिरफ्तार किया गया था.

बाद में, मुंबई सीबीआई की एक विशेष अदालत ने 11 दोषियों को बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार करने और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या करने के जुर्म में 21 जनवरी 2008 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. उसके बाद बंबई हाइकोर्ट ने भी उनकी इस सज़ा को बरकरार रखा था. इन 11 दोषियों की रिहाई पर मानवाधिकार मामलों के अधिवक्ता शमशाद पठान कहते हैं कि बिलकिस बानो मामले से कम जघन्य और हल्के अपराध करने के जुर्म में बड़ी संख्या में लोग आज भी जेलों में बंद हैं और उन्हें कोई माफी नहीं मिल रही है. पठान ने कहा कि सरकार जब इस तरह के फैसले लेती है, तो सरकारी तंत्र पर से लोगों का भरोसा उठने लगता है.

बताया गया है कि इन दोषियों ने 15 साल से अधिक कैद की सजा काट ली थी, जिसके बाद उनमें से एक दोषी ने समय से पहले रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. पंचमहल के आयुक्त सुजल मायत्रा ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से उसकी सजा माफ करने के अनुरोध पर गौर करने का निर्देश दिया, जिसके बाद सरकार ने एक समिति का गठन किया था. मायत्रा ही उस समिति के प्रमुख थे. मायत्रा ने कहा, ‘‘कुछ माह पहले गठित समिति ने सर्वसम्मति से मामले के सभी 11 दोषियों को क्षमा करने के पक्ष में निर्णय किया. राज्य सरकार को सिफारिश भेजी गई थी जिसके बाद हमें उनकी रिहाई के आदेश मिले.’’

इन दोषियों की रिहाई आखिर क्यों हुई, तो इस सवाल के जवाब में एक कानूनी पेंच फंसा हुआ है, जिसका फायदा इन्हें मिला. वो ये है कि संविधान का आर्टिकल 161 कहता है कि जिस किसी व्यक्ति को किसी मामले में दोषी पाया गया है, वहीं राज्यों की रिमिजन पॉलिसी के तहत सजा माफी के लिए आवेदन कर सकता है. जिन व्यक्तियों पर मुकदमा चल रहा है, उन पर आर्टिकल 161 लागू नहीं होता. लिहाज़ा, इन दोषियों को गुजरात सरकार की रिमिजन पॉलिसी के तहत रिहा किया गया है.

रिमिजन पॉलिसी कहती है कि सीआरपीसी की धारा 432 के तहत दोषी को सजा में छूट दी जा सकती है. सजा में छूट के लिए दोषी को खुद ही आवेदन करना होता है. यानी, राज्य सरकार अपने आप किसी दोषी को कोई छूट या सजा माफी नहीं दे सकती है. अब सवाल उठता है कि देश के रहनुमा नारी शक्ति के सम्मान व उनकी रक्षा के लिए अगर वाकई इतने ही ज्यादा ही फिक्रमंद हैं, तो वे इस कानून में बदलाव करने के लिए संसद में कोई संशोधन बिल लाने से आखिर परहेज़ क्यों कर रहे हैं?

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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