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Papaya Farming: ये बीमारी लगने पर टूटकर गिर जाता है पपीते का पेड़, लक्षण दिखने पर शुरू कर दें बचाव के उपाय
Papaya Tee Management: पपीते की खेती के दौरान ऐसे लक्षण दिखने तुरंत विशेषज्ञों से संपर्क करना चाहिये, ताकि उनकी सलाह के अनुसार ही बागों में छिड़काव और रोकथाम के उपाय किये जा सके.
![Papaya Farming: ये बीमारी लगने पर टूटकर गिर जाता है पपीते का पेड़, लक्षण दिखने पर शुरू कर दें बचाव के उपाय Treatment of Papaya tree breaks and falls from upper roots due to stem rot or Collar rot disease Papaya Farming: ये बीमारी लगने पर टूटकर गिर जाता है पपीते का पेड़, लक्षण दिखने पर शुरू कर दें बचाव के उपाय](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2022/08/26/24f9427cb0c3b3e36c625f4837b4d1bb1661506921620455_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
Collar Rot Disease In Papaya Tree: भारत के ज्यादातर इलाकों पपीते की खेती (Papaya Farming) बड़े पैमाने पर की जा रही है. खासकर तमिलनाडु, बिहार, असम, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू एवं कश्मीर, उत्तरांचल और मिज़ोरम में पपीता की उन्नत किस्में (Top Papaya Varieties) उगाकर किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.
मानसून के दिनों में इस फलदार पेड़ को ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है, क्योंकि तना गलन रोग (Stem Rot Disease)कारण पेड़ कमजोर होकर गिर जाता है. ये बीमारी ज्यादातर बारिश (Collar Rot Disease in Rain) के दौरान देखने को मिलता है. ऐसी स्थिति में जड़ों के ऊपरी हिस्सों की लगातार निगरानी और लक्षण दिखने पर छिड़काव करने की सलाह दी जाती है.
कैसे फैलता है तना गलन रोग
मानसून के दौरान बैक्टीरियल गतिविधियां बढ़ने पर पपीपे के पेड़ पर तना गलन रोग लग जाता है, जिसके कारण जड़ के ऊपरी हिस्से में तने की छाल काले रंग के स्पंजी धब्बे बनने लगते हैं. धीरे-धीरे ये धब्बे बढ़ जाते हैं और मिट्टी के ठीक ऊपर तने के कॉलर भाग को खोखला सा कर देते हैं.
बता दें कि ये रोग तेजी से बढ़ता है और जड़ों के ऊपर काले रंग का मधुमक्खी का छत्ता बना देता है. इससे पपीते का उत्पादन तो प्रभावित होता ही है, कई मामलों में पेड़ फल देने लायक भी नहीं रहता और जमीन पर गिर जाता है.
इस तरह करें समाधान
तना गलन रोग यानी कॉलर रॉट डिजीज दिखने पर रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़कर जड़ समेत जला देना चाहिये, ताकि ये बीमारी दूसरे पौधों तक ना पहुंचे.
- हमेशा पपीता या अन्य फलों के बागों में जल निकासी की व्यवस्था करनी चाहिये, क्योंकि ये बीमारी पानी के जमाव के कारण पैदा होती है.
- पपीते के पेड़ पर फल और पत्तों की निगरानी के साथ-साथ जड़ों की जांच-पड़ताल भी करते रहें, जिससे समय रहते चोट या जख्म का उपचार किया जा सके.
- यदि खेत में पहले भी जल गलन रोग या दूसरे रोग का प्रकोप हो चुका हो, तब दोबारा पपीता की बागवानी नहीं करनी चाहिये.
इन दवाओं का छिड़काव करें
पपीता की खेती (Papaya Cultivation) के दौरान ऐसे लक्षण दिखने तुरंत विशेषज्ञों से संपर्क करना चाहिये, ताकि उनकी सलाह के अनुसार ही बागों में छिड़काव और रोकथाम के उपाय किये जा सके.
- यदि मिट्टी के आस-पास तने पर चोट या जख्म के निशान दिखें तो प्रभावित स्थान पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड कवकनाशी का लेप लगाना फायदेमंद रहता है.
- किसान चाहें तो कॉपर ऑक्सी क्लोराइड की 3 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर पेड़-पौधे के आस-पास और मिट्टी पर अच्छी मात्रा में छिड़काव करना चाहिये.
- इसके बाद मेटालक्जिल एवं मंकोजेब की उपयोगिता वाले कवकनाशी की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर भी स्प्रे करके ठीक मिट्टी को नम कर सकते हैं.
- इसके समाधान के लिये कृषि विशेषज्ञ कैप्टान(Capton), मैकोजेब (Mancozab), कैप्टाफॉल (Captafal) जैसे कवकनाशियों के इस्तेमाल की भी सलाह देते हैं.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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