Crop Seeds: इस यूनिवर्सिटी ने फसलों की 3 नई प्रजातियां खोजी, पोषक तत्वों से भरपूर, मिलेगी बंपर पैदावार
वसंतराव नाईक मराठवाड़ा एग्रीकल्चर यूनिविर्सटी ने फसलों की तीन नई प्रजातियां विकसित की हैं. अरहर, सोयाबीन और कुसुम की नई प्रजातियां खोज से देश को मिली हैं. केंद्र सरकार से भी बुवाई की अनुमति मिल गई है.
Crop Cultivation: रबी सीजन चल रहा है. किसान खेतों में रबी पफसलों को बो रहे हैं. किसान बाजार और सरकारी केंद्रों से बुवाई के लिए बीज खरीदकर ला रहे हैं. साइंटिस्ट भी लगातार रिसर्च कर नई नई प्रजाति खोजने की कोशिश कर रहे हैं. अब देश की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने विभिन्न पफसलों की 3 नई प्रजाति खोजी हैं. साइंटिस्ट के अनुसार, नई प्रजातियां पोषक तत्वों से भरपूर होंगी. किसानों को बंपर पैदावार मिलने से उनकी इनकम भी बढ़ जाएगी.
यूनिवर्सिटी ने ये 3 नई प्रजाति की विकसित
महाराष्ट्र के औरंगाबाद स्थित वसंतराव नाइक मराठवाड़ा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने अलग अलग फसलों की तीन नई प्रजातियां विकसित की हैं. इन तीनों प्रजातियों को मिनिस्ट्री ऑफ एग्रीकल्चर एंड फार्मर्स वेलपफेयर से देश के विभिन्न हिस्सों में बुवाई की अनुमति भी मिल गई है.
ये हैं प्रजाति, यहां हो सकती है बुवाई
यूनिवर्सिटी की ओर से जो प्रजातियां विकसित की गई हैं. उन्हें देश के अलग अलग हिस्सों में बोया जा सकता है. यूनिवर्सिटी के पदाधिकारियों के अनुसार, अरहर की दाल की प्रजाति BDN-2013-2 रेनुका को महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बोया जा सकेगा. इस फसल को इन प्रदेशों के लिए उपयुक्त माना गया है. वहीं सोयाबीन की प्रजाति MAUS-725, कुसुम की प्रजाति प्रभानी स्वर्ण PBNS-154 को भी बुवाई के लिए मंत्रालय से क्लीयरेंस मिल गई है. इसे महाराष्ट्र में ही बुवाई की अनुमति मिली है.
नई प्रजातियों की ये हैं खूबियां
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, रिसर्च यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर डीपी वास्कर ने बताया कि अरहर की नई प्रजाति को डेवलप करने में BCMR-736 और अफ्रीकन मूल की प्रजाति ICP-114888 को क्रास कर पैदा की गई है. इसके फूलों का रंग हरा, बीजों का रंग लाल होगा. यह प्रजाति इस तरह से डेवलप की गई है कि इसपर इस पर कई कीट और बीमारियां आसानी से हमला नहीं कर पाएंगी. इस फसल के बोने से लेकर उत्पादन होने तक 165 से 170 दिन का समय लगेगा. फसल का ट्रायल किया गया तो इससे 18 से 21 क्विंटल तक पैदावार हुई. सोयाबीन की प्रजाति MAUS-725 90 से 95 दिनों में पककर तैयार हो जाएगी.
यह प्रजाति भी कीट और बीमारियों से खुद ही बचने में सक्षम है. इसका एक हेक्टेयर में 25 से 31.50 हेक्टेयर प्रति क्विंटल उत्पादन हो सकेगा. कुसुम की नई प्रजाति PBNS-154 में 30.9 प्रतिशत तक अधिक तेल मिलेगा. यह फसल बारिश सही मिलने पर 124 से 126 दिन में पककर तैयार हो जाती है. यदि सिंचाई से फसल उत्पादन हो रहा है तो 134 से 136 दिनों में पककर तैयार हो जाएगी. बारिश पर फसल की निर्भरता होने पर 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का प्रॉडक्शन होता है. वहीं, सिंचाई करने पर यह उत्पादन बढ़कर 15 से 17 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुंच जाता है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.